अगर आपसे सवाल किया जाए कि दुनियाभर के देशों में सबसे अच्छा खान पान किस देश का है तो जवाब होगा भारत. जीहां इंडिया का फूड पैटर्न दुनियाभर में सबसे बेहतर है और ये हमारी धरती के लिए भी फायदेमंद है. भारत के बाद इंडोनेशिया, चीन, जापान और सऊदी अरब का नंबर है. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है.
भारत का फूड पैटर्न सबसे बेहतर
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया के सभी देश इस पैटर्न को अपना लें तो दुनिया को अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए एक से भी कम पृथ्वी की जरूरत होगी. इस रिपोर्ट में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के फूड पैटर्न को सबसे खराब बताया गया है. इस रिपोर्ट में यह सलाह भी दी गई है कि दुनिया के हर हिस्से में लोगों को अपने खानपान की पैटर्न को बदलना चाहिए.
रहने के लिए पड़ेगी 7 पृथ्वी की जरूरत
रिपोर्ट के मुताबिक, 'अगर 2050 तक दुनिया में हर कोई मौजूदा बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों की तरह खान-पान अपनाने लगे तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 263 फीसदी ज्यादा बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं, हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक पृथ्वी के बजाय सात पृथ्वियों की आवश्यकता होगी.'
भारतीयों के खानपान में ऐसा क्या है खास
दरअसल भारतीयों के खानपान की आदतें अपनाने पर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है, जोकि हमारी धरती के लिए अच्छा माना जाता है. भारत में खाने की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इतना कम है कि दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ सकता. भारत में ज्यादातर लोग प्लेनेटरी डाइट खाते हैं. इसमें लोगों को मिलेट्स, फलियां और दाल खाने पर जोर दिया जाता है.
खानपान में मांसाहार कम करें
वैश्विक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में जानवरों की हिस्सेदारी 14 फीसदी है. अगर आप अपने खाने में पशुआधारित खाद्य पर्दार्थ ज्यादा रखेंगे तो ये पर्यावरण के लिए ठीक नहीं होगा. खाना तैयार करने में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कितना होगा, इससे तय होता है कि आपका फूड पैटर्न धरती की सेहत के लिहाज से ठीक है या नहीं. वैज्ञानिकों का मकसद ऐसे खानपान की तरफ जोर देना है जोकि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करते हों. खेती के तौर-तरीकों में कमी करके ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की जा सकती है.
भारत के मिलेट मिशन की तारीफ
इस रिपोर्ट में भारत के मिलेट मिशन (मोटा अनाज अभियान) की भी तारीफ की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है, मोटा अनाज खाने से खाद्य उत्पादन के लिए खेतों की जरूरत कम हो जाएगी. इससे चारागाहों की संख्या और क्षेत्र में इजाफा होगा. यह कार्बन उत्सर्जन से निपटने में मददगार साबित हो सकता है. रिपोर्ट में ये साफ कहा गया है कि धरती की रक्षा के लिए हमें खाना पैदा करने और उपभोग करने के तरीके बदलने होंगे.
मोटे अनाज के बीज खरीदने पर 80 प्रतिशत सब्सिडी
बता दें, मिलेट मिशन के तहत केंद्र और राज्य सरकारें मिलेट्स की खेती को बढ़ावा दे रही है. मिलेट की खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा मिलता है. इस योजना के तहत मोटे अनाज की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है. किसानों को मोटे अनाज के बीज खरीदने पर 80 प्रतिशत सब्सिडी भी सरकार देती है.