
बात केसर की हो तो दिमाग में सबसे पहले कश्मीर आता है. केसर खाने-पीने की चीजों में बेजोड़ रंग और स्वाद भर देता है. केसर की मांग दुनियाभर में है. इस कारण अब न सिर्फ कश्मीर बल्कि दूसरे राज्यों में भी केसर की खेती की जा रही है. कर्नाटक में उडुपी का एक युवा आईटी प्रोफेशनल, अपने एक दोस्त के साथ, आधुनिक तरीके से केसर की खेती कर रहा है. अनंतजीत तांत्री और उनके दोस्त, अक्षत बीके ने अपने घर पर एरोपोनिक्स तकनीक से केसर की खेती की है.
क्या है एरोपोनिक्स
एरोपोनिक्स पौधों को उगाने की एक मिट्टी-मुक्त तकनीक है जहां जड़ों को हवा में लटकाया जाता है और इन्हें मिस्ट के जरिए पोषक तत्व दिए जाते हैं. हाइड्रोपोनिक्स में जड़ें पोषक तत्वों से भरे घोल में डूबी होती हैं, जबकि एरोपोनिक्स में मिस्ट के जरिए पोषण पहुंचता है. हालांकि, अनंतजीत के परिवार के पहले नारियल के बागान थे. लेकिन अनंतजीत इनडोर खेती में शामिल होना चाहते थे. उन्होंने ऑनलाइन केसर के ट्यूबर्स मंगवाए और मिट्टी में उनके उगने का ट्रायल किया.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अनंतजीत पिछले साल एक ट्रेनिंग सेशन में भाग लेने के लिए बेलगावी गए थे और वहां उन्हें पता चला कि केसर को एरोपोनिक्स तकनीक के माध्यम से उगाया जा सकता है. एक्सपेरिमेंट करने के लिए उन्होंने उडुपी जिले के बैलूर में अपने घर की ऊपरी मंजिल के एक कमरे में नियंत्रित वातावरण सेट किया ताकि केसर उगा सकें.
कमरे में उगा रहे हैं केसर
वर्तमान में, अनंतजीत का 180 वर्ग फुट का कमरा केसर की क्रोकस सैटिवस प्रजाति का स्रोत बन गया है, जो अपने खाने में इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. इस साल लगभग 110 किलोग्राम केसर कंदों की खेती की जा रही है और फसल अक्टूबर तक कटाई के लिए तैयार हो जाएगी. उनका कहना है कि बिना मिट्टी के खेती करने के बावजूद फसल अच्छी हो रही है. उन्होंने कमरे में एक ह्यूमिडिफ़ायर रखा है, जो भीतर हवा में नमी के स्तर को बढ़ाता है.
पिछले साल उन्होंने 50 किलोग्राम केसर ट्यूबर्स की खेती की. इस साल कुल मिलाकर 110 किलो केसर कंद उगाए जा रहे हैं. इसके अलावा, उनकी अगले साल तक लगभग 200 किलोग्राम केसर कंद उगाने की योजना है.
बाजार में है मांग
भले ही फूड और ड्रिंक्स बिजनेस में केसर के रेशों की पहले से ही काफी मांग है. अब फूलों और पंखुड़ियों की मांग भी बढ़ रही है. पंखुड़ियां 20,000 रुपये प्रति किलोग्राम बिकती हैं, जबकि स्टिगमा के लिए बाजार मूल्य 400 रुपये प्रति ग्राम है. ऐसे में, एक किलो स्टिग्मा चार लाख रुपये में बिकता है.
अनंतजीत के दोस्त अक्षत फसल बेचने से पहले उसकी कटाई और उसे सुखाने की प्रक्रिया में मदद करते हैं. वे केसर उगाने के लिए किसी भी रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करते हैं, इसके बजाय नीम के तेल का विकल्प चुनते हैं, जिससे किसी भी संभावित फंगल हमले को रोका जा सकता है.