बनारस जाने वाले ज्यादातर लोगों की दो इच्छा होती हैं- एक घाट आरती और दूसरा बनारस का पान. जी हां, शायद ही कोई हो जो बनारस का पान खाए बिना वापस लौट आए. हालांकि, पान खाने की परंपरा सिर्फ बनारस में नहीं बल्कि देश के और कई इलाकों में है. भारतीय संस्कृति में पान का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर, आयुर्वेदिक औषधियां बनाने और भोजन तक में किया जाता है.
भारत में पान का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है. हालांकि, पान को खाने के बाद माउथ फ्रेशनर के तौर पर इस्तेमाल करने का चलन इतना पुराना नहीं है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं पान की कहानी.
भगवान राम से जुड़ी हैं मान्यताएं
पान की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'पर्ण' से हुई है जिसका अर्थ है 'पत्ती.' इसे 'बीटल लीफ' भी कहा जाता है, इसका इतिहास 5000 साल पुराना है क्योंकि यह न सिर्फ भारतीय खाद्य संस्कृति में महत्व रखता है बल्कि प्रशांत देशों तक भी यह पहुंचा है. भारतीय पौराणिक कथाओं से लेकर आयुर्वेद तक, अपने औषधीय गुणों के साथ हर जगह पान का जिक्र मिलता है.
पान चबाना एक पुरानी परंपरा है जिसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है. अयोध्या कांड में भगवान राम को भूख पर काबू पाने के लिए खाली समय में पान चबाते हुए दर्शाया गया है. इतना ही नहीं, जब हनुमानजी मां सीता को ढूंढते हुए लंका पहुंचे और रावण की लंका का दहन किया तो देवी सीता ने उन्हें पान के पत्तों की एक माला दी. यह माला मां सीता ने उन्हें प्रेम, प्रसन्नता और प्रशंसा के संकेत के रूप में दी थी. तब से ही हनुमान जी को पान के पत्तों की माला अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई.
सांस्कृतिक और आयुर्वेदिक महत्व
चाहे उत्तर हो या दक्षिण, पान के पत्ते शुभ अवसरों में जरूर मंगवाए जाते हैं. मैसूर में, अच्छे भाग्य के संकेत के रूप में, विशेष अवसरों पर पान के पत्तों को उपहार के रूप में पेश किया जाता है. असम में, आने वाले मेहमानों के सम्मान के रूप में, पान को भोजन के तुरंत बाद पेश किया जाता है.
उत्तर भारत में, शादी की रस्मों में पान के पत्ते और सुपारी का संयोजन शामिल होता है, जो रिश्ते में मजबूत बंधन और वफादारी का प्रतीक है. वहीं, दुर्गा पूजा और दिवाली जैसे त्योहार पान के पत्तों के बिना अधूरे हैं, क्योंकि धार्मिक अनुष्ठानों के समय कलश (धातु या मिट्टी के बर्तन) को सजाने के लिए पान के पत्ते चाहिए होते हैं. ऐसा माना जाता है कि पानी में पत्तियां डालने से पानी शुद्ध हो जाता है.
वहीं, चिकित्सा विज्ञान के नजरिए से पान खाने की क्रिया पाचन तंत्र के लिए अच्छी मानी जाती है, क्योंकि पत्तियां भोजन को आसानी से पचाने में मदद करती हैं. आयुर्वेद पान को विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को नियंत्रित करने का एक शक्तिशाली साधन मानता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि पान के पत्ते का रस पहले संक्रमित कानों के उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. इसका उपयोग एंटीसेप्टिक, पाचन सहायता और माउथ फ्रेशनर के रूप में भी किया जाता है.
हालांकि, IARC (इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर) और WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, सुपारी और तंबाकू के साथ पान के नियमित सेवन से मुंह का कैंसर हो सकता है. लेकिन अगर आप सिर्फ पान के पत्ते या तंबाकू और सुपारी के बिना पान खाते हैं तो यह हानिरहित और स्वास्थ्यवर्धक है.
अब मिलता है कई तरह का पान
भारत में पान को कब माउथ फ्रेशनर के तौर पर खाया जाने लगा इसके इतिहास की सटीक जानकारी उपसब्ध नहीं है. ऐसा माना जाता है कि पुराने जमाने में शासक और आम लोग पान को माउथ फ्रेशनर के रूप में इस्तेमाल करते थे. भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में पान का बहुत प्रचलन था. इसे विशेष अवसरों पर विशेष सामग्री से बनाया जाने लगा. ऐसा कोई घर नहीं था जहां पान के बिना मेहमानों का स्वागत न होता हो. ऐसी परंपरा थी कि लोग पान को प्रतिष्ठा से जोड़ते थे.
आजकल आपको पान की बहुत सी वैरायटी मिल जाती हैं. इस लिस्ट में सादा पान, मीठा पान, सिल्वर पान, फायर पान, मघई पान, रसमलाई पान, चॉकलेट पान आदि शामिल हैं. सोशल मीडिया की वजह से आज पान देश-दुनिया में मशहूर है. विदेशों से भी लोग आ-आकर भारत के पान ट्राई करते हैं.