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दस्तरखान: पराठा... या परोटा... स्कूल टिफिन से लेकर 5-स्टार रेस्टोरेंट तक, कैसे बनी यह ग्लोबल डिश

स्कूल से लेकर नाश्ते की टेबल तक पराठे ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. इसे कहीं परामठे, कहीं पराठे तो कहीं परोटा बोला जाता है. पराठे खाने के शौकीन सिर्फ पंजाब में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी मिल जाएंगे. स्टफ्ड पराठे की उत्पत्ति ऐसे हुई थी जब महिलाओं ने बची हुई सब्जी का इस्तेमाल इसे भरने के लिए करना शुरू किया.

Parantha Parantha

उत्तर भारतीयों के लिए पराठे सिर्फ डिश नहीं बल्कि इमोशन हैं. बच्चों के स्कूल टिफिन से लेकर 5-स्टार रेस्टोरेंट तक, आज हर जगह दर्जनभर तरीके के पराठे मिलते हैं. कहीं परामठे, कहीं पराठे तो कहीं परोटा.... नाम भले ही अलग-अलग हों लेकिन पराठों के लिए प्यार आपको सब जगह एक जैसा ही मिलेगा. पंजाब की तो पहचान का हिस्सा हैं पराठे. लेकिन पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कई देशों में पराठों के शौकीन आपको मिलेंगे. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी पराठों की.

पूरन पोली से शुरू हुई कहानी?
भारतीय पराठे का आविष्कार सबसे पहले मीठी फ्लैटब्रेड के रूप में हुआ था जिसे पूरन पोली के नाम से जाना जाता है. पूरन पोली 1000-1526 ई. से विभिन्न आकृतियों और आकारों में प्रसिद्ध थी क्योंकि इसका संदर्भ निज्जर (1968) की पुस्तक "पंजाब अंडर द सुल्तांस" में मिलता है. 1520 ई. में लिखी गई गुजराती बुक, 'वरणाका समुच्चय' में मेथी-थेपला (मसालेदार परांठे) का उल्लेख है. ऐसा माना जाता है कि चालुक्य राजा, सोमेश्वर तृतीय ने 12वीं शताब्दी में एक संस्कृत विश्वकोश लिखा था, जिसे 'मानसोलासा' के नाम से जाना जाता है. इस किताब में पूरन पोली के बारे में लिखा गया है. लेकिन इसे गेहूं के आटे से बनाया जाता है और गुड़ से भरा जाता है.

फारसी भाषा में मिलता है जिक्र
फूड हिस्टोरियन, सोनल वेद ने अपनी बुक, 'हूज़ समोसा इज़ एनीवे' में लिखा है कि पराठे का फ़ारसी नाम वारकी है. हालांकि, वारकी बनाने के लिए आटा दूध से गूंथा जाता है और इसकी परतें उतरती हैं. वहां से यह डिश कुछ बदलाव के साथ पूर्व की ओर पहुंची. कुछ लोगों का मानना है कि पराठे जैसा दिखने वाला चीनी स्कैलियन पैनकेक सिल्क रूट के जरिए आया होगा. इसी तरह केरल के मुस्लिम समुदाय तक मध्य एशिया से परोटा पहुंचा. क्योंकि केरल का लंबे समय तक मालाबार तट के साथ समुद्री संपर्क था. वहां से, इस डिश ने श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया तक अपनी यात्रा जारी रखी जहां इसे रोटी कैनाई कहा जाता है. साउथ इंडियन परोटा उत्तर भारत के पराठों से अलग होता है.

इस तरह शुरू हुआ स्ट्फ्ड पराठों का चलन
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, भरवां परांठे के चलन के पीछे उन गृहिणियों का हाथ है जो एक दिन पहले बची सब्जी को खराब नहीं करना चाहती थीं. इस तरह से स्ट्फ्ड पराठों जैसे आलू, गोभी, पनीर, दाल आदि की परंपरा शुरू हुई होगी. समय के साथ, यह चलन आम हो गया और अब आपको पनीर, सोया और मशरूम आदि के पराठे भी मिल जाएंगे. आज भी एक रात पहले बची सब्ज़ी का इस्तेमाल पराठों के लिए करने की प्रथा का पालन किया जाता है.

साउथ इंडिया की है अपनी रेसिपी
केरल का परोटा या स्टैंडर्ड मालाबार परोटा दिखने में उत्तर के लच्छा पराठे के समान है लेकिन बनाने में बहुत अलग. यह मैदे में तेल मिलाकर बनाया जाता है और लंबे समय आटे को तक खमीर उठने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह परतों में होता है. यह एक तरह का परोटा नहीं है जिसे दक्षिण के लोग खाते हैं. उनका एक दूसरा बहुत वर्जन- कोथु परोटा है - जिसमें परोटा को छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है और मांस (बीफ या चिकन), अंडे, ग्रेवी और सब्जियों के साथ मिलाया जाता है. तमिलनाडु का अपना वीचू परोटा है, जो चौकोर आकार में मुड़ा हुआ होता है, और इसे कीमा से भरने पर यह सीलोन पराठा बन जाता है. अंडा परोटा को अंडा डोसा का परोटा वर्जन माना जा सकता है और यह मुंबई की बैदा रोटी जैसा दिखता है. मदुरै अपने बन परोटे के लिए प्रसिद्ध है.

मुगल से मिलेनियल्स तक
मुगलों ने जाहिर तौर पर पराठे को अपना ट्विस्ट दिया था. हालांकि, उनका कोलकाता के 'मोगलई' पराठे से कोई लेना-देना नहीं था, जबकि बांग्लादेशी ढाकाई पराठे का कुछ मुगलई कनेक्शन हो सकता है. वहीं, महाराष्ट्रीयन पूरन पोली को बिहारी दाल पूरी का मीठा चचेरा भाई कह सकते है. भारतीय गिरमिटिया मजदूर पराठे को मॉरीशस, मालदीव, दक्षिण पूर्व एशिया और कैरेबियन तक ले गए, जहां इसे विभिन्न रूप से फराटा, प्रोता और तेल रोटी कहा जाता है. लेकिन त्रिनिदाद में इसके लिए "बस-अप शट" जैसे शब्द का इस्तेमाल होता है क्योंकि यह फटी हुई शर्ट जैसा दिखता है. आज मिलेनियल्स के अपने पराठों के वर्जन हैं और आने वाले समय में इसमें और एडिशन हो सकते हैं.