दुनिया में नॉन-वेज खाने वाले लोगों की सबसे ज्यादा आबादी है. ज्यादातर देशों में लोग मांसाहारी होते हैं. लेकिन भारत में नॉन-वेज फूड को जैसे सेलिब्रेट किया जाता है, वह शायद ही कहीं और किया जाता है. खासकर कि चिकन, दूसरे देशों में चिकन को रोस्ट करके या कई जगह सिर्फ उबाल कर खाने का रिवाज है. लेकिन भारत में चिकन को भी मसालेदार बनाकर खाया जाता है.
और यह अलग स्वाद ही है जिस कारण भारत की कई चिकन डिशेज दुनियाभर में मशहूर हैं. हालांकि, इन डिशेज में भी जो सबसे ज्यादा मशहूर है वह है बटर चिकन यानी कि मुर्ग मक्खनी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुर्ग मक्खनी की जड़ें देश की आजादी से जुड़ी हैं.
पेशावर में जन्मा था बटर चिकन
तंदूरी चिकन, बटर चिकन (मुर्ग मखनी) और दाल मखनी का आविष्कार करने वाले व्यक्ति का नाम है कुंदन लाल जग्गी और कुंदन लाल गुजराल. आपको बता दें कि कुंदन लाल गुजराल का जन्म 1902 में चकवाल (अविभाजित भारत) में दीवान चंद गुजराल नाम के एक कपड़ा व्यापारी के घर हुआ था. हालांकि, उनका बचपन मुश्किलों में बीता. चकवाल से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, कुंदन लाल गुजराल 1920 में पेशावर (अब पाकिस्तान में) चले गए, जहां उन्होंने गोरा बाजार में एक छोटे से भोजनालय में काम करना शुरू किया, वहां उनकी मुलाकात साथी रसोइयों, कुंदन लाल जग्गी और ठाकुर दास से हुई.
गुजराल ने पेशावर के इस रेस्तरां में तंदूरी चिकन का आविष्कार किया. दरअसल, एक दिन उन्हें दही और मसालों में मैरिनेट किए हुए चिकन के टुकड़ों को काटकर तंदूर में डालने का ख्याल आया. इससे पहले, तंदूर का इस्तेमाल केवल रोटियों के लिए किया जाता था. लेकिन गुजराल के इस एक्सपेरिमेंट से तंदूरी चिकन का जन्म हुआ. फिर एक समय आया कि रेस्तरां के मालिक मोखा सिंह की तबियत बिगड़ने लगी और उन्होंने अपना ढाबा कुंदन लाल गुजराल को बेच दिया.
इस तरह बना बटर चिकन
गुजराल का तंदूरी चिकन फेमस हो गया. लोगों को इसका स्वाद भाने लगा. हालांकि, बात अगर बटर चिकन की हो रही है तो यह एक एक्सीडेंटल खोज थी. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जग्गी और गुजराल ने देखा कि सीख में लगे रहने के कारण तंदूरी चिकन एक समय के बाद ऊपर से सूख जाता है. ऐसे में लोगों को ऊपर वाला हिस्सा निकालकर चिकन देना पड़ता है. इस कारण चिकन बर्बाद हो रहा था क्योंकि तब फ्रिज नहीं थे. ऐसे में, दोनों दोस्तों ने एक बार फिर दिमाग दौड़ाया.
उन्होंने तंदूरी चिकन के टुकड़ों को मक्खन के साथ टमाटर की ग्रेवी में डालकर गलती से बटर चिकन (मुर्ग मखनी) का आविष्कार कर दिया. और इस गलती से दुनिया के सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक- बटर चिकन का जन्म हुआ. गुजराल और जग्गी ने ही दाल मखनी का भी आविष्कार किया.
दिल्ली में खड़ा किया मोती महल
बंटवारे के बाद पाक कला के ये दिग्गज दिल्ली मे आकर बस गए. पाकिस्तान में सबकुछ पीछे छूट गया और हाथ में कुछ रह गया तो वह था खाना बनाने का हुनर. और इसी हुनर के दम पर उन्होंने दिल्ली में अपनी शुरुआत की. उन्होंने सड़क किनारे एक छोटा ढाबा खोला और लोगों को तंदूरी और बटर चिकन परोसने लगे. दिल्ली में भी लोगों को इन डिशेज ने अपना दीवाना बना लिया.
धीरे-धीरे काम बढ़ा तो उन्होंने दरियागंज में एक छोटी सी जगह खरीदी और आज का फेमस रेस्तरां, मोती महल की नींव रखी. यह जगह कुछ ही दिनों में लोकप्रिय हो गई- जिसके कारण उन्होंने इसे बढ़ाया. इस आउटलेट के कुछ ही सालों बाद रेस्तरां के कई चेन्स खोले गए. आज मोती महल पूरी दुनिया में अपने टेस्टी बटर चिकन के लिए जाना जाता है.
नेहरू तक थे बटर चिकन के दीवाने
आजादी के बाद कुछ सालों में ही मोती महल इतना मशहूर हुआ कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी यहां खाना खाने पहुंचे. गुजराल और जग्गी के बटर चिकन ने नेहरू को भी अपना दीवाना बना लिया था. नेहरू के अलावा और भी बड़ी हस्तियां जैसे दिरा गांधी, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति, डॉ. जाकिर हुसैन, अभिनेता राज कपूर और नरगिस दत्त, रिचर्ड निक्सन, जॉन एफ कैनेडी और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव जैसी प्रसिद्ध हस्तियों ने भी यहां खाने का आनंद लिया है.
बताया जाता है कि आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना आजाद ने एक बार ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी से कहा था कि उन्हें भारत की यात्रा दो बार करनी पड़ेगी. एक बार आगरा के ताजमहल के लिए और दूसरी बार दिल्ली के मोती महल के लिए. कहते हैं कि शाह ने भी मोती महल की इन चिकन डिशेज का आनंद लिया था.