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Indore के एक इंजीनियर ने बदल दी कई शहरों की सूरत, Wall Painting से रेलवे स्टेशन का किया कायाकल्प

एक ऐसा इंजीनियर..जिसकी काम की चर्चा देश ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी है. इसका छोटा उदाहरण इंदौर के रेलवे स्टेशन पर देख सकते हैं. स्टेशन की इन दीवारों में जान फूंकने वाले ये हैं निलेश नागर. निलेश बताते हैं कि उनका एक ही मकसद है कि किसी भी जगह को उसकी संस्कृति के हिसाब से खूबसूरत बनाना.

फेमस है निलेश नागर की पेंटिंग फेमस है निलेश नागर की पेंटिंग

इंजीनियर निलेश नागर ने मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और इतना ही नहीं नॉर्वे तक अपने काम से पहचान बनाई है. निलेश के वॉल पेंटिंग की खूबसूरती आपको देश के कई रेलवे स्टेशनों पर देखने को मिल सकते हैं.

'पटना रेलवे स्टेशन की हालत से हुए परेशान'

निलेश बताते हैं कि इस काम से पहले वह एक कंपनी में काम करते थे. वो कहते हैं कि एक बार वह किसी काम से अपने दोस्त के साथ पटना गए. पटना रेलवे स्टेशन पर उन्होंने देखा कि चारों तरफ गंदगी का अंबार है. रेलवे स्टेशन पर फैली गंदगी का असर न किसी अधिकारी पर पड़ रहा था और ना ही वहां से गुजरने वाले किसी आम इंसान पर, लेकिन नीलेश कहते हैं कि मुझे अंदर ही अंदर बहुत खराब लगा. क्योंकि उसी गंदगी के आसपास लोग खाने-पीने की चीजें बना रहे थे. निलेश कहते हैं कि वहां से मैंने और मेरे दोस्त ने यह तय किया कि रेलवे स्टेशन की सूरत बदलनी होगी.

'एक साथ 9 स्टेशन की जिम्मेदारी मिल गई'

निलेश बताते हैं कि फिर उन्होंने वॉल पेंटिंग का आइडिया सोचा वो कहते हैं कि पहला चैलेंज यह था कि उन्हें काम करने कौन देगा. निलेश बताते हैं कि वह और उनके दोस्त ने बहुत जुगाड़ करके उस वक्त के रेल मंत्री सुरेश प्रभु से मुलाकात की. दो-तीन मिनट की मुलाकात में ही सुरेश प्रभु ने उन्हें रेलवे के डिविजनल ऑफिस से मिलने के लिए कह दिया. निलेश बताते हैं कि वह 4 दिन बाद रतलाम डिविजनल ऑफीसर के पास गए, उन्हें लग रहा था कि वह एक दो प्लेटफार्म पर काम करने के लिए बोलेंगे. लेकिन डिविजनल ऑफिसर ने उन्हें 9 स्टेशन की जिम्मेदारी दे दी.

हालांकि निलेश बताते हैं कि 9 रेलवे स्टेशन की जिम्मेदारी मिल गई. सबको हमारा आइडिया पसंद आया था. लेकिन हमसे कहा गया कि आप इस काम के लिए स्पॉन्सर भी खुद ही ढूंढिए. मतलब रेलवे उस वक्त उन्हें कोई पेमेंट करने के लिए तैयार नहीं हुआ. निलेश कहते हैं कि स्पॉन्सर ढूंढना सबसे मुश्किल काम था. क्योंकि इसके पहले हमने कहीं कुछ काम किया ही नहीं था. निलेश बताते हैं कि बड़ी मुश्किलों के बाद उन्हें सीआरपीएफ से फंड मिला.

'अयोध्या से मिले काम का ऑफर ठुकरा दिया था'

निलेश बताते हैं कि अब उनको बहुत काम मिलने लगा था. उनके काम से लोग प्रभावित थे और अब उनके काम के लिए उनको और उनके आर्टिस्ट को पैसा भी ठीक-ठाक मिलने लगा था. निलेश कहते हैं कि इसी बीच उन्हें राम की नगरी अयोध्या से फोन आया. उनसे कहा गया कि 28 दिन बाद प्रधानमंत्री आ रहे हैं और इतने समय में आपको पूरे अयोध्या नगरी की सूरत बदलनी है. निलेश कहते हैं कि काम बहुत ज्यादा था और वक्त बहुत कम. शुरू में उन्होंने काम के लिए मना कर दिया लेकिन फिर काम को हाथ में लिया और पूरा किया. जिसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद उनकी पीठ थपथपाई.

'काम मिले या न मिले रिश्वत देने से किया मना'

निलेश बताते हैं कि उन्होंने हमेशा यह काम सिर्फ इसलिए किया. क्योंकि इसमें उनका मन लगता है, लेकिन कई बार सरकारी सिस्टम  उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाता है. निलेश बताते हैं एक बार उन्हें एक सरकारी काम मिला. काम अभी आधा ही हुआ था कि उनको मालूम हुआ कि बिल पास कराने के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ेगी. निलेश कहते हैं कि उन्होंने उसी जगह से काम को छोड़ दिया और कहा कि मुझे काम मिले या ना मिले लेकिन मैं रिश्वत नहीं दूंगा.

'विदेशी जमीं पर भी बिखेरा जलवा'

नीलेश के काम के चर्चे अब विदेश तक पहुंच चुके हैं. निलेश बताते हैं कि उनके पास नॉर्वे से भी ऑफर आया था और उन्होंने वहां भी जाकर काम किया है. उन्होंने कहा कि वॉल पेंटिंग बहुत सारे लोग करते हैं, लेकिन वॉल पेंटिंग का एक मकसद होना चाहिए. निलेश के काम की चर्चा अब चारों तरफ होती है. निलेश चाहते हैं कि पूरे देश में वह इस काम को आगे लेकर जाएं.