राजस्थान अपने इतिहास, संस्कृति और पर्यटन के लिए जाना जाता है. यहां के त्योहार का अपना अलग ही रंग है. ऐसा ही एक आयोजन जोधपुर में होता है जिसे धींग गवर पूजन कहते हैं. यह विशेष इसलिए है क्योंकि इसमें सिर्फ महिलाएं हिस्सा लेती हैं. इस पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सड़कों बेत लेकर घूमती हैं और उनसे मार खाने के लिए कुंवारे लड़के मनुहार करते हैं. ऐसी मान्यता है कि धींगा गवर पूजा के दिन महिलाओं से बेंत खाने से जल्दी शादी हो जाती है. इसलिए कहा जाता है कि जिन लड़कों की शादी नहीं हो रही हो वो अगर इनसे मार खा ले तो उसकी शादी जल्दी हो जाती है.
कई साल पुरानी है परंपरा
जोधपुर में धींगा गवर की परंपरा 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है. इस परंपरा की शुरुआत राव जोधा राज परिवार से शुरू हुई थी. कहा जाता है कि मां पार्वती ने सती होने के बाद दूसरा जन्म धींगा गवर के रूप में लिया था इसलिए पार्वती के रूप में धींगा गवर की पूजा होती है. एक मान्यता ये भी है कि पुराने जमाने में भाभियां देवर को छड़ी से मारकर कुंवारा बताती थी जिसके बाद अन्य भाभियां भी देवर को छड़ी से मारकर कहती थी कि अब इसकी जल्दी शादी हो जाएगी. यहां बेंत खाने को प्रसाद माना जाता है. मार खाने के लिए यहां लड़के इकठ्ठा होते हैं.
16 दिन तक होती है पूजा
धींगा गवर की 16 दिनों तक पूजा होती है. 16वें दिन यहां मेला लगता है और लड़के महिलाओं से बेंत खाने के लिए आते हैं. इस दौरान जो पुरुष सामने आता है, उसे बेंत से मार पड़ती है. कहा जाता है कि जिस युवक की शादी नहीं हुई है, धींगा गवर के पूजन के बाद मार खाने के बाद उसकी शादी जल्दी हो जाती है.
12 घंटे महिलाएं रखती हैं निर्जल व्रत
इस पूजा को करने के नियम काफी कठोर हैं. पूजा करने वाली महिलाएं दिन में 12 घंटे निर्जला रहती हैं और नमक छूती तक नहीं है. महिलाएं दिन में एक ही समय खाना खाती हैं. 15वें दिन वे कुंए और तालाब से पानी भरकर घर लाती हैं. महिलाएं हाथ पर बंधे डोरे पर कुमकुम से 16 टीके लगाती हैं. पूजा करने के बाद डोरे कुमकुम से रंगे जाते हैं. उसके बाद आरती होती है. फिर कहानी सुनी जाती है. कहानी सुनने के बाद गवर माता को भोग लगाया जाता है.