पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में, पारंपरिक गुड़ और खांडसारी उद्योग में बदलाव हो रहा है. एक समूह यहां एडवांस टेक्नोलॉजी से गुड़ और खांड़सारी बना रहा है. के.पी सिंह नाम के एक शख्स ने देश का पहला प्रदूषण मुक्त गुड़ प्लांट बनाया है. ये हंस हेरिटेज जैगरी एंड फार्म प्रोड्यूस के मालिक हैं.
गुड़ उत्पादन के लिए जाना जाने वाला पश्चिमी यूपी अनोखे तरीके से इसका उत्पादन कर रहा है. बलरामपुर चीनी मिल, द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों ने मिलकर ऐसा किया है. के. पी सिंह ने शामली जिले की उन्न तहसील में भारत का पहला ऑटोमेटेड प्रदूषण मुक्त गुड़ प्लांट स्थापित किया है. एडवांस टेक्नोलॉजी और टिकाऊ चीजों में निवेश करने के उद्देश्य से ये पहल की गई है.
अनोखे तरीके से हो रहा गुड़ का उत्पादन
परंपरागत रूप से, गुड़ बनाने में मानव श्रम और कोल्हू (क्रशिंग यूनिट) जैसे प्राइमरी डिवाइस और गन्ने के रस को उबालने के लिए खुले पैन शामिल होते हैं. लेकिन के पी सिंह ने जो प्लांट बनाया है उसमें एडवांस क्रशर और प्लेट इवेपोरेटर लगाया गया है. ये पारंपरिक तरीकों से हटकर बनाया गया है.
के पी सिंह की गुड़ यूनिट 500 किलोवोल्ट-एम्पीयर (400 किलोवाट) कनेक्शन के माध्यम से ग्रिड पावर पर चलती है. इसमें कोई बायोमास नहीं जलाया जा रहा है. गन्ने की पेराई से जो भी खोई मिलती है उसे बेच दिया जाता है. रस को उबालना प्लेट इवेपोरेटर में होता है, खुले पैन में नहीं. इससे जो रस निकलता है उसे सबसे पहले एक हीट पंप और फिर कंप्रेसर से निकाला जाता है. फिर इस गुड़ को ठंडा और सेट होने के लिए स्टेनलेस स्टील के सांचों में डाला जाता है.
कैसे बनता है गुड़?
पारंपरिक गुड़ बनाने वाले जो कोल्हू होते हैं उनमें वर्टीकल रोलर के साथ एक सिंगल डीजल इंजन चालित क्रशर होता है. वे गन्ने से जो रस निकालते हैं, उसे खुले बर्तनों में उबाला जाता है. ये उबालने वाला प्रोसेस कम से कम तीन और कभी-कभी चार बार किया जाता है. पहले पैन में भिंडी (भिंडी) के पौधे के तने से बने चिपचिपे घोल के साथ रस को लगभग 75 डिग्री सेल्सियस तक उबाला जाता है. इसके बाद इसमें मौजदू अशुद्धियों को अलग किया जाता. ये अशुद्धि सतह पर जम जाती है. इससे निकले हुए रस को अगले दो पैन में 110 डिग्री या उससे अधिक तापमान पर उबाला जाता है. उबले हुए इस सिरप को आखिर में एक समतल मंच पर ले जाया जाता है, जहां यह ठंडा होता है और गुड़ बनता है.
गुड़ भी है अलग
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, के पी सिंह के प्लांट में तैयार गुड़ भी अपने प्राकृतिक काले रंग और बेहतर स्वाद से अलग है. इस गुड़ में ऊपर से कोई भी चीज नहीं डाली गई है. पारंपरिक कोल्हू से अलग, जिसमें उबालने की प्रक्रिया के दौरान मसाला और चीनी मिलाई जाती है. यही वजह है कि इस गुड़ का रंग और स्वाद एकदम हटकर है. ये प्रीमियम गुड़ है.
ठीक ऐसे ही, पड़ोसी जिले मुजफ्फरनगर में, उद्यमी यशपाल मलिक लिमिटेड, 'फ़्रेयर' और 'किसान श्री' ब्रांडों के तहत गुड़ और खांडसारी बना रहे हैं.
बड़ रही है गुड़ की मांग
हालांकि, नए तरह से गुड़ और खांडसारी मेन्युफेक्चरिंग यूनिट के आ जाने से चीनी उद्योग के दूसरे लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन कहीं न कहीं यह किसानों और उपभोक्ताओं के लिए नए अवसर प्रस्तुत कर रहा है. प्राकृतिक शुगर या गुड़ की मांग मार्किट में लगातार बढ़ रही है. ये दूसरी किसी भी मीठे से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक है. और इसीलिए इसकी मांग बढ़ रही है.
इस गुड़ प्लांट को जनवरी 2023 के पहले सप्ताह में चालू किया गया था. इसे लेकर के पी सिंह कहते हैं, “2022-23 सीजन (नवंबर-अप्रैल) में ), हमने 4,000 टन गन्ने से 400 टन गुड़ का उत्पादन किया था. इस सीजन में, हम 12,000 टन की पेराई कर सकते हैं और 15% औसत रिकवरी पर 1,800 टन का उत्पादन कर सकते हैं.”