Yamuna In Delhi: साल 1994 के बाद से, यमुना नदी का लगातार बढ़ता प्रदूषण एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया था. ये वो दौर था जब भारत के सुप्रीम कोर्ट में ‘मैली यमुना’ का मामला उठाया गया. नतीजतन, नदी को साफ करने के कई प्रयासों के बाद भी कोई सफलता नहीं मिली और यमुना नदी की सेहत बिगड़ती चली गई. देश में ऐसी कई सारी नदियां हैं जिन्हें बचाने की जद्दोजहद में सरकार और आम जनता लगी हुई है. देशभर के पर्यावरणविद भी इन नदियों को साफ करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. लगभग 5.7 करोड़ लोग यमुना के पानी पर निर्भर हैं. लगभग 10,000 क्यूबिक मीटर के सालाना प्रवाह और 4,400 सीयूएम (जिसमें से 96 प्रतिशत सिंचाई होती है) के उपयोग के साथ, दिल्ली की जलापूर्ति का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा इसी नदी से पूरा होता है. यमुना जिए अभियान के कन्वीनर और पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों के विशेषज्ञ मनोज मिश्र GNT डिजिटल से बात करते हुए बताते हैं कि कई सारे प्लान और अभियानों के बाद भी यमुना पर कोई असर नहीं पड़ा. ऐसे में जरूरी है कि सभी मिलकर इसपर ध्यान दें और किसी एक विभाग को जिम्मेदारी सौंपी जाए. ताकि इसे साफ किया जा सके.
1984 से पहले साफ हुआ करती थी यमुना
दरअसल, दिल्ली की बात करें तो यहां बनारस के अस्सी घाट की तरह ही कई घाट हैं. लाल किला मेट्रो स्टेशन से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर यमुना घाट है. वहां रह रहे पुजारी रामकिशन अपनी 5 पीढ़ियां यहां बिता चुके हैं. वे उस समय की बात बताते हैं जब नदी साफ हुआ करती थी. उन्होंने बताया कि साल 1984 से पहले दिल्ली में यमुना नदी साफ हुआ करती थी. लेकिन उसके बाद गंदगी फैलनी शुरू हो गई. दरअसल, यहां ज्यादातर घाट में पुजारियों के परिवार ही बसे हैं. ये लोग यहां सदियों से रह रहे हैं. रामकिशन खुद पिछले 45 सालों से यहां पूजा कर्म-कांड कर रहे हैं.
यूं तो पिछले 1 दशक में यमुना की सफाई को लेकर कई अभियान चलाए गए हैं. लेकिन यमुना जिए अभियान के कन्वीनर मनोज मिश्र के मुताबिक, इन सबका कोई असर नहीं पड़ा. हालांकि, कोरोना काल में लगे लॉकडाउन में यमुना खुद साफ हो गई थी. मनोज मिश्र कहते हैं, “यमुना को हमने अलग-अलग रूप में देखा है. समय-दर-समय यमुना की स्थिति दिल्ली और हाथनी कुड के बाद बद-से बदतर होती चली गई. 1994 में पहला यमुना एक्शन प्लान आया, फिर 2002 में दूसरा एक्शन प्लान आया फिर 2012 में फेज 3 आया, लेकिन इन सबके बावजूद, यमुना पर कोई असर नहीं पड़ा. बस एक समय को छोड़कर… वो था कोविड-19 काल, जब लॉकडाउन लगा था. अप्रैल 2020 में यमुना ने अपने आप खुद को स्वस्थ कर लिया था. इससे हमारे सामने यमुना या बाकी नदियों के स्वास्थ्य का रहस्य उजागर हुआ. दरअसल, ये इसलिए हुआ क्योंकि लोग अपने घरों में बंद हो गए थे, और इंडस्ट्रियल एक्टिविटी सारी बंद हो गई थी. मार्च आखिर में यमुना के कैचमेंट में अच्छी बारिश हुई, तो इससे हथिनी कुंड के नीचे पूरा पानी यमुना में ही बहा. यमुना नीचे तक कई हद तक साफ होती चली गई.”
