भारत में खाने का कोई मज़हब नहीं है. इसलिए तो होली की गुजिया और मीठी ईद की सेवइयां किसी में भेदभाव नहीं करती हैं. जी हां, भारत में मीठी ईद का मतलब होता है सेवइयां. और सेवइयां सिर्फ मुस्लिम समुदाय नहीं बल्कि हर धर्म और मज़हब के लोगों के खास हैं. क्योंकि भारत के अलग-अलग इलाकों और समुदाय के लोगों में सेवई के बहुत अलग-अलग रूप मौजूद हैं. उत्तर भारत की सेवइयां दक्षिण भारत में जाकर इडियप्पम हो जाती हैं. वहीं, हरियाणा, पंजाब में इनका एक और रूप है जिसे कहते हैं जवे.
आजकल का ट्रेंड है वर्मेसिली... जिन्हें बच्चे शौक से खाते हैं. लेकिन इन सभी रूपों में भी सेवई की अपनी एक जगह है. हम सबने कभी न कभी एक बार यह डिश खाई होगी और जो एक बार सेवई खा लेता है वह इनका दीवाना हो जाता है. इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कहानी सेवइयों की.
सदियों पुराना है इतिहास
मशहूर फूड हिस्टोरियन, के. टी. अचाया ने भारतीय व्यंजनों के इतिहास और विकास का व्यापक अध्ययन किया था. उनके मुताबिक, सेवई और इडियप्पम का संदर्भ पहली शताब्दी ईस्वी की एक प्राचीन पुस्तक में मिला था. यह किताब संगम साहित्य का हिस्सा है, जो प्राचीन दक्षिणी भारत के तमिल साहित्य का संग्रह है. सेवई बनाने की प्रक्रिया और इसमें इस्तेमाल होने वाले मोल्ड प्रेस का उल्लेख लोकोपकारा (1025 सीई) की रसोई की किताब में किया गया है.
इसके अलावा, सेवइयों का जिक्र लाल किले की शाही दावत के दौरान मिलता है. इतिहासकार राना सफवी की किताब में एक किस्सा है कि 19वीं सदी में ईद के दिन बहादुर शाह जफर को दूध के साथ सेवइयां परोसी गई थीं. और आज सेवइयां ईद की सबसे महत्वपूर्ण मिठाई है. ऐसा माना जाता है कि बहादुर शाह जफर रोजे के दौरान नरम गेहूं के आटे से खुद सेवइयां बनाते थे. समय के साथ यह कैसे ईद की प्रमुख डिश बन गई, इस बारे में दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता है.
सेवई के हैं कई रूप
आज अपने आसपास हमे सेवइयों के कई अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं. एक जमाना था जब दादी-नानी हाथों से सेवई या इनके कई अलग-अलग रूप बनाती थीं. जैसे पंजाब और हरियाणा में हाथों की उंगलियों से जवे बनते हैं. ये आकार में बहुत छोटे होते हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक में सेवई का एक रूप- शेविगे बनाया जाता है. कर्नाटक में चावल या रागी के आटे से तो महाराष्ट्र में गेहूं के आटे से शेविगे बनाते हैं. गुजरात में भी महिलाएं सेवइयां बनाकर और फिर इन्हें सुखाकर रखती हैं.
सेवई का एक रूप फेनी या फीनी भी होता है जो सिंधी और राजस्थानी इलाकों में बनाया जाता है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि हर इलाके में सेवई बनाने का तरीका भी अलग-अलग होता है. जैसे केरल का इडियप्पम पारंपरिक तौर पर नारियल के दूध और चीनी के साथ परोसा जाता है तो वहीं, अवध में किवामी सेवइयां यानी की बिना दूध के मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं. वहीं, दूध वाली सेवइयां भी कई तरह से हमारे यहां बनाई जाती हैं.