भारत में कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtai) का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. कई दिन पहले से ही कृष्ण लला के जन्मदिवस की तैयारियां शुरू हो जाती है. भारत के लगभग हर इलाके में यह त्योहार मनाया जाता है और हर जगह के अपने अलग रीति-रिवाज होते हैं. बात उत्तर भारत की करें तो यहां पर कृष्ण जन्माष्टमी का मतलब है पंजीरी (Panjiri) का प्रसाद. जी हां, उत्तर भारत के लगभग हर घर में जन्माष्टमी के दिन पंजीरी का प्रसाद बनाकर लड्डू गोपाल को भोग लगाया जाता है और फिर इसे प्रसाद रूप में बांटा जाता है.
हालांकि, आपको जानकर शायद हैरानी हो लेकिन आजकल कई अलग-अलग तरह की पंजीरी घरों में बनाई जाती है. पंजीरी का प्रसाद अब सिर्फ आटे और मेवों तक सीमित नहीं है बल्कि अब फलहारी, सुंद, पुष्टिमार्गीय और गोंद पंजीरी जैसे वेरिएशन हमें देखने को मिलते हैं. आज दस्तरखान में हम आपक बता रहे हैं कि आखिरी पंजीरी बनाने की शुरुआत कैसे हुई और क्या है इसकी कहानी.
आयुर्वेदिक औषधि के रूप में हुई शुरुआत
इतिहासकारों की मानें तो भारत में पंजीरी का पहला प्रयोग आयुर्वेदिक औषधि के रूप में हुआ होगा. 'हैंडबुक ऑफ हर्ब्स एंड स्पाइसेज' नामक एक किताब में 'पंचजीरका पाक' का उल्लेख मिलता है. जिसे आज की पंजीरी का प्रारंभिक रूप माना जाता है. बताया जाता है कि पुराने समय में बच्चे के जन्म के बाद नई मां को यह औषधि दी जाती थी ताकि उसका स्वास्थ्य जल्दी ठीक हो सके. इस औषधि को कई तरह की जड़ी-बूटी से तैयार किया जाता था. जैसा कि पंचजीरका नाम से स्पष्ट है- पांच जड़ी-बूटी.
पंजीरी बनाने के लिए सबसे पहले आटे को घी में भूना जाता है और फिर इसमें मेवा, जीरा, धनिया, सौंठ, और सौंफ जैसे मसाले मिलाए जाते हैं. उत्तर भारत में, खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पंजीरी का सीधा संबंध गर्भवती महिलाओं और बच्चे के जन्म से है. आज भी इन राज्यों में डिलीवरी के बाद महिलाओं को पंजीरी बनाकर खिलाई जाती है. क्योंकि औषधीय तौर पर इसमें बहुत ज्यादा पोषण होता है जो नई मां की सेहत के लिए जरूरी है. और शायद यहीं से बच्चे के जन्म पर पंजीरी बांटने की परंपरा शुरू हुई होगी.
जन्माष्टमी का प्रसाद है पंजीरी
हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को हुआ था. इस दिन बहुत से श्रद्धालू लोग व्रत रखकर और पूजा अनुष्ठान करके भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान को अर्पित करने के लिए विभिन्न प्रकार के नैवेद्यम या प्रसाद तैयार किए जाते हैं. लेकिन इन सबमें पंजीरी सबसे ज्यादा पॉपुलर है. कृष्ण जन्माष्टमी से पंजीरी का नाता कैसे जुड़ गया, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है. लेकिन अगर सामान्य तौर पर देखा जाए तो बच्चों के जन्म के समय पंजीरी बनाने की परंपरा से इसे जोड़ा जा सकता है.
जैसा कि हम सब जानते हैं कि जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का जन्म मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने-अपने घरों में श्रीकृष्ण के बालरूप लड्डू गोपाल को सजाते हैं. ऐसे में, समझा जा सकता है कि जैसे साधारण परिवार में बच्चे के जन्म पर पंजीरी बनाई जाती है और बांटी जाती है वैसे ही लोगों ने जन्माष्टमी के दिन कृष्णजी को अपना बच्चा मानकर उनके जन्म के मौके पर पंजीरी बांटना शुरू किया हो. और धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई. हालांकि, इस दिन बहुत से इलाकों में सामान्य आटे की जगह धनिया को पीसकर पंजीरी बनाई जाती है क्योंकि लोग इस दिन व्रत करते हैं और व्रत में अनाज नहीं खा सकते लेकिन धनिया का कोई परहेज नहीं होता है.
पंजीरी के अलग-अलग रूप
भारत में धार्मिक उत्सवों के दौरान कई तरह से पंजीरी बनाई जाती हैं. उदाहरण के लिए, पारंपरिक पंजीरी आटे को घी में भूनकर और फिर इसमें खांड, मेवे आदि मिलाकर बनाई जाती है. इसके अलावा, गोंद पंजीरी, सूखे मेवे की पंजीरी, धनिया पंजीरी और नारियल पंजीरी आदि भी बनाई जाती हैं.
अलग-अलग पंजीरी बनाने के लिए सिर्फ आटे को दूसरी सामग्री जैसे धनिया पाउडर, मेवों का पाउडर या नारियल पाउडर से बदल दिया जाता है. बाकी रेसिपी लगभग समान रहती है. आमतौर पर, पंजीरी को 'चरणामृत' के साथ परोसा जाता है, जो दही, शहद, दूध आजि को मिलाकर बनाते हैं. इस प्रसाद में कटे हुए केले भी डाले जाते हैं. पंजीरी न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि पौष्टिक भी है. इसीलिए कृष्ण जन्माष्टमी पर इसे देशभर में बनाया जाता है.