scorecardresearch

History of Kofte: लौकी, मलाई से लेकर नरगिसी कोफ्ते तक... हजारों साल पुराना है कोफ्तों का इतिहास, बनती हैं अलग-अलग डिश

क्या आप जानते हैं कि भारत के लगभग हर घर में बनने वाले कोफ्ते मिडिल ईस्ट से भारत पहुंचे हैं और फिर भारतीयों के स्वाद के हिसाब से इनका रंग-रूप और आधार बदल दिया गया. दस्तरखान में जानिए कोफ्तों का इतिहास और कहानी.

History of Kofta (Photo: Unsplash) History of Kofta (Photo: Unsplash)

जब भी घर में मेहमान आते हैं तो उनके लिए खास व्यंजन बनते हैं. व्यंजनों में सब्जियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. सामान्य दिनों में भले ही हम आलू, गोभी या लौकी से काम चला लें लेकिन मेहमानों के लिए खास रेसिपीज ट्राई की जाती हैं जैसे गोभी मसाला, पनीर या कोफ्ते. जी हां, कोफ्ते की सब्जियां भारतीय घरों में खास मौकों पर बनाई जाती हैं. कोफ्ते कई तरह के होते हैं जैसे लौकी के कोफ्ते, कटहल के कोफ्ते, पनीर के कोफ्ते, मीट के कोफ्ते या गोभी आदि के कोफ्ते. पहले कोफ्ते तैयार किए जाते हैं और फिर अलग-अलग रेसिपीज से कोफ्ते की सब्जियां बनाई जाती हैं जैसे मलाई कोफ्ता, कीमा कोफ्ता, नरगिसी कोफ्ता आदि. 

पहले कोफ्ते बनाना और फिर इनकी सब्जी बनाना बोलने में आसान लग सकता है लेकिन स्वाद भरे कोफ्ते और सब्जी बनाने में समय और मेहनत दोनों लगते हैं. और सबसे बड़ी बात है कि अगर आप मन से न बनाएं तो खाने में स्वाद नहीं आता. पर सवाल यह है कि आखिर कोफ्तों का इतिहास क्या है? आखिरकार कोफ्ते कैसे बनाए गए होंगे और क्या यह सबसे पहले भारत में बने या फिर कहीं और से भारत आए. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी कोफ्ते की. 

हजारों साल पुराना है इतिहास 
कोफ्ता दुनिया भर में पॉपुलर है और अलग-अलग व्यंजनों में का हिस्सा है, जिनमें मध्य पूर्वी, भारतीय और भूमध्यसागरीय व्यंजन शामिल हैं. कोफ्ता का इतिहास प्राचीन काल से मिलता है, इसकी उत्पत्ति मिडिल ईस्ट में मानी जाती है. बात अगर शब्द की करें तो, "कोफ्ता" फारसी क्रिया "कुफ्तान" से आया है, जिसका अर्थ है "कूटना" या "पीसना." पारंपरिक रूप से, यह मसालों और दूसरी सामग्रियों के साथ मांस को पीसकर या कूटकर कोफ्ता तैयार करने विधि को दर्शाता है. 

सम्बंधित ख़बरें

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कोफ्ते के बारे में 1200 साल पुरानी रसोई की किताब में जिक्र किया गया है. जहां उनका उल्लेख हेज़लनट्स जैसे मीटबॉल के रूप में किया गया है. किंवदंती है कि बचे हुए मांस और मसालों को खाने में इस्तेमाल करने के लिए इनसे कोफ्ते बनाए जाने लगे ताकि कुछ वेस्ट न हो. ऐसा माना जाता है कि इस प्रथा की शुरुआत तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य में हुई और यह उनके प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक बन गया. कोफ्ते का उल्लेख 9वीं शताब्दी के ऐतिहासिक ग्रंथों में भी किया गया है. ऐसा माना जाता है कि कोफ्ता मिडिल ईस्ट में फारसी लोग लेकर आए थे. समय के साथ, यह व्यंजन दूसरे क्षेत्रों में फैल गया. फिर लोकल इंग्रेडिएंट्स और स्वाद के अनुरूप कोफ्ते बनाए जाने लगे. 

अलग-अलग नाम, अलग-अलग व्यंजन
बात भारत की करें तो कुछ लोगों का मानना है कि मुगल काल के समय यहां कोफ्ता पहुंचा और हमारे खाने का हिस्सा बन गया. पहले यह शाही रसोई में ही बनाया जाता है लेकिन धीरे-धीरे आम लोग भी इस व्यंजन को बनाने-खाने लगे. भारत में कोफ्ता आमतौर पर कीमा बनाया हुआ मांस या सब्जियों को मसालों के साथ मिलाकर बनाया जाता था. समय के साथ शाकाहारी विकल्प जैसे सब्जियों या पनीर से बने कोफ्ते अस्तित्व में आने लगे. 

अलग-अलग देशों में इन्हें अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है और अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. जहां हम भारतीय इन्हें 'कोफ्ता' के नाम से जानते हैं, वहीं लेबनानी लोग इन्हें 'केफ्ता' या 'काफ्ता' के नाम से जानते हैं. उन्हीं मीटबॉल को मिडिल ईस्ट में 'किब्बेह' और ग्रीस में 'केफ्ट्स' के नाम से जाना जाता है. भारत में भी अलग-अलग तरह के कोफ्तों की सब्जी बनाई जाती है जैसे लौकी कोफ्ता, पनीर कोफ्ता, नरगिसी कोफ्ता, मटन कोफ्ता, मलाई कोफ्ता, कीमा कोफ्ता, क्रीमी मटर कोफ्ता, गोभी पनीर कोफ्ता या आलू कोफ्ता आदि.