कल होली का त्योहार है. घरों में गुजिया और स्वीट डिसेज बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. बाजारों में भी अलग तरह की रौनक देखने को मिल रही है. लोग कपड़ों से लेकर खाने पीने की चीजें खरीदने में लगे हैं. होली के बारे में आप में से ज्यादातर लोग काफी कुछ जानते हैं, मगर कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें होली के पीछे छुपी मान्यता और कहानी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.आज के आर्टिकल में हम आपको ऐसे ही कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपको जरूर पता होना चाहिए. तो आइए जानते हैं इन इंटरेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में.
कब मनाई जाती है होली-
होली का त्योहार हर साल वसंत ऋतु में मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक होली फाल्गुन मास की मनाई जाती है. वहीं इंग्लिश कलेंडर की बात करें तो होली ज्यादातर मार्च के महीने में मनाई जाती है, हालांकि कई बार फरवरी और अप्रैल के महीने में भी होली पड़ जाती है.
होली का इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो आर्यों के समय में इस त्योहार का प्रचलन था, मगर यह उस दौरान यह केवल भारत में ही मनाया जाता था. इस त्योहार के बारे में कई पुरातन धार्मिक किताबों में लिखा भी गया है जिससे पता चलता है कि लंबे समय से हमारी संस्कृति का हिस्सा है. नारद पुराण और भविष्य पुराण में भी इस त्योहार का जिक्र मिलता है. विंध्य क्षेत्र में रामगढ़ नामक स्थान पर करीब 300 साल पुराने अभिलेख मिले हैं, जिनमें होली में बारे में लिखा गया है. इतना ही नहीं संस्कृत भाषी कवियों ने भी होली का उल्लेख वसंतोत्सव नाम से अपनी कविताओं में बड़ी खूबसूरती से किया है.
कृष्ण और होली -
होली का जिक्र हो और तो श्री कृष्ण का जिक्र भी जरूरी हो जाता है. ब्रज में 16 दिन पहले से ही हर साल होली मनाई जाने लगती है जहां पर कृष्ण की पैदाइश हुई. बरसाना की लट्ठमार होली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. इसमें महिलाएं मोटी बांस की लाठियों से पुरुषों को मारती हैं और बचाव में पुरुष उनपर पानी डालते हैं. अगर पुरुष अपने आपको नहीं बचा पाते हैं तो महिलाएं उन्हें अपनी तरह से साड़ी पहनाती हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण गोपियों से ऐसे ही हार मान लेते थे और उन्हें भी साड़ी पहनकर नाचना पड़ता था.
रंग इस्लाम में हराम नहीं
700 साल पहले हज़रत अमीर ख़ुसरो की लिखी यह क़व्वाली आज भी काफ़ी लोकप्रिय है-
आज रंग है, हे मां रंग है री
मोरे महबूब के घर रंग है री
बाबा बुल्लेशाह ने लिखा है-
होरी खेलूंगी, कह बिसमिल्लाह,
नाम नबी की रतन चढ़ी, बूंद पड़ी अल्लाह अल्लाह.
मुग़ल होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पालशी कहते थे और बड़ी ही धूमधाम से उसे मनाते थे. अगर आप गूगल पर मुग़ल चित्र और ईद सर्च करेंगे तो आपको ईद की नमाज़ अदा करते जहांगीर की सिर्फ़ एक पेंटिंग मिलेगी लेकिन अगर आप मुग़ल और होली गूगल करेंगे तो आपको उस वक़्त के राजा और रानियों की तमाम पेंटिंग देखने को मिलेंगी, नवाब और बेगमों की होली मनाती तस्वीरें भी मिल जाएंगी.
पूरे मुग़ल सम्राज्य के दौरान होली हमेशा ख़ूब ज़ोर-शोर के साथ मनाई जाती थी. इस दिन के लिए खास तौर से दरबार सजाया जाता था.
लाल क़िले में यमुना नदी के तट पर मेला आयोजित किया जाता, एक दूसरे पर रंग लगाया जाता, गीतकार मिलकर सभी का मनोरंजन करते. राजकुमार और राजकुमारियां क़िले के झरोखों से इसका आनंद लेते.
बहादुर शाह जफर के शासनकाल में होली-
आखिरी मुगल बादशाह कहे जाने वाले बहादुर शाह जफर के जमाने की होली भी बेहद खास होती थी. खुद बहादुर शाह जफर भी होली खेलने के बेहद शौकीन थे और होली को लेकर उनकी लिखी एक काव्य रचना को आज तक सराहा जाता था.
क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी,
देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी।
भाग सकूँ मैं कैसे मो से भागा नहीं जात,
ठाड़ी अब देखूं और को सनमुच में आत।
बहुत दिनन में हाथ लगे हो कैसे जाने दूँ,
आज फगवा तो सं का था पीठ पकड़ कर लूँ।
जब फागुन रंग झांकते हों,
तब देख बहारें होली की।
जब देख के शोर खड़के हों,
तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों,
तब देख बहारें होली की।
बसंत खेलें इश्क़ की आ प्यारा,
तुम्हीं में चाँद में हूँ ज्यों सितारा।
जीवन के हौज़खाना में रंग मदन भर,
सो रोम रोम चारकिया लाये धरा।
नबी सादे बसंत खेलिए क़ुतुब शाह,
रंगीला हो रिहा तिर्लोक सारा।
ले अबीर और अरगजा भर कर रुमाल,
छिड़कते हैं और उड़ाते हैं गुलाल ।
ज्यों झड़ी हर सू है पिचकारी की धार,
दौड़ती हैं नारों बीजकी की सार।
गुलज़ार खिले हों परियों के,
और मजलिस की तैयारी हो ।
कपड़ों पर रंग के चीतों से,
खुशरंग अजब गुलकारी हो।
होली से जुड़ी कहानी-
वैसे तो होली के त्योहार से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं, मगर इनमें सबसे प्रसिद्ध कहानी भक्त प्रहलाद की है. कथा के मताबिक प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर रहा करता था, जिसे अपनी ताकत पर बहुत घमंड था. इस घमंड में हिरण्यकश्यप खुद को ही भगवान मानने लगा था और उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकशिपु के घर के पुत्र प्रहलाद का जन्म हुआ, जो कि एक ईश्वर भक्त था. इस बात का पता चलने के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई कठोर ठंड दिए, मगर हर बार भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ.
सभी तरीकों से तंग आने के बाद हिरण्यकश्यप ने यह बात अपनी बहन को बताई, जिसका नाम होलिका था. होलिका को यह वरदान दिया गया था कि वह आग में कभी भस्म नहीं होगी. हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वो प्रहलाद को आग में लेकर बैठ जाए, जिससे प्रहलाद भस्म हो जाए. होलिका ने बिल्कुल वैसा ही किया, मगर प्रहलाद की ईश्वर भक्ति की वजह से होलिका भस्म हो गई और प्रहलाद जीवित और सुरक्षित रहे. अच्छाई की बुराई पर जीत की खुशी में ही यह त्योहार मनाया जाता है.