गर्मियों की शुरुआत होते ही हमारा खान-पान बदलने लगता है. ठंडी तासीर की डिशेज, खासकर कि ड्रिंक्स जैसे छाछ, लस्सी, ठंडाई, जूस और शिकंजी आदि डाइट में शामिल हो जाती हैं. इनमें शिकंजी गर्मियों में पी जाने वाली सबसे कॉमन ड्रिंक है जिसके कई वर्ज़न, आज ठेले से लेकर बड़े रेस्तरां तक में आपको पीने को मिलेंगे.
शिकंजी का इतिहास कुछ साल नहीं बल्कि सदियों पुराना है. शिकंजी सिर्फ आज नहीं बल्कि हमारी दादी-नानी और उनकी दादी-नानी के जमाने में भी रही होगी. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं शिकंजी का इतिहास.
महाभारत में मिलता है इसका जिक्र
एक जमाने था जब गर्मी के मौसम में हर घर में शरबत बनना आम बात थी. पुराने समय में शरबत-ए-शिकंजवी हुआ करता थ, जो पिछले कुछ वर्षों में शिकंजी और फिर साधारण नींबू पानी बन गई है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि शिकंजी और कुछ नहीं बल्कि मीठा नींबू-पानी है, लेकिन यह गलत धारणा है.
फूड हिस्टोरियन, पुष्पेश पंत के मुताबिक, शिकंजी नाम की उत्पत्ति शिकंजा शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ जाल होता है. पुराने समय में नींबू निचोड़ने के लिए लकड़ी के एक छोटे उपकरण का उपयोग किया जाता है, जिसके लिए शायद यह शब्द प्रयोग में आता था. हालांकि, मूल शरबत नींबू-पानी की तुलना में थोड़ी अलग डिश थी.
पंत का कहना है कि उन दिनों चीनी में नींबू का रस मिलाकर चाशनी तैयार की जाती थी और इसे चार-पांच दिन तक धूप में रखकर हल्का गर्म किया जाता था. इस विधि का जिक्र महाभारत में मिलता है और इसे 'नलपाक' कहा जाता है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शाही रसोइए नल ने ही इस विधि का आविष्कार किया था.
यूनानी चिकित्सा प्रणाली में आती है काम
महाभारत में जिक्र के अलावा, यूनानी चिकित्सा प्रणाली में, शिकंजी का जिक्र है. कहते हैं कि शिकंजी, सिकंजाबीन का बदला हुआ है. शिकंजी, उत्तरी भारत में एक लोकप्रिय शीतल पेय है, इसकी उत्पत्ति यूनानी फार्माकोपियल डोज के रूप, सिकंजाबीन से हुई है. यूनानी मेडिसिन में मूल रूप से, इसे सिरके और शहद के मिश्रण के रूप में तैयार सिकंजाबीन सादा के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा, यह अपने विभिन्न फॉर्मूलेशन में विभिन्न जड़ी-बूटियों से बना है जिसका उपयोग अलग-अग बीमारी के लिए किया जाता है.
यूनानी चिकित्सा प्रणाली में, सिकंजाबीन के कई फार्माकोपियल फॉर्मूलेशन को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, लिवर, यूरोजेनाइटल से लेकर दिल से संबंधी विकारों तक की कई बीमारियों के लिए न्यूट्रास्युटिकल (अघीज़ा-ए-दवाई) यानी औषधीय पेय और दवाओं के रूप में उल्लेख किया गया है.
शिकंजी से लेकर Mojito तक
समय के साथ शिकंजी के नाम, रंग-रूप और यहां तक कि बनाने के तरीके में भी बदलाव हुआ है. आज आपको शिकंजी के अलावा, नींबू, पानी और चीनी का इस्तेमाल करके बनाई हुई और भी कई ड्रिंक्स मिल जाएंगी. बताया जाता है कि शिकंजी में सिर्फ नींबू या चीनी नहीं होते हैं बल्कि इसमें और भी कई मसाले जैसे काला नमक, जीरा पाउडर और पुदीना आदि होते हैं. लेकिन नींबू पानी का मतलब है सादा पानी में नींबू का रस और चीनी मिलाना. आज भी कई जगह आपको पारंपरिक शिकंजी मिलती है जैसे मोदीनगर की शिकंजी दुनियाभर में मशहूर है. पुराने शहरों में मटकों में शिकंजी लेकर चलने वाले विक्रेता आज भी गर्मियों में राहगीरों की प्यास बुझाते मिलते हैं.
वहीं, नींबू पानी के साथ सोड़ा और दूसरे फ्लेवर्स मिलाकर भी बहुत से एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं. बड़े-बड़े रेस्तरां में मिलने वाला मोइतो या मोजिटो भी इसका ही एक रूप है. वहीं, बेस को समान रखकर इसमें अलग-अलह फ्लेवर जैसे अमरूद का रस, ब्लूबेरी या पीच फ्लेवर मिलाकर कई तरह की ड्रिंक्स आज सर्व की जा रही हैं. लेकिन पारंपरिक शिकंजी के स्वाद को कोई ड्रिंक मात नहीं दे सकती है.