यमुना में जाता है इंडस्ट्रीज से निकला हुआ वेस्ट
बता दें, दिल्ली यमुना में हर 2,000 मिलियन लीटर (एमएलडी) से ज्यादा गंदगी डिस्चार्ज करती है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (1993)की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 31.8 एमएलडी सीवेज को नदी में निपटान के लिए पर्याप्त रूप से ट्रीट किया जाता है. इसपर मनोज मिश्र बताते हैं कि वैसे तो ये नियम है कि इंडस्ट्री से कोई भी लिक्विड बाहर नहीं आना चाहिए. लेकिन जितनी गंभीरता से इसे लिया जाना चाहिए वो नहीं लिया जाता. वे कहते हैं, “दिल्ली जैसे शहर में कई गैरकानूनी इंडस्ट्रियल एक्टिविटी या उनसे होने वाला जो प्रवाह है, वो हो रहा है. ऐसे में जबतक इन्हें नहीं रोका जाएगा, तबतक कुछ नहीं हो पाएगा. और ये केवल दिल्ली की ही बात नहीं है बल्कि हरियाणा, पानीपत, गाजियाबाद जैसी जगहों पर भी ऐसे ही हालात हैं.”
यमुना के आसपास होने वाली खेती कितनी जिम्मेदार?
दरअसल, कई रिपोर्ट्स मानती हैं कि यमुना के आसपास हो रही खेती में किसान केमिकल फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके कारण यमुना दूषित हो रही है. 2015 में और फिर 2019 में, एनजीटी ने अपने आदेश में यमुना मैदान पर किसी भी तरह की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसका कारण बताते हुए एनजीटी ने कई एजेंसियों का हवाला देते हुए कहा था कि यमुना नदी के प्रदूषित पानी के कारण आसपास के मैदानों में उगाई जाने वाली सब्जियां संभावित रूप से जहरीली हो सकती हैं.
हालांकि, इसपर मनोज मिश्र कहते हैं कि, “नदियों के आसपास हो रही खेती में भी कई प्रकार हैं. जैसे तरबूज-खरबूज, या कोई भी खेती जबतक उसमें सिंथेटिक केमिकल फ़र्टिलाइज़र इस्तेमाल नहीं हो रहे हैं तब तक वो वैध है. लेकिन किसानों ने केमिकल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो इससे नुकसान होना शुरू हुआ. लेकिन ये कहना कि खेती की वजह से यमुना की ये हालत हुई है, ये सरासर गलत है. एनजीटी ने भी ‘मैली से निर्मल यमुना’ केस में अपने 13 जनवरी 2015 के जजमेंट में कहा था कि आसपास के इलाकों में खेती तब तक वैध है जबतक आप खाने वाली चीजों की खेती कर रहे हैं. एनजीटी ने कभी किसानों को हटाने के लिए नहीं कहा था, लेकिन उन्होंने कहा था कि आप किसानों को ऐसी खेती करने से रोकिए. लेकिन पूरा जिम्मेदार इसका किसानों को ठहरना गलत है.”
नदियों को साफ करना नहीं बल्कि जीवित करना है मकसद
आखिर में मनोज मिश्र कहते हैं, “दिल्ली में 202 यमुना हैं. इसमें 1 यमुना जिसे हम देखते हैं और 201 ड्रेनेज. ये अपने आप में एक तंत्र है. और जबतक हम यमुना की चिंता के साथ इन 200 ड्रेन की चिंता नहीं करेंगे तबतक इसे साफ नहीं किया जा सकेगा. दिल्ली में यमुना की हालत इसलिए भी ऐसी है क्योंकि इसे साफ करने वाले दावेदार बहुत हैं. 10-12 विभाग इसकी जिम्मेदारी ले लेंगे तो वे अपने अपने हिसाब से काम करेंगे. किसी एक की जवाबदेही होनी चाहिए क्योंकि हमारी नदियों को साफ करने की नहीं बल्कि जीवित करने की जरूरत है.
2015 में एनजीटी ने दिया था जजमेंट
दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2015 में यमुना को लेकर अपना जजमेंट दिया था. इसमें उन्होंने यमुना में कचरा फेंकने वाले लोगों पर 5,000-50,000 रुपये का जुर्माना देने की बात कही थी. जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एनजीटी की एक बेंच ने "मैली से निर्मल यमुना प्रोजेक्ट 2017" की रिपोर्ट में ये बात कही थी. इसमें प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों, सीवेज पानी के ट्रीटमेंट को लेकर कई चीजें कही गई थी. इसी को लेकर मनोज मिश्र कहते हैं, “यमुना के लिए एनजीटी ने 2015 में इतना सटीक रोडमैप बनाकर दिया था. अगर कोई एक्शन लेना है तो वो इंडस्ट्री से जीरो लिक्विड डिस्चार्ज होना चाहिए. दूसरा, अवैध इंडस्ट्रियल गतिविधियों को बंद करना होगा. और तीसरा पानी के बहाव को सही करना. अगर एकबार कोरोना के समय में यह हो चुका है तो अब भी हो सकता है. एनजीटी का 2015 का जो जजमेंट था अगर उन सब बातों को मान लिया जाए तो यमुना या देश की किसी भी मरती हुई नदी को बचाया जा सकता है.”