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History of Khichdi: महाभारत से लेकर मुगलों तक, बहुत अनोखी है खिचड़ी की दास्तां, जानिए कैसे आम होकर भी खास है यह

History of Khichdi: खिचड़ी का इतिहास हजारों साल पुराना है. खिचड़ी की उत्पत्ति के बारे में बहुत सी कहानियां भारत में प्रचलित हैं. लेकिन अलग-अलग किस्से होने के बावजूद खिचड़ी हमेशा से इस देश में खास रही है.

History of Khichdi History of Khichdi
हाइलाइट्स
  • महाभारत से जुड़ा है इतिहास

  • इब्न बतूता ने किया है खिचड़ी का जिक्र 

भारत तरह-तरह व्यंजनों और खाने-पीने के शौकीनों का देश है. जब बात खाने की हो तो भारत का नाम अलग से चनकता है. हमारे देश में गोलगप्पे और टिक्की-चाट जैसे स्ट्रीट फूड, नवरतन कोरमा और कबाब जैसे शाही व्यंजनों से लेकर निहारी और खिचड़ी जैसे आराम वाले व्यंजन भी हैं. 

इन सभी व्यंजनों को देश में सम्मान मिलता है. हालांकि, एक व्यंजन है जिसे बहुत आम माना जाता है लेकिन यह फिर भी खास है. इस आम से व्यंजन का एक समृद्ध इतिहास है, और यह व्यंजन है साधारण खिचड़ी. खिचड़ी शब्द संस्कृत के शब्द 'खिच्चा' से आया है, जिसका अर्थ चावल और फलियों का एक व्यंजन है.  ज्यादातर, खिचड़ी चावल और दाल से बनाई जाती है, लेकिन बाजरे की खिचड़ी और मूंग की खिचड़ी भी देश में अलग-अलग जगह बनती हैं. 

आज #दस्तरखान में पढ़िए खिचड़ी के इतिहास के बारे में. 

महाभारत से जुड़ा है इतिहास
खिचड़ी का सबसे प्रारंभिक संदर्भ भारतीय महाकाव्य 'महाभारत' में मिलता है, जिसके बारे में माना जाता है कि घटनाएं 9वीं और 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच घटी थीं. 'महाभारत' में कहा जाता है कि द्रौपदी ने पांडवों को उनके वनवास के दौरान खिचड़ी खिलाई थी. इसके अलावा, खिचड़ी के बचे एक चावल के दाने को खाकर ही भगवान कृष्ण ने भूखे और क्रोधित ऋषि दुर्वाशा की भूख को शांत किया था. 

सुदामा की कहानी में भी खिचड़ी का जिक्र है. भगवान कृष्ण के मित्र सुदामा उनसे मिलने के लिए वृन्दावन से द्वारका गए और दो 'पोटली' (बंडल) ले गए, एक में खिचड़ी और दूसरे में चावल. जिस पोटली में खिचड़ी थी, उसे एक बंदर ने छीन लिया. हालांकि, वह चावल लेकर कृष्ण के द्वार पहुंचे और उन चावलों के बदले भगवान ने उनका घर धन-धान्य से भर दिया. 

इब्न बतूता ने किया है खिचड़ी का जिक्र 
यूनानी राजा सेल्यूकस ने 305-303 ईसा पूर्व के बीच भारत में अपने अभियान के दौरान उल्लेख किया था कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच दालों के साथ चावल पकाना और खाना बहुत लोकप्रिय है. मोरक्को के यात्री इब्न बतूता ने 1350 के आसपास अपने प्रवास के दौरान भारत में चावल और मूंग की फलियों से बने व्यंजन के रूप में 'किश्री' का उल्लेख किया है.

बतूता ने लिखा, "मुंज को चावल के साथ उबाला जाता है, फिर मक्खन लगाया जाता है और खाया जाता है. इसे ही वे किश्री कहते हैं और इसी से वे प्रतिदिन नाश्ता करते हैं." खिचड़ी का वर्णन 15वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा करने वाले एक रूसी साहसी यात्री अफानसी निकितिन के लेखन में भी किया गया है. 

शाही मुगल रसोई में बनती थी खिचड़ी 
बताते हैं कि मुगलों के अधीन ही खिचड़ी इस उपमहाद्वीप में ज्यादा पॉपुलर हुई. अकबर को खिचड़ी बेहद पसंद थी क्योंकि वह बहुत कम खाते थे. वह अपना खाना अकेले में खाना पसंद करते थे. हम सबने अकबर-बीरबल की कहानी सुनी है जिसमें बीरबल, अकबर को एक फैसले में गलती का अहसास कराने के लिए खिचड़ी का इस्तेमाल करते हैं. अकबर के दरबारी अबुल फज़ल और खिचड़ी से उनके रिश्ते से संबंधित एक तथ्य बहुत दिलचस्प है. फज़ल हर दिन 30 मन खिचड़ी पकाते थे और उनके घर के पास से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति 24 घंटे तक इसका स्वाद ले सकता था. मात्रा के अनुसार, एक मन 40 सेर या लगभग 40 किलोग्राम था, और 30 मन प्रतिदिन 1,200 किलोग्राम खिचड़ी के बराबर होता है!

