कई बार जिंदगी खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जी जाती है. राजस्थान के जोधपुर की रूमा देवी का नाम हर कोई जानता है. 40 हजार से भी ज्यादा महिलाओं को रोजगार दिला चुकी रूमा खुद जिंदगी में संघर्ष की एक मिसाल है. पर कहते हैं कि मंजिल उनको मिलती है जो खुद के लिए नहीं दूसरो की राहें तलाश करते हैं. रूमा ने सांस्कृतिक विरासत के जरिए बाड़मेर और राजस्थान के हजारों महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया. उनकी उपलब्धि अमेरिका तक जा पहुंची है. सफोक काउंटी एग्जीक्यूटिव के कार्यक्रम में उनको सम्मानित किया गया है.
कठिनाइयों में बीता जीवन
रूमा देवी राजस्थान की कला और संस्कृति की पहचान को अब देश और विदेश तक पहचान दिला चुकी है. कभी सफर की अकेले शुरुआत करने वाली रूमा देवी के करवां में हजारों महिलाएं हैं. रोजगार महिलाओं के लिए कितना जरूरी है और उससे जीवन यापन में कितनी मदद मिलती है ये बात वो देश भर में घूम घूम कर महिलाओं को समझा रही हैं. रूमा देवी कहती हैं कि उनका जीवन बेहद कठिनाइयों में बीता. जब वो पांच साल की थी तब उनकी मां की मौत हो गई. घर के हालात सही नहीं थे इस कारण पढ़ाई भी जल्दी ही छूट गई. वो कहती हैं कि एक समय था जब वो लगभग दस किलोमीटर दूर से पानी भरकर बैलगाड़ी से घर तक लाती थीं.
बेटे की मौत ने झकझोर दिया
एक घटना ने रुमा देवी के जीवन को बदल दिया. पैसे के अभाव में इलाज नहीं मिलने पर डेढ़ साल के बेटे को खोने के गम ने रुमा देवी को एक तरफ तोड़ दिया तो दूसरी तरफ कुछ बड़ा करने की प्ररेणा दी. रूमा ने उसी समय ठान लिया कि जो उनके साथ हुआ है वो किसी और के साथ नहीं होने देगी. पैसे के अभाव में आम जन कोई दिक्कत नही उठाएगा. हर महिला स्वावलंबी होगी. उसके पास रोजगार होगा. रूमा देवी ने अपने हुनर को आजमाने की सोची. हस्तशिल्प के काम को शुरू किया. महिलाओं को जोड़ा और अपने काम को विदेशों तक पहुंचा दिया. उनके काम को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी है.
40 हजार महिलाओं को बना चुकी हैं आत्मनिर्भर
रूमा देवी के विचार और कार्य को दुनिया भर में सराहा जा रहा है. अमेरिका में सफोक काउंटी एग्जीक्यूटिव के कार्यक्रम में उनको सम्मानित किया गया. तो वहीं भारत में भी राज्य सरकारों के साथ उन्होंने mou साइन किया है. जिससे हस्तशिल्प कला के जरिए महिलाओं को रोजगार दिया जा सके और उनके भविष्य सुधारा जा सके. अब तक रूमा देवी बाड़मेर के मंगला की बेड़ी गांव सहित तीन जिलों के 75 गांव की 40 हजार महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. एंब्रोडरी कला को नई तरह से प्रयोग कर उन्होंने हजारों महिला दस्तकारों के जीवन में खुशियों भर दी है.