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Inspirational: रिटायरमेंट के बाद हरियाली को बनाया मिशन, 8 साल में लगा दिए 40000 पेड़, हरे-भरे जंगल में बदल गई बंजर पहाड़ी

केशर पर्वत आज से 8-9 साल पहले बंजर पहाड़ी हुआ करती थी, जो पथरीली थी. लेकिन आज यहां हरा-भरा जंगल है, जहां लोग घुमने और ताजा वातावरण का आनंद लेने जाते हैं.

Barren hillock to green jungle (Photo: https://wraplants.com/Gallery.aspx) Barren hillock to green jungle (Photo: https://wraplants.com/Gallery.aspx)

मध्य प्रदेश का इंदौर शहर पिछले कई सालों से स्वच्छता के मामले में नंबर 1 है. इसके साथ ही यह शहर हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है. इस शहर की प्रगति के हीरो यहां का प्रशासन नहीं बल्कि इंदौरवासी हैं जो लगातार अनुशासन के साथ प्रशासन का हर पहल में सहयोग करते हैं. इंदौर के लोगों ने अपने शहर को आज इस मुकाम पर पहुंचाया है कि यह दूसरे जिलों के लिए प्रेरणा बन रहा है. और आज इंदौर से एक और प्रेरक कहानी हम आपको बता रहे हैं. 

यह कहानी है इंदौर के महू कस्बे से केशर पर्वत और एक रिटायर्ड प्रिंसिपल की. केशर पर्वत आज से 8-9 साल पहले बंजर पहाड़ी हुआ करती थी, जो पथरीली थी. लेकिन आज यहां हरा-भरा जंगल है, जहां लोग घुमने और ताजा वातावरण का आनंद लेने जाते हैं. 

आज यहां कश्मीर के केसर और विलो के पेड़, नेपाल के रुद्राक्ष, थाईलैंड के ड्रैगन फ्रूट, ऑस्ट्रेलिया के एवोकैडो, इटली के जैतून और मैक्सिको के खजूर आदि उगते हैं. केशर पर्वत विभिन्न किस्मों के हजारों पेड़ों का घर है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वप्निल गंतव्य बनाता है और इसका श्रेय जाता है वर्ल्ड रिसर्चर्स एसोसिएशन के संस्थापक और निदेशक डॉ. शंकर लाल गर्ग को. 

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रिटायरमेंट के बाद शुरू किया मिशन 
साल 2015 में रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉ. गर्ग और उनके परिवार ने इस बंजर पहाड़ी को जंगल में बदलने का फैसला किया. उन्होंने स्कूल-कॉलेज शुरू करने के लिए इंदौर के महू कस्बे में जमीन खरीदी थी, लेकिन जब बात नहीं बनी तो पर्यावरण प्रेमी ने जंगल बनाने का फैसला किया और फिर पेड़ लगाने, पानी लाने, पौधों का पोषण करने और ग्रामीणों को यह साबित करने की मुश्किल यात्रा शुरू हुई कि एक बंजर पहाड़ी भी हरियाली का घर हो सकती है. 

74 वर्षीय डॉ. गर्ग ने नीम, पीपल और नींबू के पेड़ लगाकर शुरुआत की. धीरे-धीरे पेड़ों की संख्या और विविधता बढ़ती गई और आठ सालों (जुलाई 2016 से अगस्त 2024) में डॉ. गर्ग ने यहां पर 500 से अधिक प्रजातियों के 40,000 पेड़ लगाए. इसमें कल्पवृक्ष (स्वर्ग का वृक्ष), केसर, रुद्राक्ष, सेब, ड्रैगन, जैतून, लीची, अफ्रीकी ट्यूलिप और इलायची के फूल शामिल हैं.

यहां खिलते हैं केसर के फूल 
केशर पर्वत में सागौन, शीशम, चंदन, महोगनी, बरगद, साल, अंजन, बांस, विलो, देवदार, पाइन, दहिमन, खमार और सिल्वर ओक सहित लकड़ी के पेड़ भी पाए जाते हैं. 15,000 पेड़ 12 फीट से अधिक ऊंचे हैं. केशर पर्वत के पौधों की जीवित रहने की दर 95% है. इनमें से किसी भी पौधे को एक्सट्रा खाद या फर्टिलाइजर नहीं दिया जाता है. डॉ. गर्ग ने कहा, वर्षा जल में मौजूद नाइट्रोजन और सल्फर पौधों की जरूरतों को पूरा करते हैं.

केशर पर्वत का नाम केसर से लिया गया है, जो कश्मीर के पहाड़ों का मूल पौधा है. 2021 में पहली बार जंगल में 25 केसर के फूल खिले. 2022 में यह संख्या धीरे-धीरे बढ़कर 100 हो गई और 2023 में पांच गुना बढ़ गई. डॉ. गरग ने ने 43 डिग्री तापमान वाली गर्म जगह पर केसर उगाने की तकनीक भी सीखी है. इसमें वह पौधों को ठंडा पानी देकर जमीन के तापमान को नियंत्रित करते हैं. आज यहां इतने घने पेड़-पौधे हैं कि गर्मी में दिन में तापमान 18 डिग्री और रात में 5 डिग्री के आसपास रहता है. 

जीव-जंतुओं का घर है केशर पर्वत  
सिर्फ तापमान ही नहीं, डॉ. गर्ग को पानी के संकट से भी जूझना पड़ा. टीम ने 600 फीट पर तीन बोर खोदे लेकिन पानी की तलाश खत्म नहीं हुई. इसलिए सिंचाई के लिए पानी के टैंकर खरीदे गए. बाद में पानी इकट्ठा करने के लिए एक तालाब बनाया गया. यही पानी ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पौधों को दिया जाता है. जैसे-जैसे पेड-पौधे लहलहाने लगे तो केशर पर्वत ने जीव-जंतुओं को आकर्षित किया है. यह घना जंगल 30 प्रकार के पक्षियों, 25 प्रकार की तितलियों और सियार, नील गाय, खरगोश, बिच्छू, जंगली सूअर और लकड़बग्घा जैसे जंगली जानवरों का घर है. 

केशर पर्वत घुमने आने वाले टूरिस्ट यहां बिना कोई फीस दिए घूम सकते हैं. यहां एक कॉन्फ्रेंस-कम-मेडिटेशन रूम है. दिव्यांग बच्चों के लिए एक सेंसरी गार्डन और एक क्रिकेट मैदान है. डॉ. गर्ग का लक्ष्य और 10,000 पेड़ लगाना और "पर्यावरण बचाओ; पृथ्वी बचाओ" का बड़ा लक्ष्य हासिल करना है.