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History of Tirangi Barfi: भारत छोड़ो आंदोलन में निभाई थी इस मिठाई ने खास भूमिका, जानिए बनारस की मशहूर GI Tagged तिरंगी बर्फी के बारे में

History of Tirangi Barfi: दस्तरखान में आज हम आपको बता रहे हैं कहानी तिरंगी बर्फी की. बनारस की मशहूर तिरंगी बर्फी का आविष्कार भारत की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किया गया था. यह एक समय पर यह बर्फी क्रांतिकारियों की आवाज बनी थी.

Tirangi Barfi (Photo: YouTube Screengrab) Tirangi Barfi (Photo: YouTube Screengrab)
हाइलाइट्स
  • आजादी से है गहरा रिश्ता 

  • मिल चुका है GI Tag 

भारत में ऐसे बहुत से स्मारक, जगहें और म्यूजियम हैं जो भारत की आजादी के लिए लड़े गए आंदोलनों के गवाह हैं. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक मिठाई के बारे में जिसका देश की स्वतंत्रता से गहरा नाता है. जी हां, आपको सुनकर भले ही हौरानी हो लेकिन भारत की पाककला में एक मिठाई ऐसी भी है जिसका सीधा संबंध आजादी के संग्राम से है. 

दस्तरखान में आज हम आपको बता रहे हैं बनारस की मशहूर मिठाई, तिरंगी बर्फी के बारे में. जैसा कि नाम से ही जाहिर है- तिरंगी मतलब तीन रंग की मिठाई जिसकी प्रेरणा हमारे राष्ट्रीय झंड़े तिरंगे से मिली है. यह मिठाई केसरिया, सफेद और हरे रंग की होती है. आज जानिए कि आखिर इस बर्फी का क्या है इतिहास. 

आजादी से है गहरा रिश्ता 
काजू और पिस्ता से बनी 'तिरंगी बर्फी', जैसा कि नाम से पता चलता है, राष्ट्रीय ध्वज के हरे, केसरिया और सफेद रंगों में आती है. बनारस की मूल तिरंगी बर्फी को 'राष्ट्रीय बर्फी' कहा जाता था और इसे सबसे पहले एक छोटी सी मिठाई की दुकान राम भंडार में बनाया गया था. राम भंडार नामक मिठाई की दुकान की स्थापना 1850 के आसपास स्वर्गीय श्री रघुनाथ दास गुप्ता ने की थी और यह बनारस के पुराने शहर में ठठेरी बाजार इलाके में स्थित थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के 'करो या मरो' के आह्वान किया था और इसके बाद, पहली बार 1942 के बाद राम भंडार ने इस मिठाई को पेश किया था. 

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बताया जाता है कि इस मिठाई को शुरू करने के पीछे मूल विचार देशभक्ति का संदेश फैलाना और आम लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के बीच गुप्त संदेश पहुंचाना था. देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों की खुफिया बैठकों और गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए तिरंगी बर्फी को बनाया गया था. वहीं, एक किस्सा यह भी है कि अंग्रेजों ने जब भारतीयों के तिरंगा लेकर चलने पर रोक लगा दी तो क्रांतिकारी अपने हाथ में यह तिरंगी बर्फी लेकर चलते थे. यह मिठाई फ्री में बांटी जाती थीं ताकि लोग बाहर आने की हिम्मत करें. 

मिल चुका है GI Tag 
तिरंगी बर्फी बनाते समय केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और सफेद रंग के लिए खोया और काजू का इस्तेमाल किया जाता है. राम भंडार के हलवाइयों के बाद कई अन्य स्थानीय दुकानों ने 'तिरंगी बर्फी' बनाना शुरू कर दिया था. आजादी के सालों बाद तिरंगी बर्फी के GI Tag के लिए आवेदन किया गया. और भारत छोड़ो आंदोलन के 80 साल बाद इस बर्फी को GI Tag मिला. यह बर्फी धीरे-धीरे पूरे देश में लोगों तक पहुंच रही है.