

रमज़ान का महीना 33.33 प्रतिशत पूरा हो चुका है. यानी इस महीने के 10 दिन बीत चुके हैं. रमज़ान के महीने को लोकप्रिय रूप से रोज़े से जोड़ा गया है. सूरज उगने के बाद से सूरज ढलने तक, रोज़ेदार खाने-पीने से परहेज़ करते हैं. लेकिन रमज़ान सिर्फ भूख-प्यास तक ही सीमित नहीं है.
रमज़ान अनुशासन का महीना है. इस महीने में मुसलमान अल्लाह के करीब आने के लिए न सिर्फ रोज़ा रखते हैं, बल्कि ज़्यादा नमाज़ भी पढ़ते हैं और ज़्यादा दान भी करते हैं. ऐसे में रमज़ान का महीना मुसलमानों के जीवन में कुछ अहम बदलाव लेकर आता है. आइए जानते हैं इन बदलावों से जुड़ी हुई शब्दावली.
सहरी
सहरी शब्द सहर से बना है. इसका मतलब है सवेरा. रोज़ा रखने के लिए लोग सुबह उठते हैं और सहरी करते हैं. जैसे ही सूरज की पहली किरण निकलती है, सहरी का वक्त खत्म हो जाता है. अब अगर आपके मन में सवाल आया है कि क्या सहरी को छोड़ा जा सकता है? तो इसका जवाब है नहीं. अगर आपके मन में सवाल आया है कि क्या रात में ही सहरी करके सो नहीं सकते? तो इसका जवाब भी है नहीं.
इन तीनों सवालों के जवाब हमें हदीस (पैगंबर मोहम्मद स.अ. की कही हुई बातों और जीवन का लेखा-जोखा) में मिल जाते हैं. एक हदीस के अनुसार, सहरी को छोड़ना अच्छा नहीं माना गया है. सहरी को प्रोत्साहित किया गया है. और एक हदीस के अनुसार, सहरी को आखिरी वक्त पर करना चाहिए.
यानी अगर आपको लगता है कि आपको सहरी करने में आधा घंटा लगेगा, तो आप सूरज की पहली किरण निकलने से आधा घंटा पहले ही सहरी शुरू करें. मिसाल के तौर पर, आज सहरी का वक्त तड़के 5:17 बजे खत्म हुआ. ऐसे में करीब 4:45 पर सहरी करना बेहतर है.
इफ्तार
सूरज ढलने के बाद रोज़ेदारों के पहले खाने को इफ्तार कहा जाता है. आमतौर पर रोज़ेदार खजूर से इफ्तार की शुरुआत करते हैं. इफ्तार से जुड़ी एक अहम बात यह है कि इसमें देरी करना अच्छा नहीं माना जाता. यानी जैसे ही सूरज ढले, आपको अपना रोज़ा खोल लेना है.
तरावीह
रमज़ान से जुड़ी एक और खास चीज़ है इस महीने में पढ़ी जाने वाली नमाज़, तरावीह. यह नमाज़ रात के वक्त पढ़ी जाती है. यह नमाज़ स्वेच्छा से पढ़ी जाती है. तरावीह से जुड़ी खास बात यह है कि पूरे महीने के दौरान तरावीह में पूरा कुरान पढ़ा जाता है.
मिसवाक
पीलू के पेड़ की लकड़ी से बने दातून को मिसवाक कहा जाता है. इसका इस्तेमाल दांत साफ करने के लिए किया जाता है. यूं तो मिसवाक का इस्तेमाल सालभर किया जाना चाहिए, और किया जाता है. लेकिन रमज़ान के महीने में इसका इस्तेमाल बढ़ जाता है. इसका कारण यह है कि रोज़े के दौरान आमतौर पर लोग टूथपेस्ट का इस्तेमाल करने से बचते हैं.
टूथपेस्ट का इस्तेमाल अगर किया भी जाता है तो सहरी से पहले. अगर कोई सहरी के बाद कुछ घंटों के लिए सो जाता है तो वह जागने पर मिसवाक से अपना मुंह साफ करता है. मिसवाक का इस्तेमाल दिन में दो-तीन बार किया जाता है ताकि मुंह को साफ रखा जा सके.
फितरा
फ़ितरा या ज़कात अल फ़ितर (Fitra/Zakat Al-Fitr) एक खास दान है जो रमज़ान के रोज़े के अंत में किया जाता है. अगर किसी मुसलमान के पास साधन हैं तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह अपनी ओर से और अपने ऊपर आश्रित लोगों (पत्नी, बच्चे, आदि) की ओर से फितरा दे. एक इंसान को 2.8 किलोग्राम गेहूं या उसके बराबर फितरा देना होता है. यानी अगर आपके परिवार में चार लोग हैं तो आपको 11.2 किलो गेहूं के बराबर फि़तरा देना है.