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Engineer Potter Girl Saima Shafi: डिप्रेशन से निकलने के लिए पॉटर बनी यह सिविल इंजीनियर, अब पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की कला को रही है सहेज

कश्मीर की रहने वाली साइमा शफी पिछले लंबे समय से घाटी में मिट्टी के बर्तनों की पारंपरिक कला को सहेज रही हैं और अब उन्हें प्रशासन का भी सहयोग मिल रहा है.

Saima Shafi (Photo: Instagram/@kralkoor) Saima Shafi (Photo: Instagram/@kralkoor)
हाइलाइट्स
  • डिप्रेशन से बचने का तरीका 

  • बेंगलुरु से लिया प्रशिक्षण

जम्मू-कश्मीर के लोक निर्माण विभाग में सिविल इंजीनियर साइमा शफी को 'क्राल कूर' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने घाटी में मिट्टी के बर्तनों की लुप्त हो रही कला को आधुनिक तरीकों और तकनीकों से जोड़कर उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है. कश्मीर में मिट्टी के बर्तन बनाने वाली लड़की को क्राल कूर कहा जाता है. मिट्टी के बर्तनों में रुचि के कारण उन्होंने आज के कलाकारों से आधुनिक तकनीकों पर औपचारिक रूप से ट्रेनिंग ली ताकि वह आधुनिक मिट्टी के बर्तन बना सकें. साइमा शफी ने स्थानीय स्तर पर रिसर्च की, राज्य के बाहर से भी एक्सपर्ट्स से क्लासेज लीं और अपना खुद का एक पॉटरी स्टूडियो बनाया.

डिप्रेशन से बचने का तरीका 
33 वर्षीया शफी के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने का यह सफर अवसाद से बचने का तरीका था. वह चीनी फिलोसफर, लाओ त्ज़ु की कही बात कहती हैं, "हम मिट्टी को एक बर्तन का आकार देते हैं लेकिन यह अंदर का खालीपन है जो वह सब कुछ रखता है जो हम चाहते हैं." उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ''यही वह जगह है जहां मैंने अपने डिप्रेशन को स्टोर करने का फैसला किया.''

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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शफी का मिट्टी के प्रति आकर्षण बचपन से ही है. उनका कहना है कि वह वास्तव में कुछ अलग करना चाहती थी और बचपन से ही उन्हें मिट्टी से बने खिलौनों का शौक था, इसलिए उन्होंने कुम्हार बनने का फैसला किया. हालांकि, जब वह इस राह पर चली, तो उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ा. उन्हें एहसास हुआ कि मिट्टी के बर्तनों के लिए जरूरी आधुनिक उपकरण हासिल करने के लिए व्यक्ति का आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है. इसमें एक इलेक्ट्रिक पॉटर व्हील और एक गैस भट्टी शामिल है जिसका उपयोग बेकिंग के लिए किया जाता है. 

बेंगलुरु से लिया प्रशिक्षण
पॉटरी के लिए जिन चीजों की जरूरत थी वे सब घाटी में उपलब्ध ही नहीं थीं. और घाटी में मिट्टी के बर्तन बनाने के शिक्षक भी ज्यादा नहीं थे, इसलिए शफी की खोज उन्हें बेंगलुरु ले गई. वहां उन्होंने रसोई में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक कश्मीरी बर्तनों सहित मिट्टी को विभिन्न आकारों में ढालने की कला में क्रैश कोर्स किया. 

साइमा के अथक प्रयास उन्हें पूरे कश्मीर में कई मिट्टी के बर्तनों के केंद्रों में ले गए, जहां उन्होंने वर्कशॉप्स कीं और अनुभवी कुम्हारों के साथ चर्चा की. बड़े पैमाने पर जागरूकता बढ़ाने के महत्व को पहचानते हुए, साइमा ने अपनी यात्रा और कश्मीरी मिट्टी के बर्तनों के संरक्षण के महत्व को साझा करते हुए विभिन्न कार्यक्रमों और प्लेटफार्मों में सक्रिय रूप से भाग लिया. कला में सरहदों को पार करने और लोगों को एक साथ लाने की शक्ति है. 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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प्रशासन से मिला सहयोग 
समय के साथ, मिट्टी के बर्तनों की सदियों पुरानी परंपरा ने जम्मू और कश्मीर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है. उन्हें हाल ही में राज्य के हस्तशिल्प विभाग द्वारा मध्य कश्मीर के बीरवाह के कारीगरों के साथ अपने अनुभव साझा करने के लिए बुलाया गया था. कारीगरों के साथ उनकी बातचीत के दौरान, कश्मीर में मिट्टी के बर्तनों के पुनरुद्धार के लिए जबरदस्त प्रतिक्रिया ने हस्तशिल्प विभाग के अधिकारी को निर्णय लिया कि ऐसे कारीगरों पर डेटा इकट्ठा किया जाएगा ताकि उनके लिए योजनाएं तैयार की जा सकें.