आम ने सदियों से अपनी मीठी खुशबू और स्वाद से लोगों को खुश किया है. कई लोग गर्मियों का इंतजार ही मीठे और रसीले आम खाने के लिए करते हैं. भारतीय बेशक 4000 से भी ज्यादा साल से इस रसीले फल को उगा रहे हैं, लेकिन बाकी दुनिया के लिए आम करीब 400 साल पुराना ही है.
दुनिया में आम की 1500 से ज्यादा वैरायटी
भारतीय संस्कृति, भोजन और रीति-रिवाजों में आम की एक खास जगह है. समय के साथ, आम की विभिन्न किस्में विकसित की गईं, जिनमें से सभी का अपना स्वाद है. आज, भारत दुनिया में आमों के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है. दुनिया में आम की 1500 से ज्यादा वैरायटी है. जिनमें से 1000 तो केवल भारत में ही उगाए जाते हैं. इसमें मीठे और रसीले अल्फांसो से लेकर तीखी और रेशेदार तोतापुरी तक शामिल हैं.
आइए जानते हैं आम के राजा बनने की कहानी...
कहते हैं आम की खेती की शुरुआत लगभग 4000 ईसा पूर्व भारत और म्यांमार के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में हुई थी. वेदों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में आम का उल्लेख है. हिंदू पौराणिक कथाओं में आम के पेड़ को अक्सर प्रेम, उर्वरता और समृद्धि से जोड़ा जाता है. आम को सबसे पहला नाम आम्र-फल के नाम से जाना जाता था. इसे प्रारंभिक वैदिक साहित्य में रसाला और सहकार के रूप में भी संदर्भित किया गया है. उपनिषद और पुराणों में भी इस फल का जिक्र है. दक्षिण भारत पहुंचने पर आम को मामकाय के नाम से बुलाया जाने लगा. मलयाली लोगों ने इसे आगे चलकर मंगा में बदल दिया. केरल पहुंचने पर पुर्तगाली इस फल पर इस कदर मोहित हो गए कि दुनिया भर के लोगों को इसका स्वाद चखाया.
गिफ्ट के तौर पर होता था आम का इस्तेमाल
प्राचीन भारत में प्रतिष्ठित लोगों को उपाधियां प्रदान करने के लिए आम की किस्मों के नाम का इस्तेमाल किया जाता था. आम का पेड़ प्रेम के देवता मन्मथ से भी जुड़ा हुआ है. नंद शासन के दौरान ही सिकंदर भारत आया और अपने साथ कई तरह के स्वादिष्ट फल ले गया. इसमें से एक आम भी था. बौद्ध शासकों के बीच आम का उपहार के रूप में आदान-प्रदान किया जाता था. बौद्ध भिक्षु जहां भी जाते थे, अपने साथ आम ले जाते थे, और इस वजह से ये फल और भी लोकप्रिय हो गया. 16वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान आम की खेती खूब फली फूली. आम को लोकप्रिय बनाने और ग्राफ्टिंग से नई किस्मों को पेश करने में मुगल काल का अहम योगदान है.
अलग-अलग चीजों में इस्तेमाल होता है आम
भारत में आम की सबसे ज्यादा पैदावार महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में होती है. भारत में आमों की अलग-अलग प्रजातियां हैं, जैसे लंगड़ा, दशहरी, अल्फांसो, चौसा, आम्रपाली, मालदा. आम की लस्सी और आम की कुल्फी जैसी मिठाइयों से लेकर आम की चटनी और आम के अचार तक, हर डिश में आम फिट बैठता है. अल्फांसो को भारत के सबसे मीठे और रसीले आमों में गिना जाता है. वहीं लंगड़ा आम देशभर में सबसे पॉपुलर आम की वैरायटी है.
लंगड़ा आम की कहानी
लंगड़ा आम बनारस के एक पुजारी की देन हैं. कहा जाता है कि बनारस के एक छोटे से शिव मंदिर में एक पुजारी थे. एक बार उस मंदिर में एक साधु आए और उन्होंने मंदिर में आम के पौधे लगाकर उस पुजारी से कहा कि जब भी इसपर आम आने लगेंगे तो उसे सबसे पहले भगवान शिव पर चढ़ाना और उसके बाद लोगों में बांट देना. लेकिन इसकी कलम या गुठली किसी को मत देना...पुजारी ने ऐसा ही किया. जब भी उन पेड़ों पर फल आता, वो सबसे पहले भगवान शंकर को चढ़ाकर मंदिर में आने वाले भक्तों में प्रसाद के रूप में आम बांट देता. ये बात जब बनारस के राजा को पता चली तो उन्होंने पुजारी से उस आम की गुठली मांगी. पुजारी आम के प्रसाद को लेकर राजमहल गया और राजा को आम की कलम सौंप दी, जिन्हें बगीचे में लगा दिया गया. बाद में इसके फल का स्वाद पूरे बनारस ने चखा. साधु ने जिस पुजारी को आम के पेड़ सौंपे थे, उन्हें लोग 'लंगड़ा पुजारी' के नाम से जानते थे. इसलिए इस आम को लंगड़ा आम कहा गया.
यूं तो अगस्त तक बाजार आम की किस्मों से भरा रहता है, लेकिन सीजनल आम की शुरुआत मार्च-अप्रैल से होती है. आम के सीजन के अंतिम दौर में दशहरी आम आते हैं.