कर्नाटक के मंगलुरु शहर में लगीं तीस से ज्यादा बेंचों को बनाने में खाली और बेकार प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया गया है. जी हां, आजकल बहुत से लोग या संगठन इन बेकार प्लास्टिक की बोतलों को पर्यावरण में फेंकने की बजाय इन्हें रिसायकल करके उपयोगी चीजें बना रहे हैं. मंगलुरु में इन बोतलों से इको-ब्रिक बनाकर बेंच बनाई जा रही हैं. और यह पहल की है केनरा ऑर्गनाइजेशन फॉर डेवलपमेंट एंड पीस (सीओडीपी) ने.
अलग-अलग जगह से इकट्ठा की जाती हैं बोतलें
मंगलुरु के पब्लिक स्पॉट जैसे फजिर चर्च, मॉर्गन के गेट पार्क, कादरी पार्क और फादर मुलर जैसी जगहों पर ये इको-ब्रिक से बनी बेंचों को लोगों के बैठने के लिए लगाया गया है. आपको बता दें कि इको ब्रिक बनाने के लिए 1-लीटर और 2-लीटर की बोतलों दूसरे प्लास्टिक वेस्ट जैसे स्ट्रॉ, रैपर्स, पॉलिथीन आदि से पूरा भरा जाता है. इन बोतलों को वेस्ट से इतना ठूंस कर भरा जाता है.
प्लास्टिक को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया जाता है: स्थानीय बेकरी, 400 सेवा संघ और CODP के अपने बैंक्वेट हॉल के समारोहों आदि से. कसकर पैक की गई पत्थर जैसी बोतलों को "इको-ब्रिक्स" कहा जाता है. बताया जा रहा है कि एक जर्मन छात्रा, इडा नित्शे, अपने दो दोस्तों के साथ मंगलुरु आई थी और उन्होंने ये इको-ब्रिक्स बनाना लोगों को सिखाया.
फिलीपींस में है पहला इको-ब्रिक स्ट्रक्चर
दुनिया में पहला इको-ब्रिक स्ट्रक्चर फिलीपींस में बना था. हालांकि, इको-ब्रिक्स का कॉन्सेप्ट भारत में लोकप्रियता हासिल कर रहा है और अपने साथ रोजगार के अवसर भी ला रहा है. फादर मुलर की बेंच का उद्घाटन मई 2024 में किया गया था. शैक्षणिक संस्थानों में लगी बेंचों की इको-ब्रिक्स को 10 साल की उम्र के बच्चों ने बनाया था.
बेंचों को बनाने और सुधारने पर बहुत विचार किया जाता है. सूक्ष्म प्लास्टिक को जड़ों तक पहुंचने से रोकने के लिए बेंचों को पेड़ों से दूर बनाया गया है, लेकिन इन पर बैठने वाले लोगों को छाया देने के लिए महोगनी जैसे छोटे पत्तेदार पौधे लगाए गए हैं.