कोई खास मौका हो और मेनू में चिकन, पनीर के साथ नान न हो तो खाना अधूरा-अधूरा सा लगता है. खासकर अगर आप पंजाबी क्यूज़ीन के शौकीन हैं तो नान के बिना खाना भूल ही जाइए. जी हां, उत्तर भारतीयों और नान का रिश्ता काफी पुराना है. नान का होना ही खाने को खास बना देता है. लेकिन नान सिर्फ भारत नहीं ब्लकि साउथ एशियन क्यूज़ीन का हिस्सा है. भारत के साथ-साथ यह हमारे हमसाए देश पाकिस्तान की पाक संस्कृति को भी पूरा करता है.
भारत-पाकिस्तान के अलावा, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, उज़्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और आसपास के इलाकों में नान शौक से बनाया-खाया जाता है. अब यह डिश अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा जैसे देशों में भी पहचान बना रही है. भारतीयों को भले ही यह लगता हो कि नान भारतीय डिश है लेकिन हकीकत इससे थोड़ी अलग है. अगर कभी कढ़ाई पनीर के साथ नान के चटकारे लेते हुए ख्याल आया हो कि नान आखिर सबसे पहले कहां बनाया गया और किसने बनाया, तो इस सवाल का जवाब आज हम आपको दे रहे हैं.
दस्तरखान में आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर नान सबसे पहले किस जगह बना और भारत में यह कैसे बनना शुरू हुआ? हमारे साथ जानिए नान की कहानी.
भारत नहीं फारस में पहली बार बना नान
बहुत सी ऐसी डिशेज हैं जिन्हें न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी भारतीय माना जाता है. लेकिन ये डिशेज वास्तव में कहीं और से पलायन करके भारत पहुंची और फिर भारतीयों ने अपने स्वाद, और मसालों के रंग में इन्हें ऐसा रंगा कि अब ये भारतीय हो गई हैं. नान भी ऐसी ही डिशेज में से एक है. नान भारत की नहीं बल्कि भारत को प्राचीन फारस यानी ईरान की देन है. नान सैकड़ों साल पहले फारस से भारत पहुंचा. फूड हिस्टोरियन्स की माने तो नान का इतिहास 2500 साल पुराना है. बात भारत की करें तो भारत में नान का इतिहास दो चीजों से जुड़ा है.
भारत में मिस्र से यीस्ट और ईरान से तंदूर आने के बाद नान का प्रचलन हुआ. इसस पहले भारत में ज्यादातर चपाती और मोटी रोटियां हुआ करती थीं. ये मोटी रोटी हड़प्पा संस्कृति के दौरान विकसित हुईं और ये कम से कम एक सप्ताह तक खाने योग्य रहती थीं. भारत में नान का आगमन मुगलों के आगमन के साथ माना जाता है. बहुत से लोग मानते हैं कि कबाब की तरह नान भी फारसियों ने विकसित किया था.
शाही दरबार का खास व्यंजन था नान
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत में नान का पहला दर्ज इतिहास इंडो-फ़ारसी कवि अमीर खुसरो के साहित्य में पाया गया है, जिसके हिसाब से नान 1300 ईस्वी पूर्व का है. तब नान को दिल्ली के शाही दरबार में नान-ए-तुनुक (हल्की रोटी) और नान-ए-तनूरी (तंदूर ओवन में पकाया हुआ) के रूप में पकाया जाता था. 1526 के आसपास भारत में मुगल काल के दौरान, कीमा या कबाब के साथ नान राजघरानों का पॉपुलर नाश्ता था.
आटा गूंथने की तकनीक और खमीर के इस्तेमाल के कारण नान उस समय समाज के अमीर वर्ग तक ही सीमित था. यह एक ऐसा व्यंजन था जो शाही घरों और रईसों के घरों में बनाया जाता था. बताया जाता है कि 1700 के दशक के अंत तक नान आम आदमी की थाली तक पहुंचने लगा था. हालांकि, आज भी नान बनाने की कला में चंद लोग ही महारत हासिल कर पाते हैं.
...भारत से पश्चिमी दुनिया में पहुंचा नान
18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, पश्चिमी दुनिया का परिचय नान से कराया गया. एक अंग्रेजी इतिहासकार और पादरी, विलियम टूक ने अपनी ट्रेवल मैग्ज़ीन में नान का जिक्र किया था. इंग्लैंड में भारतीय रेस्तरां 1810 की शुरुआत में खोले गए थे जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से रिटायर होने के बाद सेक डीन महोमेद ने हिंदोस्टैंड डायनर खोला था. इसके बाद से पिछले 200 सालों से नान ब्रेड जैसे भारतीय व्यंजनों की पॉपुलैरिटी खूब बढ़ी है.