जापान ने शवों से पैसे कमाने का तरीका खोज निकाला है. जापान ने इससे लाखों रुपये भी कमा लिए हैं. मृत लोगों के अवशेषों का उपयोग करके ये पैसे कमाए जा रहे हैं. इसमें मृतकों के साथ जो कीमती धातुएं रखी जाती हैं, ये पैसे उससे कमाए गए हैं. इतना ही नहीं बल्कि कई जापानी शहरों के लिए ये इनकम का एक सोर्स बन गया है.
जापान भर में, शव की राख से सोना, पैलेडियम और चांदी जैसी धातुओं को निकाला जा रहा है. ये धातुएं आमतौर पर डेंटल क्राउन, फिलिंग, आर्टिफिशियल जॉइंट और मेटल पिंस जैसी चीजों से मिलती हैं. यह जापान के शहरी खनन का एक नया हिस्सा बन चुका है, जिसमें कचरे का इस्तेमाल पैसे कमाने के लिए किया जा रहा है.
श्मशानों से मुनाफा
शहरी खनन (Urban mining) जापान में कुछ समय से चर्चा का विषय बना हुआ है. इसमें प्रोडक्ट्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर और कचरे से मूल्यवान धातुएं निकाली जाती हैं. प्राकृतिक संसाधनों की कमी से जूझ रहे जापान ने अपने कचरे से पैसा कमाने का अवसर ढूंढा है. शहरी खदान में सोना, चांदी और पैलेडियम जैसी धातुएं फेंके गए इलेक्ट्रॉनिक्स, जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप और दूसरे डिवाइस से निकाली जाती हैं. हालांकि, हाल ही में श्मशान को भी इसमें शामिल कर लिया गया है.
असाही न्यूजपेपर की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि टोक्यो जैसे शहरों ने शवदाह से मिली धातुओं से मुनाफा कमाया है. 2007 में, टोक्यो मेट्रोपॉलिटन सरकार ने शवदाह से मिली कीमती धातुओं की बिक्री से 3.2 मिलियन येन (लगभग 27,70,912 रुपये) कमाए हैं. इसमें 700 ग्राम सोना, 500 ग्राम पैलेडियम और 1.9 किलोग्राम चांदी शामिल थी.
नागोया में स्थित जापान के सबसे बड़े श्मशानों में से एक ने एक साल में 12 किलोग्राम धातु इकट्ठी की, जिसकी कीमत 10 मिलियन येन (लगभग 59,02,719 रुपये) से ज्यादा थी.
कुछ लोग कर रहे इसका विरोध
मुनाफे के बाद भी ये पूरी प्रक्रिया नैतिक रूप से अजीब लग सकती है. जापान के कई लोगों के लिए अपने प्रियजनों के अवशेषों से मुनाफा कमाने का विचार स्वाभाविक रूप से अपमानजनक है. जापान सोसाइटी ऑफ एनवायरनमेंटल क्रेमेटरी के युजी मोरियामा ने इसको लेकर कहा, “प्रियजनों के अवशेषों को उसी सम्मान के रखा जाना चाहिए जैसे शवदाह से पहले किया जाता है. जो भी राख और हड्डियां बची हुई हैं उन्हें पास के बौद्ध मंदिर में ले जाकर पूजा और देखभाल करनी चाहिए.”
परिवार वाले नहीं ले जाते बची हुई राख
कानूनी रूप से, देखा जाए तो जापानी अधिकारी गलत नहीं हैं. 1939 में जापान की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि शवदाह से बची हुई राख, को उनके परिवार वाले नहीं ले जाते हैं, जिससे ये अपने आप नगरपालिका की संपत्ति बन जाती है. इसका मतलब है कि अवशेषों से जो कुछ भी निकाला गया है, वह नगरपालिका का है. शवदाह के बाद परिवार आमतौर पर राख और हड्डियों के कुछ बड़े टुकड़े लेता है और उन्हें अपने परिवार के प्लॉट या मंदिर में दफनाने के लिए कलश में रखता है. बाकी राख वहीं छोड़ दी जाती है और इन्हीं अवशेषों से धातु निकाली जाती हैं.
बड़ी सावधानी से किया जाता है काम
इन धातुओं को निकालने की प्रक्रिया काफी सावधानी से की जाती है. परिवार के कलश लेकर जाने के बाद श्मशान में राख और हड्डियों के टुकड़े बचते हैं. डेंटल वर्क में अक्सर सोना, चांदी और पैलेडियम होता है, और टाइटेनियम या कोबाल्ट-क्रोमियम मिक्स्ड मेटल से बने आर्टिफिशियल ऑर्गन्स अक्सर इन मूल्यवान धातुओं के स्रोत होते हैं. धातु को पिघलाया जाता है और साफ किया जाता है, और फिर बाजार में बेचा जाता है ताकि पैसे कमाए जा सके.