भारत के सफल कारोबारियों में से एक जमशेदजी जीजीभॉय का जन्म 15 जुलाई 1783 को एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम मेरवानजी मैकजी जीजाभाई और माता का नाम जीवीबाई कावाजी जीजाभाई था. जमशेदजी जीजीभॉय जब महज 16 साल के थे तभी 1799 में उनके माता-पिता का देहांत हो गया.
नाम जमशेद से बदलकर जमशेदजी रख लिया
माता-पिता की मौत के बाद गुजरात से जमशेदजी जीजीभॉय अपने अंकल फ्रामजी नासरवानजी बाटलीवाला के पास बॉम्बे आ गए और उन्हीं के काम में लग गए. माता-पिता का देहांत हो जाने से परिवार का पूरा भार जीजाबाई के ऊपर आ गया. छोटी उम्र में घर-परिवार चलाने के लिए उन्हें पुरानी बोतलें तक बेचनी पड़ी. आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके. उन्होंने 1803 में अपने अंकल की बेटी अवाबाई से शादी की और मुंबई में बस गए. यही वह समय था जब उन्होंने अपना नाम जमशेद से बदलकर जमशेदजी रख लिया. कपास के व्यापार से जुड़ गए थे.
व्यापार के लिए चीन गए
जीजीभॉय में बड़ी व्यवसाय-बुद्धि थी. व्यवहार से उन्होंने साधारण हिसाब रखना और कामचलाऊ अंग्रेजी सीख ली थी. उन्होंने अपने व्यापार का देश के बाहर विस्तार किया. कपास के व्यापार के लिए पहले कलकत्ता और फिर चीन गए. भाड़े के जहाजों में चीन के साथ वस्तुओं का क्रय-विक्रय करने लगे. वह जब 20 वर्ष के थे तभी उन्होंने पहली चीन यात्रा की थी. कुल मिलाकर वे पांच बार चीन गए. अपनी चौथी यात्रा के समय वे एक प्रतिष्ठित बिजनेसमैन बन चुके थे.
बना लिया गया बंधक
जीजीभॉय ने अपनी दूसरी चीन की यात्रा ईस्ट इंडिया कंपनी के एक जहाज में की थी. यह वह दौर (1803-1815) था, जब ब्रिटेन और फ्रांस आमने-सामने थे. दोनों के बीच जंग जारी थी. जमेशदजी ने तीन बार अपनी यात्रा बच-बचाकर की लेकिन चौथी बार में उन्हें फ्रांसीसी ने पकड़ा और साउथ अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप में बंधक बना लिया गया.
चार महीने तक जेल में रहे बंद
जीजीभॉय करीब 4 महीने साउथ अफ्रीका की जेल में बंद रहे. इसी दौरान उनकी मुलाकात ईस्ट इंडिया कंपनी नवल शिप के डॉक्टर विलियम विलियम जार्डिन से हुई. यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था, जहां से उन्हें अमीर बनने का रास्ता मिला. जार्डिन, कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले थे और हॉन्ग कॉन्ग में अपना नया बिजनेस शुरू करने वाले थे. उन्होंने जमेशदजी के सामने उनके बिजनेस से जुड़ने का प्रस्ताव रखा. जमशेदजी और जार्डिन ने मिलकर चीन में अफीम का कारोबार किया और खूब पैसा कमाया. उस समय चीन में अफीम का कारोबार लीगल था.
दान में दिए लाखों रुपए
जमशेदजी जीजीभॉय ने 40 वर्ष की उम्र तक 2 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई कर ली थी. वह इंडिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हो गए थे. पैसा कमाने के बाद वे अब नाम कमाना चाहते थे. उन्होंने कुओं और बांधों का निर्माण, सड़कों और पुलों का निर्माण, औषधालय स्थापना, शिक्षण संस्थाएं, पशुशालाएं, अनाथालय आदि सभी के लिए धन दिया. उनकी आर्थिक सहायता से स्थापित संस्थाओं में प्रमुख हैं जेजे अस्पताल, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, पूना बांध और जल संस्थान. अनुमानतः उस समय उन्होंने 30 लाख रुपए से अधिक का दान दिया था.
महारानी विक्टोरिया ने किया था सम्मानित
जमशेदजी जीजीभॉय 1834 में शांति के न्यायधीश के रूप में नियुक्त पहले भारतीयों में से एक बन बन गए, जो कि वास्तविक नगरपालिका प्राधिकरण, पेटी सेशंस के न्यायालय में एक पद था. 1842 में, वह शूरवीर होने वाले पहले भारतीय बने, आधिकारिक तौर पर उनके नाम के साथ एक SIR जोड़ा गया. महारानी विक्टोरिया के हाथों सम्मानित होनेवाले वह पहले भारतीय थे. सांप्रदायिक भेदभाव से दूर रहनेवाले जीजाभाई ने महिलाओं की स्थिति सुधारने और पारसी समाज की बुराइयां दूर करने के लिए भी अनेक कदम उठाए. 14 अप्रैल 1959 को उनकी मृत्यु हो गई. सर जमशेदजी जीजीभॉय के निधन के बाद मुंबई में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई.