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प्रेम, चमत्कार या कुछ और... पिछले 300 सालों से जीवित है गुलाब का पौधा, हर साल खिलते हैं फूल

स्थानीय लोगों की मानें तो इस पौधे की कई खासियत हैं. आमतौर पर गुलाब की डाली से कलम लेकर अलग जगह पौधे लगाए जा सकते हैं. लेकिन इस पौधे को लाख कोशिश करने के बाद भी दूसरी जगह नहीं लगाया जा सका. गांव वाले बताते हैं कि उन्होंने ऐसे महक और किसी गुलाब में नहीं ली जैसी इस गुलाब के फूल की महक है. 

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हाइलाइट्स
  • 300 सालों से खिल रहा है गुलाब

  • बन गया प्रेम का प्रतीक

अगर आप अपने घर में या बगीचे में फूलों के पौधे लगाएं तो वह कुछ साल पनपते हैं, अच्छे फूल देते हैं और फिर धीरे-धीरे मरने लगते हैं. कुछ सालों बाद आप फिर नए पौधे लगाते हैं. यह क्रम चलता रहता है क्योंकि प्रकृति का यही नियम है. 

लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गुलाब के पौधे के बारे में बता रहे हैं जो 300 से ज्यादा सालों से जीवित है. और हर साल इसमें फूल खिलते हैं. यह कहानी है झारखंड के हजारीबाग ज़िले के बड़कागांव प्रखंड के बादम गांव में लगे गुलाब के पौधे की. 

रामगढ़ के राजा से जुड़ा है इतिहास: 

झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड का बादम गांव कभी रामगढ़ के राजा दलेल सिंह की राजधानी हुआ करती थी. आज भी उनका बनाया बादम का किला जीर्ण शीर्ण अवस्था में मौजूद है. इस किले के ठीक सामने एक चौकोर कुआं भी बनाया गया था. 

इसी कुएं के राजा दलेल सिंह के बेटे पुरुषोत्तम सिंह की पत्नी ने एक गुलाब का पौधा लगाया था. बताया जाता है कि पुरुषोत्तम सिंह और उनकी पत्नी के बीच अथाह प्रेम था. एक बार जब पुरषोत्तम जंगल में शिकार करने गए तो किसी ने यह अफवाह फैला दी कि शिकार के दौरान उनकी मौत हो गई है. यह बात सुन रानी ने बहुत विलाप किया और फिर कुएं में डूब कर अपनी जान दे दी दी. 

लेकिन शिकार के बाद जब राजा वापस लौटे और उन्हें यह सूचना मिली कि उनकी रानी ने कुएं में डूब कर अपनी जान दे दी है तो उन्होंने भी उसी कुएं में डूब कर आत्महत्या कर ली. और उनकी रानी का लगाया हुआ गुलाब का पौधा आज भी कुएं के पास मौजूद है. 

बन गया प्रेम का प्रतीक: 

इस घटना से आहत राजा दलेल सिंह अपनी राजधानी बादम से रामगढ़ में स्थापित की और यह इलाका वीरान होने लगा. धीरे-धीरे किला और बाकी चीजों के निशान मिटने लगे लेकिन उनकी बहु का लगाया गुलाब का पौधा पनपता रहा. 

बताया जाता है कि पिछले 300 सालों से इस पौधे में गुलाब खिल रहे हैं. और आज यह प्रेम के प्रतीक के रूप में प्रचलित है.

कहीं और नहीं पनपती है पौधे की कलम: 

स्थानीय लोगों की मानें तो इस पौधे की कई खासियत हैं. आमतौर पर गुलाब की डाली से कलम लेकर अलग जगह पौधे लगाए जा सकते हैं. लेकिन इस पौधे को लाख कोशिश करने के बाद भी दूसरी जगह नहीं लगाया जा सका. गांव वाले बताते हैं कि उन्होंने ऐसे महक और किसी गुलाब में नहीं ली जैसी इस गुलाब के फूल की महक है. 

वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर प्रशांत कुमार मिश्रा बताते हैं कि सामान्यतः गुलाब के पौधे 10 से 12 साल तक जीवित रह सकते हैं. लेकिन 300 से अधिक वर्षों तक किसी गुलाब के पेड़ का जीवित रहना नामुमकिन है. यह शोध का विषय है कि आखिर किन कारणों से यह गुलाब का पेड़ अब तक जीवित है. क्या यह वही गुलाब का पौधा है या हर साल कोई नया पौधा यहां निकलता है? इस बारे में पता लगाया जाना चाहिए.
 
वजह जो भी लेकिन आज भी किले के सामने कुएं में पास लगा यह गुलाब का पौधा अपनी पूरी हरियाली के साथ महक रहा है. जहां एक और लोग इसे प्रेम का प्रतीक मानते हैं वहीं वनस्पति शास्त्र के लिए यह एक शोध का विषय बना हुआ है.

(हजारीबाग से बिस्मय अलंकार की रिपोर्ट)