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इस मुक्तिधाम के पास कौवों के लिए तैयार किया गया है उद्यान, जलेबी कचौड़ी सहित बनते हैं ढेरों पकवान

काग उद्यान से पहले छत पर एक भी कौवा देखने को नहीं मिलता था. श्राद्ध में कौवे मिलते नहीं थे जिससे मन में असतुषंटि होती थी लेकिन अब ये आसानी से देखे जाते हैं. लोगों में मुक्तिधाम को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां होती है.

काग उद्यान काग उद्यान
हाइलाइट्स
  • हर के लोगों को मुक्तिधाम और काग उद्यान की व्यवस्था पसंद आने लगी है.

  • लोगों में अब मुक्तिधाम को लेकर भ्रांतियां खत्म हो रही हैं.

तैयारी पूरी हो चुकी है एक प्लेट में ताजे बने समोसे जलेबी कचौड़ी और बिस्किट रख दिया गया है. इन सभी को अलग-अलग जगह पर परोस दिया गया है. अब बस कुछ ही देर में वो यहां आएंगे जिनका इंतजार है, और जिनका इस भोजन पर पूरा अधिकार है. ये लजीज नाश्ता तैयार किया गया है शहर के कौवों के लिए. यह मध्य प्रदेश के विदिशा जिले का मुक्तिधाम है. मुक्तिधाम मतलब वो जगह जहां पर अंतिम संस्कार किया जाता है. यूं तो लोग इस जगह पर खराब परिस्थिति में ही आते हैं लेकिन कुछ सालों से विदिशा के इस मुक्तिधाम के चर्चे दूर-दूर तक है. दरअसल इसी मुक्तिधाम में एक काग उद्यान बनाया गया है. मतलब वो जगह जहां पर कौवों का पूरा ध्यान रखा जाता है. उनके लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. मान्यता यह है कि श्राद्ध में पुण्य आत्माओं की शांति के लिए कौवों को भोजन कराना आवश्यक है लेकिन एक वक्त पर इस शहर से कौवे गायब होने लगे थे. तभी शहर के एक समाजसेवी मनोज पांडे को ये तरकीब सूझी और उन्होंने बना दिया काग उद्यान. मनोज पांडे बताते हैं कि शहर में कौवों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही थी. हालात ये थे कि श्राद्ध के दिनों में भी कौवे ढूंढ़े नहीं मिलते थे. तभी उन्हे इसका आइडिया आया. उन्हे मुक्तिधाम के आसपास कौवे दिखते थे इसलिए उन्होने यहीं पर काग उद्यान बनाया.

'मां ने कहा मनोज पागल हो गया'
मुक्तिधाम के सचिव मनोज पांडे बताते हैं कि लोगों में मुक्तिधाम को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां होती है. मैं इन्हीं भ्रांतियों को दूर करना चाहता था. मैंने यह ठान लिया था कि मैं हर रोज मुक्तिधाम आऊंगा लेकिन मैं एक ब्राह्मण परिवार से आता हूं जनेऊधारी हूं, मुक्तिधाम आने के लिए जनेऊ भी उतरना पड़ता है तो जब मेरी मां को पता चला कि मैं रोज मुक्तिधाम जाता हूं और वहां इस तरह से सेवा देता हूं तो उन्होंने कहा कि मनोज पागल हो गया है. लेकिन मैं जनेऊ उतारकर रोज यहां आने लगा और समाज के दूसरे लोगों को भी अपने इस मिशन से जोड़ता रहा.

'कचौड़ी समोसा जलेबी सब फ्री में आता है'
मनोज पांडे बताते हैं कि अब धीरे-धीरे शहर के लोगों को मुक्तिधाम और काग उद्यान की व्यवस्था पसंद आने लगी है. मनोज पांडे बताते हैं कि वो रोज सुबह 6 बजे यहां पर आ जाते हैं. रास्ते में जो भी दुकानें पड़ती हैं वो अपनी दुकान से कौवों के लिए जलेबी समोसा कचौड़ी बिस्किट नमकीन जिसको जो देना होता है वह हर रोज मुझे देते हैं. वो कहते हैं श्राद्ध के वक्त तो मुक्तिधाम में उत्सव का माहौल होता है उस वक्त यहां पर कौवों के लिए तरह-तरह के पकवान बनवाए जाते हैं.

'शहरवाले भी खुश'
शहर में रहने वाले हरिनारायण शर्मा भी बताते हैं कि इस काग उद्यान से पहले छत पर एक भी कौवा देखने को नहीं मिलता था. श्राद्ध में कौवे मिलते नहीं थे जिससे मन में असतुषंटि होती थी लेकिन अब ये आसानी से देखे जाते हैं. मतलब काग उद्यान बनाने से शहर का इको सिस्टम भी काफी हद तक ठीक हुआ है.

'19 साल से लॉकर में बंद थी अस्थियां'
मनोज बताते हैं कि इसके पहले मुक्तिधाम की स्थिति बहुत खराब थी जब उन्होंने यहां की बागडोर संभाली तो उनको मालूम हुआ कि यहां के लॉकर में 20 साल से 19 से ज्यादा अस्थियां बंद है मतलब उन्हें कोई लेने ही नहीं आया. मनोज कहते हैं कि उन्होंने पूरे उत्सव के साथ उन सभी अस्थियों का विसर्जन करवाया और फिर गया जाकर सबका पिंड दान भी किया. मनोज कहते हैं कि काफी सालों के बाद उनकी कोशिशें रंग ला रही हैं. लोगों में अब मुक्तिधाम को लेकर भ्रांतियां खत्म हो रही हैं. अब अगर किसी को मुझे शादी का कार्ड भी देना है तो वह उसे देने के लिए मेरे पास मुक्तिधाम खुशी खुशी चला आता है.