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History of Khoba Roti: 500 साल से ज्यादा पुरानी मारवाड़ी रोटी है खोबा... पांच दिन से ज्यादा शेल्फ लाइफ, खाने के लिए नहीं पड़ेगी प्लेट-थाली की जरूरत

History of Khoba Roti: आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं राजस्थान की पारंपरिक खोबा रोटी के बारे में. खोबा रोटी बनने के बाद कई दिनों तक खाई जा सकती हैं. यह रोटी न सिर्फ पाक कला बल्कि पाक शैली में शिल्प कला का भी प्रमाण है.

Khoba Roti Khoba Roti

भारत के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है, 'विविधता में एकता.' हमारे देश के हर पहलू जैसे भाषा, परिधान, संस्कृति, रहन-सहन और यहां तक कि खान-पान में भी यह कहावत एकदम सटीक बैठती है. भारत में कई तरह के क्यूज़ीन हैं जैसे पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, राजस्थानी आदि. और आज हम बात कर रहे हैं राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से आए एक खास व्यंजन के बारे में. वैसे तो राजस्थान के हर इलाके में आपको ऐसे-ऐसे व्यंजन मिलेंगे कि पेट भर जाएगा लेकिन मन नहीं. पर आज हम आपको बता रहे हैं यहां कि फेमस 'खोबा रोटी' के बारे में. 

आटे में नमक, मिर्च और सौंफ मिलाकर बनाई जाने वाले खोबा रोटी के दीवाने आजकल आपको राजस्थान के बाहर भी मिल जाएंगे. Instagram पर ट्रेवल और फूड ब्लॉगर्स ने खोबा रोटी को इस कदर पॉपुलर कर दिया है कि देश के दूसरे इलाकों में भी लोग इसे अपने घर में बना रहे हैं. अब सवाल है कि आखिर इस रोटी में ऐसा क्या खास है? क्यों यह रोटी इतनी ज्यादा पॉपुलर हुई? आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं खोबा रोटी की कहानी. 

राजस्थान का पाक शैली में शिल्प कौशल 
राजस्थान में भले ही आप किसी ढाणी में खाना खाओ लेकिन फील एकदम राजसी आएगी. राजाओं की इस धरती में बात ही कुछ ऐसी है कि यहां का साधारण-सा खाना भी शाही लगेगा. यह बात जग जाहिर है कि पाक शैली में राजस्थान अव्वल ही रहता है और कई बार यहां की पाक शैली में शिल्प कौशल भी देखने को मिलता है. जैसे खोबा रोटी, जिसे कोभा, रोथ, रोटला, अंगरकड़ी, जड़ी रोटी या यहां तक ​​कि बिस्किट रोटी के नाम से भी जाना जाता है.  

खाने में, खोबा रोटी के स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है जो राज्य की समृद्ध विरासत और पाक विशेषज्ञता को दर्शाती है. यह पारंपरिक रोटी अपने खूबसूरत डिजाइन और खास स्वाद के लिए जानी जाती है. हालांकि, यह रोटी सिर्फ रोटी नहीं है बल्कि कलाकृति है. जो चीज़ इसे अलग करती है वह इसे सजाने वाला डिज़ाइन. सबसे पहले आटा गूंथकर इससे सामान्य से मोटी रोटी बेली जाती है. 

इस रोटी को तवे पर डाला जाता है. जब रोटी एक तरफ से हल्की पक जाती है तो दूसरी तरफ इस पर हाथ से जियोमैट्रिकल पैटर्न उकेरते हैं. पैटर्न उकेरने के बाद इसे तवे पर पलटकर पकाया जाता है और फिर सीधा आंच पर. ये पैटर्न रोटी को सिर्फ खूबसूरती नहीं देते हैं बल्कि खोबा को समान रूप से पकाने में मदद करते हैं और इससे घी भी अच्छे से रोटी में जाता है जो इसे स्वादिष्ट और चबाने में आसान बनाता है.  

500 साल से ज्यादा पुरानी है यह रोटी 
जानकारों की माने तो खोबा रोटी का इतिहास मारवाड़ में 500 साल से ज्यादा पुराना है. कुछ लोगों का कहना है कि यहां के व्यापारी जब व्यापार करने निकलते थे तो रेगिस्तान में ऊंटों से सफर करने में कई दिन लग जाते थे. ऐसे में, उन्हें अपने साथ ऐसे व्यंजन चाहिए होते थे जो जल्दी खराब न हों और खाने में पौष्टिक भी रहें. कहते हैं कि तब खोबा रोटी अस्तित्व में आई क्योंकि यह एक रोटी बनने के बाद पांच दिन से ज्यादा चल सकती है. 

दूसरा किस्सा है कि खोबा रोटी मारवाड़ के सैनिकों की देन है. युद्धों के दौरान सैनिकों को लंबा चलने वाला खाना चाहिए होता था. खोबा रोटी लंबे समय तक रहती है और इसे खाने के लिए अलग से प्लेट या थाली नहीं चाहिए बल्कि कोई भी इसे हाथ में लेकर, इसी के ऊपर सूखी सब्जी या चटनी रखकर आराम से खा सकता है. युद्ध की स्थिति में यह सैनिकों के लिए सबसे आसान विकल्प थी. समय के साथ इसे बनाने के तरीकों में थोड़ा फेर-बदल हुआ है. पहले इसे सिर्फ आटे से बनाते थे अब बहुत सी जगह आटे में सूजी, मोयण आदि का इस्तेमाल करते हैं. आज के डिजिटल जमाने में राजस्थान की यह सदियों पुरानी रोटी अब देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंच चुकी है.  

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