scorecardresearch

History of Thekua: ठेकुआ के बिना पूरा नहीं होता है महापर्व छठ का महाप्रसाद, ऋग्वैदिक काल में मिलता है जिक्र

ठेकुआ एक इंडो-नेपाली व्यंजन है, जो भारतीय राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में लोकप्रिय है. ठेकुआ छठ पूजा के दौरान सूर्य भगवान को अर्पित किया जाने वाला एक पूजनीय प्रसाद है.

History of Thekua History of Thekua
हाइलाइट्स
  • ठेकुआ का छठ महापर्व से है अटूट रिश्ता

  • ऋग्वैदिक काल में है इस महाप्रसाद का जिक्र

छठ भले ही बिहार का महापर्व है, लेकिन एक ऐसा पकवान है जिसने इसे दुनियाभर में मशहूर कर दिया. और वह है ठेकुआ. गेहूं के आटे, घी और गुड़ जैसी घरेलू चीजों से बनने वाला ठेकुआ महानगरों में आज देसी और हेल्दी स्नैक का रूप ले चुका है. ठेकुआ दूसरे राज्यों के लोगों के लिए पकवान हो सकता है लेकिन पूर्वांचल के लोगों के लिए यह एक इमोशन है.

ठेकुआ यहां की संस्कृति का अटूट हिस्सा है और परंपरा की पहचान. छठ महापर्व का प्रसाद बिना ठेकुआ पूरा नहीं होता है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं इस खास व्यंजन का इतिहास और महत्व. 

छठ से है अटूट रिश्ता
बिहार में, छठ के त्योहार पर सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. छठ पर सूर्य देव को प्रसाद के रूप में ठेकुआ चढ़ाया जाता है. क्योंकि इसे पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. ठेकुआ को सांचे से सूर्य की तरह का रूप दिया जाता है, जो छठ पूजा से इसके संबंध पर जोर देता है. हिंदू धर्म में सूर्य का बहुत महत्व है और ठेकुआ जैसी मिठाई चढ़ाना भक्ति व्यक्त करने और आशीर्वाद पाने का एक तरीका है. इसे बनाना भी बहुत सरल और किफायती है, जो इसे जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए सुलभ बनाता है. 

ठेकुआ न केवल धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ा है बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. इसे बिहार में अन्य त्योहारों और विशेष अवसरों पर बनाया जाता है. ठेकुआ बनाने की प्रक्रिया एक सामुदायिक गतिविधि है, जिसमें घर की महिलाएं साथ मिलकर काम करती हैं. वैसे ठेकुआ बिहार से जुड़ा हुआ है, लेकिन इस मिठाई की विविधताएं आपको भारतीय उपमहाद्वीप के दूसरे हिस्सों में मिल सकती हैं. विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय सामग्री और स्वादों को शामिल करते हुए, लोग अलग-अलग विधि से ठेकुआ बनाते हैं. 

ऋग्वैदिक काल में है जिक्र
बात ठेकुआ के इतिहास की करें तो इसकी सटीक उत्पत्ति अनिश्चित है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल जैसे क्षेत्रों में सदियों से तैयार किया जाता रहा है जहां यह आज भी लोकप्रिय है. माना जाता है कि "ठेकुआ" नाम क्रिया "ठोकना" से लिया गया है, जिसका हिंदी में अर्थ "हथौड़ा मारना" है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ठेकुआ के आटे को पारंपरिक रूप से हथौड़े या अन्य भारी वस्तु का उपयोग करके सांचे में दबाया जाता है. इसे ठकुआ, ठेकरी, खजूर और रोठ भी कहा जाता है. 

करीब 3700 साल पहले ऋग्वैदिक काल में एक 'अपूप' नामक मिष्ठान का जिक्र मिलता है जिससे ठेकुआ काफी मेल खाता है. बताया जाता है कि इसे गेहूं के आटे में गुड़, दूध और घी मिलाकर बतौर औषधि बनाया गया था. और तब से ही इस व्यंजन को सूर्य की उपासना में भोग के रूप चढ़ाया जाने लगा. ठेकुआ के बारे में एक किंवदंती बौद्ध काल से भी जुड़ी है. बताते हैं कि भगवान बुद्ध ने ज्ञानप्राप्ति के बाद बोधिवृक्ष के आसपास 49 दिनों का उपवास रखा था. इस दौरान दो व्यापारी वहां से गुजरे और उन्होंने बुद्ध को आटे, घी और मधु (शहद) से बना एक व्यंजन उन्हें दिया, जिससे उन्होंने अपना उपवास खोला. यह व्यंजन ठेकुआ ही था. 

ठेकुआ का महत्व 
हम सब जानते हैं कि ठेकुआ एक पूजनीय प्रसाद है, जो भगवान सूर्य को समर्पित चार दिवसीय हिंदू त्योहार छठ पूजा के दौरान भगवान को अर्पित किया जाता है. ठेकुआ की गहरी तली हुई प्रकृति सूर्य की उग्र ऊर्जा का प्रतीक है. वहीं, स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो ठेकुआ एक पोषक तत्वों से भरपूर भोजन है, जो साबुत गेहूं के आटे, गुड़, सूखे मेवे और घी से बनाया जाता है. गुड़, एक प्राकृतिक स्वीटनर है और प्रोसेस्ड चीनी का एक स्वस्थ विकल्प प्रदान करता है. किशमिश, मेवे और नारियल जैसे सूखे मेवे पकवान में आवश्यक विटामिन, खनिज और फाइबर जोड़ते हैं. घी हेल्दी फैट्स का एक स्रोत है.

ठेकुआ बिहार और उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत में गहराई से अंतर्निहित है, जहां इसकी उत्पत्ति हुई थी. छठ पूजा के दौरान इसकी तैयारी पीढ़ियों से चली आ रही एक पुरानी परंपरा है. परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों के बीच ठेकुआ बांटने से समुदाय की भावना बढ़ती है और सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है.