अगर घर में LED बल्ब खराब हो जाए तो ज्यादातर हम इसे फेंक देते हैं और एक नया बल्ब या लाइट ले आते हैं. लेकिन यह नहीं सोचते की इस प्रक्रिया से हम अपने पैसे के साथ-साथ पर्यावरण का नकसान कर रहे हैं. पुराने बल्ब को फेंकने से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और नए बल्ब की कीमत काफी ज्यादा होती है.
इससे अच्छा है कि आप पुराने बल्ब को ठीक करा लें. अब सवाल है कि बल्ब कौन ठीक करता है और इसका जवाब है LED क्लिनिक. जी हां, केरल के कोची में एक गांव में कुछ महिलाओं ने मिलकर इस एलईडी क्लिनिक की शुरुआत की है.
कार्बन फुटप्रिंट कम करने की कोशिश
कोची में मुलंथुरुथी के पास थुरुथिक्कारा में ग्रामीण विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र के कार्यकारी निदेशक, थंकाचन पीए ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह थुरुथिक्कारा पंचायत में कार्बन फुटप्रिंट पर अंकुश लगाने की पहल के तहत यह काम शुरू हुआ. 2017 में इसकी शुरुआत के बाद से, प्रशिक्षण और अन्य सहायता प्राप्त करने के लिए क्लिनिक आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ी है.
इसमें कुदुम्बश्री और हरित कर्म सेना की महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हैं. उनके लिए, यह कमाई का भी साधन है. अब कई स्थानीय-स्वशासन संस्थाएं भी इस विचार को अपना रही हैं. आपको बता दें कि केरल इंस्टीट्यूट ऑफ लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने भी पंपा नदी बेसिन के पास पंचायतों में इसी तरह के क्लीनिक स्थापित करने की पहल शुरू की है.
ग्राम पंचायत के बल्ब, लाइट किए ठीक
बताया जा रहा है कि पूरी पंचायत के लोग इन महिलाओं से बल्ब ठीक कराने के लिए आते हैं. औसतन यहां प्रति माह 50 से अधिक बल्ब आते हैं. हालांकि, शुरुआती दिनों में यह संख्या बहुत ज्यादा थी. एक लाइट की मरम्मत में 40 रुपये का खर्च आता है.
ये महिलाएं नई लाइट्स भी बनाती हैं जिसकी कीमत 100 रुपये है. अनुमान लगाया गया है कि एक पंचायत स्ट्रीटलाइट्स, कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर 500 से अधिक एलईडी बल्बों का उपयोग करती है. कल्पना कीजिए कि अगर इन बल्बों को बदलने के बजाय इनकी मरम्मत की जाए तो कितना बड़ा खर्च बच जाएगा.