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बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद भी नहीं डिगा विश्वास, आज खेती कर छोटेलाल बने मां-बाप का सहारा

झारखंड के लातेहार के रहने वाले छोटेलाल ने बचपन में ही आंखों की रोशनी खो दी थी. गरीब होने के कारण उनके मां-बाप उनका इलाज नहीं करवा सके. लेकिन छोटेलाल का विश्वास कभी डिगा नहीं और आज वो अपने मां-बाप का सबसे बड़ा सहारा हैं.

बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद भी नहीं डिगा छोटेलाल का विश्वास बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद भी नहीं डिगा छोटेलाल का विश्वास
हाइलाइट्स
  • बचपन में चली गई थी आंखों की रोशनी

  • परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने की ठानी

कहते हैं जिनके हौसले बुलंद होते हैं, वो कभी भी अपनी कमियों पर आंसू नहीं बहाते हैं. वो हमेशा परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ते हैं. झारखंड के लातेहार जिले सालोडीह गांव के रहने वाले दिव्यांग छोटेलाल उरांव इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. वैसे तो छोटेलाल नेत्रहीन हैं, लेकिन उन्हें देखकर इस बात का पता लगाना बेहद मुश्किल है. छोटेलाल उरांव पूरी तरफ से नेत्रहीन होने के बावजूद एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपने खेतों में खेती करते हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. आज छोटेलाल पूरे समाज के लिए मिसाल हैं.

बचपन में चली गई थी आंखों की रोशनी
दरअसल जब छोटे लाल ढाई साल के थे, उस वक्त किसी बीमारी की वजह से उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. माता-पिता काफी गरीब थे. इससे छोटेलाल का किसी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं करा सके. ढाई साल की उम्र में ही छोटेलाल उरांव पूरी तरह नेत्रहीन हो गए. छोटेलाल की आंखों की रोशनी जाने के बाद उनके माता-पिता काफी परेशान थे. आलम यह था कि गरीबी के कारण नेत्रहीन छोटेलाल को किसी ब्लाइंड स्कूल में भी नहीं भेज सके.

परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने की ठानी
हालांकि, छोटेलाल जैसे-जैसे बड़े होते गए, वैसे उन्होंने परिस्थितियों से समझौता करने के बदले लड़कर जीवन में आगे बढ़ने का निश्चय किया. छोटेलाल कहते हैं कि बचपन में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई. इसके बावजूद हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य तरीके से चलाने का प्रयास किया .

नेत्रहीन होने के बावजूद करते हैं खेती 
छोटेलाल आज दिव्यांग होने के बावजूद साइकिल भी चला लेते है. वही छोटेलाल के पिता एतवा उरांव कहते हैं कि गरीबी के कारण छोटेलाल का किसी बड़े अस्पताल में इलाज नहीं करा पाए. इससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई.  लेकिन नेत्रहीन होने के बावजूद छोटेलाल खेती से लेकर खाना बनाने तक का काम आसानी से कर लेता है. छोटेलाल उरांव ने सबसे पहले अपने पिता के साथ मिलकर खेती करना शुरू किया. धीरे-धीरे छोटेलाल खेतों में फसल लगाने, पटवन करने के साथ साथ फसल काटना सब कुछ सीखा, और आज छोटे लाल खेती करके अपने मां-बाप का भरण पोषण करता है.

आम लोगों की तरह बिता रहे हैं जीवन
छोटेलाल उरांव बिल्कुल सामान्य लोगों की तरह साइकिल भी चला लेता है. वह अपने गांव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लातेहार जिला मुख्यालय आकर सामान्य लोगों की तरह खरीदारी भी करता है. शादी के बाद जब छोटेलाल की जिम्मेदारी बढ़ी तो उसने अपने खेती का दायरा भी बढ़ा लिया. छोटेलाल अब अपने खेतों में सालों भर कुछ ना कुछ खेती करता है. छोटेलाल उरांव ने बताया कि सरकार से सिर्फ दिव्यांगता पेंशन मिलता है. उन्होंने कहा कि रोजगार के लिए सरकारी सहायता मिले तो वह अपने जीवन को और आसान बना सकते है.  

(लातेहार से संजीव गिरी की रिपोर्ट)