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30 वर्षों से पेड़ लगा रहे गोरेलाल तिवारी की कहानी जानिए,  वृक्षानंद के नाम से जानते हैं लोग

प्रकृति को अगली पीढ़ियों के लिए बचाए रखना हमारा कर्त्यव्य है. कुछ लोग इसका ख्याल नहीं रखते तो वहीं कुछ लोग कुछ ऐसा कर जाते हैं जो हजारों लाखों लोगों के लिए मिसाल बन जाता है. गोरेलाल तिवारी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

गोरेलाल तिवारी गोरेलाल तिवारी
हाइलाइट्स
  • पेड़ लगाने में गोरेलाल किसी की नहीं लेते मदद

  • पेड़ लगाने के बाद 5 सालों तक करते हैं रखवाली

देश में प्रकृति को हरा भरा और संरक्षण देने वाले लोग आज भी मौजूद हैं, लेकिन बिल्कुल नमक के तिनके के बराबर. यदि देश के हर व्यक्ति में प्रकृति प्रेम देखने को मिलता तो शायद प्रकृति की तस्वीर कुछ अलग होती. यूपी के बांदा के एक छोटे से गांव गौरी कला के रहने वाले गोरेलाल तिवारी एक ऐसे प्रकृति प्रेमी हैं जो आसपास के इलाके को हरा भरा और संरक्षित करने के लिए करीब 30 वर्षों से सिर्फ पेड़ लगाने का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने हर प्रकार के पेड़ लगाए हैं जैसे नीम, पीपल, पाकड़, बरगद, आम, अमरूद, आंवला आदि. गोरेलाल स्कूल, सरकारी कार्यलयों, पंचायत भवन, थाना, सहित भीड़ भाड़ वाले इलाकों में लगातार पेड़ लगाने का कार्य कर रहे हैं. उनके गांव का एक सरकारी स्कूल उन्हीं के लगाए पेड़ के नीचे संचालित था. जिसे देखकर स्कूल के शिक्षकों ने भी उनसे प्रेरणा लेकर स्कूल को हरा भरा करने का काम शुरू कर दिया है. 

लोग वृक्षा नंद के नाम से पुकारते हैं

गोरेलाल तिवारी का परिवार गांव में रहकर खेती किसानी करता है और बच्चे कानपुर में रहते हैं. गांव वाले इनकी मेहनत और प्रेरणा दायक कहानी के गवाह हैं. उनका कहना है कि इनसे प्रेरणा लेकर हम भी पेड़ लगाएंगे. वो कहते हैं आज जिस पेड़ की छाया में बैठे हैं वो उन्हीं का देन है. इस नेक काम में गोरेलाल किसी भी मदद भी नही लेते. खुद से गड्ढा खोदकर पेड़ लगाते हैं, पानी डालते हैं, उसके बड़े होने तक उसकी पूरी रखवाली भी करते हैं. इतने वर्षों से पेड़ लगाने के कारण गांव और आसपास के लोग इन्हें "वृक्षा नंद" के नाम से पुकारते हैं. 

10 हजार के करीब लगा चुके हैं पेड़
  
बांदा के जसपुरा थाना क्षेत्र के गौरी कला के रहने वाले देवकी नंदन का कहना है कि हमारे दादा गोरेलाल तिवारी जिन्हें गांव के लोग प्यार से वृक्षा नंद कहकर पुकारते है उनकी दिनचर्या में पेड़-पौधे शामिल है. अभी तक 10 हजार के आसपास पेड़ लगा चुके होंगे. वो कहते हैं कि हम लोगों को पेड़ लगाना सिखाते भी हैं. इनकी प्रेरणा से गांव हरा भरा है. ये तब तक पेड़ की रखवाली करते हैं जब तक फल नही देने लगता यानी बड़ा नही हो जाता. प्रतिदिन निगरानी करते हैं, पानी डालते हैं, कुछ पेड़ खुद तैयार करते हैं, कुछ नर्सरी से लेकर आते हैं. 

शुद्ध हवा के लिए लगा रहे हैं पेड़

मैं गांव को हरा भरा करने के लिए, गांव के लोगों को प्रकृति की शुद्ध हवा मिले, फल फूल खाए इसलिए पेड़ लगा रहा हूं. आम, पीपल, बरगद, पाकर, उमरी, आंवला आदि का पेड़ मैं लगा चुका हूं, और लगा रहा हूं. वो कहते हैं कि पेड़ मैं अकेले लगाता हूँ, गांव के बाहर से कटीले लकडी लेकर आसपास रखकर उनकी रखवाली करता हूं. पेड़ की रखवाली 5 सालों तक करता हूं. कितने पेड़ लगाने के सवाल पर कहा कि मैंने गिनती नही गिनी, लेकिन आसपास के इलाकों, थाना, ब्लॉक, स्कूल आदि में पिछले 30 से 40 सालों से पौधे लगा रहा हूं. अब तो मेरे पेड़ बड़े हो गए हैं और फल देने लगे हैं. हर साल सावन के महीने में लगाता हूं, जिससे पेड़ सूखे नहीं.

(सिद्धार्थ गुप्ता की रिपोर्ट)
 

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