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दुनिया छोड़ गए प्रियजनों को याद करने का अनोखा तरीका, पौधा लगाएं और यादों को संजोएं

कई लोगों ने पहले ही इसके लिए अपने स्लॉट बुक कर लिए हैं. वहां मौजूद पर्यटकों ने भी इस पहल में योगदान देने के लिए अपने स्लॉट बुक कर लिए हैं. उनकी ओर से चलत मुसाफिर और बस्तापैक एडवेंचर की टीम पौधारोपण करेगी. टीम हर पौधे को एक समर्पित नेम प्लेट भी लगा रही है. जिससे लोग अपने प्रियजनों की उपस्थिति को सालों साल तक महसूस कर सकें.

स्मृति वृक्ष स्मृति वृक्ष
हाइलाइट्स
  • कई पर्यटक पहले ही कर चुके हैं स्लॉट बुकिंग

  • उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी भी लगाई गई

कहते हैं किसी अपने का गुजर जाना, बहुत सारे भाव लेकर आता है. अपने करीबियों के जाने के बाद हम किसी भी तरह उनकी उपस्थिति को अपने साथ महसूस करना चाहते हैं. उनसे जुड़ी हर एक याद को सहेजना चाहते हैं, जिससे हमें महसूस होता रहे कि वे हमारे आसपास ही कहीं हैं. अब जरा सोचिए कि अगर आप उनकी यादों को और उनको अपने साथ कई सालों तक या सदी तक साथ रख पाएं तो? जो हां, ऐसा मुमकिन है. इंसान को प्रकृति के माध्यम से याद किया जा सकता है. कुछ युवाओं ने मिलकर एक ऐसा ही इनिशिएटिव शुरू किया है. 

उत्तराखंड के ऋषिकेश में  'स्मृति वृक्ष’ नाम का ये कैंपेन शुरू किया गया है. ये शुरुआत चलत मुसाफिर और बस्तापैक एडवेंचर ने की है. उत्तराखंड में बस्तापैक कैंपसाइट पर स्मृति वृक्ष कैंपेन की शुरुआत की गई है, जिसका उद्घाटन पद्मभूषण अनिल जोशी ने किया है.

इस मुहीम को लेकर GNT डिजिटल ने चलत मुसाफिर की टीम से बात की. बता दें, चलत मुसाफिर दो लड़कियों, प्रज्ञा श्रीवास्तव और मोनिका मरांडी ने मिलकर शुरू किया है.

मोनिका मरांडी ने हमें इस मौके पर बताया कि वे इस मुहिम के तहत युवाओं से अपील कर रहे हैं कि आपके जो भी प्रियजन अब शारीरिक तौर पर इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आप उनकी यादों को सहेज कर रखना चाहते हैं, उनके नाम का एक पौधा बस्तापैक कैंपसाइट पर आकर लगाएं. सभी पौधों पर नाम की एक प्लेट लगाई जाएगी, ताकि पौधा बढ़ने के साथ-साथ उसकी पहचान हमारे प्रियजन के नाम से रहे. वे कहती हैं, “हम सॉल्यूशन-ओरिएंटेड टीम हैं, हम इस कैंपेन को उत्तराखंड के बाहर भी ले जाना चाहते हैं. जल्द ही आप अन्य राज्यों में भी 'स्मृति वृक्ष' वृक्षारोपण अभियान देखेंगे."

हमारी प्रकृति भी मर रही है..... 

पद्मभूषण अनिल जोशी और पद्मश्री योगी एरोन भी इस अभियान में शामिल हुए. पद्मभूषण अनिल जोशी ने अपना पहला पेड़ मां प्रकृति को समर्पित किया है. उनका कहना है कि हमारे लिए प्रकृति भी मर रही है. पद्मभूषण अनिल जोशी कहते हैं, “पहाड़ों पर टूरिज्म पर बिज़नेस तो बहुत लोग करते हैं पर हमें एक रिसपॉन्सिबल टूरिज्म इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है. हमें प्रकृति की ओर लौटना चाहिए, जो ज्यादातर लोग करना भूल जाते हैं.

पद्मभूषण अनिल जोशी और पद्मश्री योगी एरोन
पद्मभूषण अनिल जोशी और पद्मश्री योगी एरोन

वहीं, पद्मश्री योगी एरोन ने अपनी दिवंगत बेटी तनु को एक पौधा समर्पित किया है. इस कैंपेन से दोनों ने ही देश के युवाओं से अपील की है कि वे जिम्मेदार पर्यटन के मार्ग पर चलें और जितना हो सके पेड़ लगाएं. 

कई पर्यटक पहले ही कर चुके हैं स्लॉट बुकिंग 

चलत मुसाफिर की प्रज्ञा श्रीवास्तव ने हमें बताया कि कई लोगों ने पहले ही इसके लिए अपने स्लॉट बुक कर लिए हैं. वहां मौजूद पर्यटकों ने भी इस पहल में योगदान देने के लिए अपने स्लॉट बुक कर लिए हैं. उनकी ओर से चलत मुसाफिर और बस्तापैक एडवेंचर की टीम पौधारोपण करेगी. टीम हर पौधे को एक समर्पित नेम प्लेट भी लगा रही है. जिससे लोग अपने प्रियजनों की उपस्थिति को सालों साल तक  महसूस कर सकें. 

प्रज्ञा श्रीवास्तव और मोनिका मरांडी
प्रज्ञा श्रीवास्तव और मोनिका मरांडी

वे कहती हैं, “स्मृति वृक्ष एक समावेशी अवधारणा है जो लोगों को पर्यावरण में रचनात्मक रूप से योगदान करने देती है. ये आपको आपके किसी प्रियजन की याद में एक पेड़ लगाने का अवसर प्रदान करता है, जो इस दुनिया में शारीरिक रूप से आपके साथ नहीं हैं. 

उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी 

आपको बता दें, चलत मुसाफ़िर और बस्तापैक एडवेंचर ने साथ मिलकर एक और पहल की है, उत्तराखंड में ‘बस्तापैक लाइब्रेरी’ (उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी) की स्थापना की गई है. इसका उद्घाटन उत्तराखंड के रत्न पद्मश्री योगी एरन ने किया है. यह लाइब्रेरी तपोवन के सार्वजनिक घाट में लगाई गई है. इस मुहीम से जहां एक ओर लोगों में पढ़ने की इच्छा जागेगी वहीं, वो लोग भी किताबें आसानी से पढ़ सकेंगे, जिनके पास इन्हें खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं.

बस्तापैक लाइब्रेरी
बस्तापैक लाइब्रेरी

इसपर मोनिका मरांडी कहती हैं कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है, आप शहरों से अपनी किताबें हमारे पास भेजिए, हम उसे उन बच्चों और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाएंगे जो सिर्फ विकल्पों के अभाव में किताबों से वंचित रह जाते हैं.”