गणेश चतुर्थी भारत देश के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है. गणेश उत्सव- जिसे सार्वजनिक तौर पर अंग्रेजों के जमाने में बाल गंगाधर तिलक ने मनाना शुरू किया था. आज न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देश के अलग-अलग कोनों में मनाया जाता है. गणपति जी की बात हो और मोदक का जिक्र न करें तो कहानी पूरी नहीं होगी. जी हां, बप्पा की पसंदीदा मिठाई, जिसका भोग लगाएं बिना हिंदू धर्म में गणेशजी की पूजा अधूरी मानी जाती है.
महाराष्ट्र में तो लगभग हर घर में उत्सव के कुछ दिन पहले से मोदक बनना शुरू हो जाते है. बाजारों में भी लोग तरह-तरह के मोदक का लुत्फ उठाते दिखते हैं. मोदक शब्द संस्कृत के 'मोदा' से आया है जिसका अर्थ होता है खुशी या आशीर्वाद. लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे पहले मोदक किसने बनाए? कैसे मोदक का गणपति जी से भोग बन गए? आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी मोदक की.
हिंदू शास्त्रों में मिलता है जिक्र
ऐसा कहा जाता है कि प्रारंभिक संस्कृत साहित्य में मोदक का स्वरूप लड्डू जैसा दिखता था. महाभारत के अनुशासन पर्व और रामायण के युद्ध कांड में मोदक का उल्लेख मिलता है. ऐसा माना जाता है कि इस युग के बाद मोदक का संबंध गणेश से हो गया. अग्नि पुराण में इसका उल्लेख मिलता है. राजा सोमेश्वर द्वितीय के मानसोलासा में चावल के आटे, चीनी और इलायची और कपूर जैसे कुछ सुगंधित मसालों से तैयार किए गए मोदक का उल्लेख है, जिन्हें वर्सोपालगोलक कहा जाता था क्योंकि वे ओलों की तरह दिखते थे.
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में मौजूद पुरानी मूर्तियों को देखें, तो गणेश जी को लड्डुओं के साथ-साथ मोदक के साथ भी चित्रित किया गया है. यह चित्रण छठी शताब्दी के सामान्य युग जितना पुराना है. एलोरा (600-1000 ई.पू.) की कलाकृति में गणेश जी को ऐसे चित्रित किया गया है कि वह मोदक जैसी दिखने वाली कोई चीज़ खा रहे हैं.
बाल गणेश से जुड़ी पौराणिक कहानी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया ने भगवान शिव को अपने परिवार के साथ दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया. भगवान शिव, देवी पार्वती और गणेश के साथ आए. सबसे पहले माता अनुसूया ने बाल गणेश को भोजन परोसा. लेकिन गणेश जी जब खाना शुरू किया तो रुकने का नाम ही नहीं लिया. माता अनुसूया की रसोई का लगभग पूरा भोजन गणेश जी ने ही चट कर लिया. माता अनुसूया को घबराहट होने लगी कि कहीं आज उनके घर से भगवान शिव भूखे ही न चले जाएं. आखिर में, अनुसूया के पास सिर्फ मोदकों की एक थाली ही बची. उन्होंने बहुत ही श्रद्धा से गणेश जी को 21 मोदक खिलाए. मोदक खाकर भगवान गणेश संतुष्ट हो गये. तब से ही गणेश जी को मोदक का भोग लगाया जाता है.
औषधि के रूप में मोदक
मोदक का उल्लेख पौराणिक कहानियों में जहां मिठाई या प्रसाद के तौर पर मिलता है, वहीं आयुर्वेद ने औषधि के रूप में मोदक का परिचय कराया. बताया जाता है कि चरक संहिता में दो प्रकार के मोदक, अभयादि मोदक और शतावरी मोदक का उल्लेख है, जिनका उपयोग दोषों को संतुलित करने और बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता था. आज भी तीन तरह के मोदक बनाए जाते हैं- एक स्टीम यानी भाप में पकाकर, दूसरे फ्राई करके और तीसरे सांचे का उपयोग करके.
भाप में पकाए जाने वाले मोदक को उकड़ीचे मोदक कहते हैं. महाराष्ट्र में मूल रूप से यही बनाए जाते हैं. इन मोदक को गर्म घी के साथ खाया जाता है और कहा जाता है कि ये मोदक पोषण से भरपूर होते हैं. मोदक मानसून-फ्रेंडली डिश है. गुड़ से बना, उकड़ीचे मोदक पाचन बढ़ाता है, मेटाबॉलिज्म बढ़ाता है और कब्ज से बचाता है. गुड़ में एंटीऑक्सिडेंट और मिनरल्स होते हैं जो शरीर से टॉक्सिन्स को खत्म करते हैं. गुड़ स्वस्थ कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है, मानसून से संबंधित कीटाणुओं से लड़ता है, सर्दी और फ्लू को ठीक करता है.
अलग-अलग तरह के मोदक
महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक, तेलुगु राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी मोदक बनाए जाते हैं. डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिल ब्राह्मण खाना पकाने की बाइबिल के नाम से जाना जाने वाले ग्रंथ, समैथु पार, में चार प्रकार के मोदक का जिक्र है. ये अपनी स्टफिंग- नारियल, उड़द दाल, तिल और मसूर दाल के आधार पर अलग होते हैं. इन्हें कच्चे चावल की इडली, वडई, पायसम और महा नेवेद्यम के साथ परोसा जाता है, जो और इसके ऊपर घी डाला जाता है. हालांकि, बदलते समय के साथ मोदक का स्वरूप भी बदला है.
आज देश के लगभग हर कोने में लोग मोदक बनाते हैं. YouTube पर ढेरों रेसिपी आज आपको मिल जाएंगी. बाजारों में भी आपको मोदक की अलग-अलग मॉडर्न वैरायटी देखने को मिल जाएंगी जैसे- गुलाब काजू मोदक, स्ट्रॉबेरी काजू मोदक, मोतीचूर मोदक, काजू चॉकलेट मोदक, खोया मोदक, और खोया केसर मोदक, शुद्ध पिस्ता मोदक, केसर चॉकलेट मोदक, केसरबादाम मोदक, और काजू अंजीर गुलाब मोदक आदि.