चांदनी रात... मलाईदार दूध... और एक स्वादिष्ट मिठाई. माखन मलाई की कहानी दिलचस्प है. अगर आप उत्तर भारत से हैं तो आपने एक बार तो माखन या मक्खन मलाई जरूर चखी होगी और अगर चखी न हो तो इसके बारे में सुना जरूर होगा. माखन मलाई जितनी स्वाद होती है उतनी ही खास है. इसे आप कभी भी मन-मुताबिक नहीं बना सकते हैं. क्योंकि इस मिठाई को बनाने में सिर्फ सामग्री नहीं बल्कि मौसम अहम भूमिका निभाता है.
जी हां, माखन मलाई सिर्फ सर्दियों में बनती है. इसे बनाने के लिए मौसम ठंडा होना चाहिए और रात का तापमान कई डिग्री नीचे होना चाहिए. दूध को चांदनी और ओस की बूंदों को रखा जाता है जिससे यह सुबह तक एकदम मुलायम मलाई या झाग का रूप ले लेता है.
आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं माखन मलाई की कहानी जिसे भारत में ही कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है.
माखन मलाई के हैं कई रूप
परंपरागत रूप से नवंबर से मार्च तक तैयार की जाने वाली माखन मलाई उत्तर में मुगल काल से चली आ रही एक प्रमुख मिठाई रही है. इस मिठाई की प्रामाणिकता इस बात पर निर्भर करती है कि कुल्हड़ में निकालने पर यह खराब होती है या नहीं. बताया जाता है कि माखन मलाई उत्तर प्रदेश का एक व्यंजन है, खासकर वाराणसी, कानपुर, और लखनऊ जैसे शहरों में, जो इसकी संस्कृति में विविधता को दर्शाता है.
माखन मलाई उतना ही पुराना है जितना भारत में ब्रिटिश शासन था. इसे माखन मलाई, फाग, मलइयो, निमिष और दौलत की चाट जैसे कई नामों से भी जाना जाता है. झागदार दूध की मिठाई, माखन मलाई को अलग-अलग शहरों में अलग-अलग रूप में खाया जाता है जैसे लखनऊ में निमिष, दिल्ली में दौलत की चाट और बनारस में मलइयो.
माखन मलाई की कहानी
बात इसकी उत्पत्ति या इतिहास की करें तो एक कहानी कहती है कि शाहजहानाबाद के निर्माण के दौरान माखन मलाई कानपुर से आती थी, जब बादशाह मजदूरों को खिलाने के लिए आस-पास के इलाकों से खाना मंगवाते थे. यह वह जगह है जहां शाही परिवार ने भी इसका स्वाद लिया. केसर का स्पर्श, मावा और मेवों का अच्छी तरह से मिश्रण इस देहाती मक्खन व्यंजन में मुगल रसोई का स्पर्श माना जा सकता है, जिसे उस समय भी यूपी में माखन मलाई कहा जाता था.
वहीं, एक दूसरी कहानी यह है कि माखन मलाई की उत्पत्ति कानपुर - अवध की रसोई में हुई - सआदत अली खान के अधीन, जिन्होंने अपने खानसामा को राजकुमार मुराद बख्श के लिए कुछ शानदार बनाने के लिए कहा, और उन्होंने माखन मलाई बनाई. एक और किंवदंती यह है कि चाट की पहली उत्पत्ति मुरादाबाद में मौजूद थी, इस शहर का नाम बदलकर सम्राट अकबर ने 1625 ईस्वी में राजकुमार मुराद बख्श को पेश किया था, जिसका श्रेय वहां की अफगानी आबादी को जाता है. यह प्रिंस मुराद के अधीन था कि शहर ने एक ऐसा व्यंजन विकसित करना शुरू किया जिसमें वही स्वाद और पाक प्रतिभा थी. हालांकि, तब तक इसमें मुगल दरबार की समृद्धि नहीं थी.
अफगानिस्तान से जुड़ी हैं जड़ें
वहीं, बात अब अगर पुरानी दिल्ली की मशहूर दौलत की चाट की करें तो कहानियां कुछ और बताती हैं. लोककथाओं के अनुसार, दौलत नाम का एक व्यक्ति पुरानी दिल्ली में यह चाट बेचता था और इसलिए इसका यह नाम पड़ा. लेकिन खाद्य विशेषज्ञों की राय अलग है. किंवदंती है कि माना जाता है कि यह मिठाई अफगानिस्तान में बोताई जनजाति से उत्पन्न हुई थी.
बाद में, रेशम मार्ग और समुद्री व्यापारियों के माध्यम से भारत में पहुंची, यह भी माना जाता है कि मुगलों ने इस प्रतिष्ठित व्यंजन में केसर, खोया और सूखे मेवों का स्पर्श जोड़ा था. इतिहास भले ही स्पष्ट न हो लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जब भी लखनऊ, बनारस या दिल्ली आना-जाना हो तो यहां की माखन मलाई जरूर चखें. क्योंकि अगर सर्दियों में माखन मलाई नहीं खाई तो कुछ नहीं खाया.