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History of Pakora: पकौड़ा, पकौड़ी या भजिया.... इस डिश के बिना अधूरा है मानसून, मुगलों से जुड़ा है इतिहास

History of Pakora: पकौड़ों का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आने लगता है. भारत में दाल, पनीर से लेकर पत्तों और सब्जियों तक के पकौड़े बनाए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में पकौड़ों का इतिहास सदियों पुराना है.

History of Pakora (Photo: Unsplash) History of Pakora (Photo: Unsplash)
हाइलाइट्स
  • तमिल साहित्य में मिलता है जिक्र 

  • मुगलों से है खास कनेक्शन 

बारिश, गीली मिट्टी की भीनी-भीनी खूशबू और खुशनुमा मौसम के साथ चाय-पकौड़े... भारत में मानसून का मजा इसी में है. बिना पकौड़ों के भारत में बारिश का मजा अधूरा रहता है. इसलिए जैसे ही बूंदें गिरना शुरू होती हैं रसोई से पकौड़ों की खूशबू आना शुरू हो जाती है. बारिश के मजे को दोगुना करने वाली यह साधारण सी डिश जितना परिवार के मेल-मिलाप को खास बनाती है उतना ही किसी बड़े और खास आयोजन में अहम रोल निभाती है. 

छोटे प्रोग्राम से लेकर शादी-ब्याह तक में, पकौड़े स्नैक्स  में होते ही होते हैं. लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर पकौड़े आए कहां से? आखिर कैसे पकौड़े हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गए. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी पकौड़ों की. 

तमिल साहित्य में मिलता है जिक्र 
आपको बता दें कि "पकौड़ा" शब्द संस्कृत शब्द पक्ववट से लिया गया है, और यह प्राचीन भारतीय पाक परंपराओं से जुड़ा है. पक्ववट से मतलब है 'पकवा' - पका हुआ और 'वट'- छोटे टुकड़े. इससे मतलब होता था दाल के पेस्ट के गोल छोटे-छोटे केक बनाकर तेल या घी में तला जाता था. वहीं "भजिया" की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "भरजीता" से हुई है, जिसका अर्थ है तला हुआ. 

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पकोड़े का ऐतिहासिक संदर्भ प्राचीन संस्कृत और तमिल साहित्य में मिलता है, जिसमें दाल के तले हुए केक या पकौड़े और कुरकुरी तली हुई सब्जियों का उल्लेख है. मनसोलासा (1130 सीई) और लोकोपकारा (1025 सीई) जैसी मध्यकालीन भारतीय रसोई की किताबों के शुरुआती व्यंजनों में सब्जियों, बेसन और उन्हें मछली के आकार में ढालने जैसी अनूठी तकनीकों के साथ पकौड़े तैयार करने का जिक्र किया गया है. 

पकौड़ों के इतिहास पर गहराई से नजर डालें तो तमिल संगम साहित्य में इन तले हुए पकौड़ों का जिक्र मिलता है. विनीत भाटिया की 'रसोई' नामक पुस्तक के एक अंश के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि "पकौड़े को पहले पारीका के नाम से बुलाया जाता था और फिर उन्हें बहुत अलग तरीके से तैयार किया जाता था." कई जगह इस बात का जिक्र मिलता है कि तेल में तली हुई दाल या कुरकुरी तली हुई सब्जियों से बने गोल केक को पकौड़ा कहा जाता था.

मुगलों से है खास कनेक्शन 
हम सभी जानते हैं कि हमारी पाक कला का इतिहास कितना गहरा है और मुगल अपने साथ पाककला संबंधी कई इनोवेशन लेकर आए. मुगल काल में, शाही रसोइये तरह-तरह के पकौड़े बनाते थे जैसे अंडा पकौड़ा, मटन पकौड़ा, चिकन पकौड़ा आदि. वहीं, पुर्तगाली लोग 16वीं सदी में अपने साथ आलू लेकर आए थे, जिसके बाद आलू, आलू-प्याज के पकौड़े बनाए जाने लगे. समय के साथ-साथ इनमें और बदलाव आने लगे. जैसे बाद में पकौड़ों के साथ हरी चटनी और तीखी इमली की चटनी परोसी जाने लगी. 

आज भारत के अलग-अलग इलाकों में पकौड़ों के अलग-अलग वर्जन मिलते हैं. जैसे दिल्ली में मूंग दाल के पकौड़े काफी फेमस हैं जिन्हें राम लड्डू कहते हैं. इन्हें ताज़ी कद्दूकस की हुई मूली और हरी चटनी के साथ परोसा जाता है. वहीं, मुंबई में पालक कांदा भजिया मशहूर है तो गुजरात के डाकोर ना गोटा बेसन और मेथी के पत्तों से बनाया जाता है. दक्षिण कर्नाटक में, गोली बज्जे अका ​​मंगलुरु भज्जी या मैसूर बोंडा को नारियल की चटनी के साथ परोसा जाता है. 

वहीं, आंध्र प्रदेश में पुनुगुल्लू खाते हैं जो चावल, उड़द दाल और मसालों के साथ बनाया जाता है. बंगाल का पाट पातर बोरा जूट के कच्चे पत्तों से बनाया जाता है. वहीं, बेगुन भाजा तले हुए बैंगन से बनाया जाता है. पियाजी पाकुड़ी ओडिशा में बने चना दाल के पकौड़े हैं. मणिपुर का स्पेशल मरोई नाकुपी बोरा एक स्थानीय जड़ी-बूटी से बनाया जाता है.