अन्य मुग़ल बादशाहों में, जहांगीर को पिस्ता और किशमिश से भरपूर मसालेदार खिचड़ी बहुत पसंद थी और उन्होंने इसे "लज़ीज़न" (स्वादिष्ट) नाम दिया था. औरंगज़ेब को रमज़ान के दौरान खिचड़ी (मछली और उबले अंडे से बनी आलमगिरी खिचड़ी) बहुत पसंद थी और बहादुर शाह ज़फ़र को मूंग-की-दाल की खिचड़ी खाने में इतना मज़ा आता था कि इस दाल को 'बादशाह पसंद' के नाम से जाना जाने लगा. 19वीं शताब्दी में, अवध के नवाब नसीर-उद-दीन शाह की शाही रसोई अपने एक शाही रसोइये के लिए प्रसिद्ध थी, जो पूरी तरह से पिस्ता और बादाम से एक असाधारण खिचड़ी बनाते थे, जिन्हें दाल और चावल के दानों के समान काटा जाता था.

खिचड़ी और ब्रिटिश राजपरिवार 
दिलचस्प बात यह है कि खिचड़ी इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के पास भी गई थी. उन्हें खिचड़ी का स्वाद तब मिला जब उनके उर्दू शिक्षक मुंशी अब्दुल करीम ने उन्हें खिचड़ी की पेशकश की. लेकिन उन्हें चावल के साथ मसूर की दाल मिलाकर खाना पसंद था, जिसका सूप अक्सर उन्हें परोसा जाता था. इस तरह दाल को 'मल्लिका मसूर' के नाम से जाना जाने लगा.

एंग्लो-इंडियन व्यंजन 'केडगेरी' के पीछे की प्रेरणा खिचड़ी है. केडगेरी एक पसंदीदा और लोकप्रिय ब्रिटिश व्यंजन है जिसमें पकी हुई, परतदार मछली (पारंपरिक रूप से स्मोक्ड हैडॉक), उबले हुए चावल, अजमोद, उबले अंडे, करी पाउडर, मक्खन या क्रीम और कभी-कभी सुल्ताना (एक बीज रहित अंगूर की किस्म) शामिल होती है.

बाबा गोरखनाथ से जुड़ी है खिचड़ी की कहानी
खिचड़ी से जुड़ी एक और कहानी है. दरअसल, मकर संक्रांति के त्यौहार पर खिचड़ी बनाने और खिचड़ी खाने के पीछे का किस्सा बाबा गोरखनाथ से जुड़ा है. बताया जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया तो चारों ओर हाहाकार मच गया. बहुत से नाथ योगी युद्ध में कूद पड़े और लड़ाई के कारण उन्हें खाना पकाने का समय नहीं मिल रहा था. लगातार खाने की कमी वजह से लड़ाके लगातार कमजोर हो रहे थे. 

नाथ योगियों की इस दशा को देख गोरखनाथ ने लोगों से दाल चावल और सब्जी को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी. बाबा गोरखनाथ की ये सलाह नाथ योगियों के काम आई. दाल चावल और सब्जी एक साथ मिलाकर पकाने से यह कम समय में पक गया. बाद में इस पकवान को खिचड़ी का नाम दिया गया. खिलजी के साथ युद्ध समाप्त होते ही बाबा गोरखनाथ और योगियों ने मकर संक्रांति के दिन उत्सव मनाया और उस दिन लोगों को खिचड़ी बांटी. 

खिचड़ी के चार यार 
भारत के हर हिस्से में खिचड़ी बनाने और खाने के तरीकों में आपको विविधता मिलेगी. हालांकि, ज्यादातर जगहों पर खिचड़ी को कुछ विशेष चीजों के साथ खाया जाता है. और इसलिए यह कहावत बनी है- खिचड़ी के यहां पांच यार, पापड़, घी, दही और अचार. बच्चे के पहले भोजन के रूप में परोसने से लेकर बीमार व्यक्ति के लिए आसानी से पचने योग्य और पौष्टिक भोजन तक, खिचड़ी विभिन्न अवसरों का हिस्सा है. तो अगली बार, जब भी कुछ हल्का लेकिन खास खाने का मन करे तो खिचड़ी ही बनाएं.