जब भी सुधा मूर्ति का नाम सुनते हैं तो चेहरे पर अपने आप एक मुस्कान आ जाती है. हम उन्हें भले ही करीब से न जानते हों लेकिन वह देश के बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए प्रेरणा हैं. और सबसे बड़ी प्रेरणा हैं वह भारत की बेटियों के लिए. सुधा हमेशा से ही हर काम में अग्रणी रहीं. फिर चाहे वह लड़की होकर इंजीनियरिंग पढ़ना हो या फिर टाटा इंडस्ट्रीज की पहली महिला इंजीनियर होना, सुधा ने हर काम लीक से हटकर किया.
आज हम आपको इस महान हस्ती के जीवन के कुछ ऐसे किस्से बता रहे हैं जो हम सबको प्ररित करते हैं.
कॉलेज में थीं पहली महिला इंजीनियर छात्रा
सुधा मूर्ति ने बी.वी.बी. इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की. आपको बता दें कि वह अपने कॉलेज में पहली महिला छात्रा थीं. और उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान बहुत सी परेशानियां झेलीं. उनके कॉलेज में लड़कियों के लिए वॉशरूम तक नहीं था.
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें योग्यता के आधार पर दाखिला दिया था लेकिन फिर भी उन्होंने तीन शर्तें रखीं: एक, कि उन्हें केवल साड़ी पहननी होगी. दूसरा, वह कैंटीन नहीं जा सकती थी और तीसरा, वह लड़कों से बात नहीं कर सकती थी.
प्रिंसिपल की इन सभी शर्तों पर सुधा ने कहा कि उन्होंने मैंने पहली शर्त मान ली. उन्होंने साड़ी पहनी. दूसरा, कैंटीन इतनी ख़राब थी कि वह वैसे भी नहीं जाती. कॉलेज में लड़कों से बात न करने की तीसरी शर्त के बारे में, उन्होंने कहा कि एक साल तक उन्होंने उनसे बात नहीं की. फिर जब उन्होंने पहली रैंक हासिल की तो दूसरे साल में लड़के ही उनके पास बात करने आये. उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री से स्वर्ण पदक भी मिला.
TELCO की पहली महिला इंजीनियर
अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने पर, उन्हें अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिली, लेकिन चीजें तब बदल गईं जब उन्हें TELCO (वर्तमान में टाटा मोटर्स के नाम से जाना जाता है) में पुरुष-विशेष नौकरी के अवसर का पता चला. उन्होंने बताया कि 1974 में मार्च का महीना था. वह एम.टेक. फाइनल ईयर में थी. वह एक क्लास से आ रही थीं जब उन्होंने एक नोटिस पढ़ा. TELCO को युवा प्रतिभाशाली इंजीनियरों की आवश्यकता है और वेतन सीमा 1500 थी. लेकिन नोटिस में लिखा था कि महिला छात्रों को आवेदन करने की जरूरत नहीं है. इसे पढ़कर सुधा को बहुत गुस्सा आया.
उन्होंने जेआरडी टाटा को एक पोस्टकार्ड लिखा. उस समय उन्हें एड्रेस भी नहीं मालूम था, इसलिए उन्होंने इसे जेआरडी टाटा, टेल्को, मुंबई को भेज दिया. सुधा ने खत में लिखा कि आप कैसे बोल सकते हैं कि महिला छात्रों को आवेदन करने की जरूरत नहीं है. हमारी सोसायटी में 50% महिलाएं हैं. ऐसा किया तो हमारी सोसायटी ऊपर नहीं आ सकती.
10 दिनों के भीतर सुधा को टेल्को से जवाब मिला और उन्हें पुणे में एक साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था. कंपनी ने उनकी यात्रा और अन्य खर्चों का ख्याल रखने की भी पेशकश की. सुधा ने भेदभाव की निंदा करते हुए चेयरमैन को जो पत्र लिखा, वह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. सुधा को TELCO ने काम पर रखा था और इस तरह वह कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बन गईं.
Infosys की इंवेस्टर थीं सुधा
टेल्को में शामिल होने के तुरंत बाद, सुधा को उनके एक दोस्त प्रसन्ना ने नारायण मूर्ति से मिलवाया. सुधा और नारायण दोनों दोस्त बन गए और कुछ साल बाद जैसे-तैसे दोनों ने अपने माता-पिता को मना लिया और 1978 में शादी कर ली. साल 1981 में, जब नारायण ने एक सॉफ्टवेयर कंपनी 'इन्फोसिस' शुरू करने का फैसला किया तो सुधा ने उनका पूरा साथ दिया. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि नारायण के पास फंडिंग नहीं थी तो सुधा ने जैसे-तैसे अपनी सैलरी में से जो सेविंग की थी, उस बचत से 10 हजार रुपए नारायण को दिए.
और सुधा का कहना है कि हर महिला को इस तरह की बचत करनी चाहिए क्योंकि वह देश की सबसे अच्छी इंवेस्टर हैं जिन्हें अपना 10 हजार का रिटर्न करोड़ों में मिला है. पैसे के अलावा भी सुधा ने हर कदम पर नारायण का साथ दिया. आज वह Infosys कंपनी और फाउंडेशन का सबसे मजबूत हिस्सा हैं.
जब सुधा को कहा गया कैटल क्लास
सुधा अपनी जिंदगी में बहुत सादगी से रहती हैं. अगर कोई उन्हें न जानता हो तो उसे कभी पता ही न चले कि वह करोड़ों की मालकिन हैं. एक बार लंदन एयरपोर्ट पर वह सादे से सलवार-कमीज में ट्रेवल कर रही थीं जब बॉर्डिंग लाइन में उनसे एक महिला ने उन्हें कैटल क्लास पर्सन कहा. उन दो हाई-क्लास महिलाओं को लगा कि सुधा सादे कपड़ों में हैं तो वह कैसे बिजनेस क्लास की टिकट अफॉर्ड कर सकती हैं और उन्होंने सुधा से इकोनॉमी क्लास में जाने के लिए कहा. लेकिन जब सुधा ने उन्हें अनसुना किया तो उन्होंने सुधा को Cattle Class Person कहा.
हालांकि, वे महिलाएं ये देखकर चौंक गई कि फ्लाइट अटेंडेंट ने सुधा को पहचान लिया और इसके बाद सुधा ने उन महिलाओं को सुनाया कि क्लास का मतलब सिर्फ पैसे कमाना नहीं होता है. मदर टेरेसा एक क्लासी महिला थीं और उसी तरह भारतीय मूल की गणितज्ञ मंजुला भार्गव भी. दिलचस्प बात यह है कि कुछ समय बाद वही महिला एक स्कूल की फंडिंग के लिए एक बैठक में आईं जिसकी अध्यक्षता सुधा ने की. सुधा का मानना है कि वह जब तक है समाज के लिए कुछ न कुछ करती रहेंगी. कोरोना काल में भी उनकी फाउंडेशन ने लगभग 200 करोड़ रुपए वेलफेयर पर खर्च किए.