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History of Litti-Chokha: मगध साम्राज्य, मुगल सल्तनत और फिर स्वतंत्रता संग्राम... भारत में सदियों पुराना है लिट्टी-चोखा का इतिहास

बिहार का लिट्टी-चोखा आज दुनियाभर में मशहूर है. लेकिन क्या आपको पता है कि लिट्टी-चोखा का इतिहास सदियों पुराना है. आज दस्तरखान में जानिए लिट्टी-चोखा की कहानी.

Litti Chokha Litti Chokha
हाइलाइट्स
  • मगध साम्राज्य से लेकर मुगलों तक 

  • कहते थे युद्ध का भोजन

लिट्टी-चोखा भारत के राज्य बिहार और झारखंड का एक पारंपरिक व्यंजन है. लिट्टी गेहूं के आटे से बनाई जाती है. इसके लिए सबसे पहले आटे की लोई में सत्तू (भुने हुए चने को पीस कर तैयार किया गया), हर्ब्स और मसालों का मिश्रण भरा जाता है और फिर इसे अंगीठी पर सेंका जाता है. चोखा एक साइड डिश है जिसे मसले हुए आलू, टमाटर और बैंगन के साथ, सरसों के तेल, धनिया पत्ती और हरी मिर्च के साथ बनाया जाता है.

लिट्टी और चोखा मतलब स्वाद ही स्वाद. अंगीठी पर भुनी हुई लिट्टी का स्मोकी फ्लेवर और तीखा-मसालेदार चोखा, अपने आप में गजब का मेल है. यह व्यंजन न केवल स्वादिष्ट है बल्कि हेल्थ के लिए भी अच्छा बताया जाता है क्योंकि इसे साबुत गेहूं के आटे से बनाया जाता है और तले जाने की बजाय इसे आग पर सेंककर बनाया जाता है. 

लिट्टी चोखा सिर्फ एक व्यंजन नहीं है बल्कि बिहार और झारखंड की सांस्कृतिक पहचान भी है. बिहार का यह व्यंजन अब दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में भी अपनी पहचान बना चुका है. 

आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं लिट्टी-चोखा के इतिहास के बारे में. 

मगध साम्राज्य से लेकर मुगलों तक 
लिट्टी चोखा की उत्पत्ति कब हुई, इस बारे में बहुत स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि इसकी जड़ें मगध साम्राज्य से जुड़ी हैं, जिसने छठी शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईस्वी तक बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों पर शासन किया था. मगध एक बड़ा साम्राज्य था और इसकी राजधानी पाटलिपुत्र एक बहुत समृद्ध शहर हुआ करती थी. जब यूनानी राजदूत मेगस्थनीज (लगभग 350 - लगभग 290 ईसा पूर्व) ने 302 ईसा पूर्व में दौरा किया, तो वह पाटलिपुत्र को देखकर दंग रह गए. 

मेगस्थनीज ने बताया कि इसमें 64 द्वार और 570 मीनारें थीं, बगीचों, महलों, मंदिरों और युद्ध हाथियों से भरे अस्तबलों का तो जिक्र ही नहीं किया गया था. एक थ्योरी के अनुसार, लिट्टी सत्तू पराठे से प्रेरित है, जो भुने हुए बेसन से भरे होते थे. यह एक जमाने में मगध सेना का मुख्य भोजन हुआ करता था. बताया जाता है कि सैनिक गर्म पत्थरों या गोबर के उपलों पर परांठे सेंकते थे और चटनी या अचार के साथ खाते थे. 

नए शासकों के आने के बाद इस व्यंजन में कई बदलाव आए. मुगल काल के दौरान, सम्राटों को पायस और शोरबा के साथ लिट्टी परोसी जाती थी. दूसरी ओर, माना जाता है कि चोखा की उत्पत्ति झारखंड के आदिवासी समुदायों से हुई थी, जो लकड़ी की आग पर आलू, बैंगन, टमाटर और प्याज जैसी सब्जियों को भूनते और मैश करते थे. चोखा उनके मुख्य भोजन चावल या बाजरे के साथ एक सरल मेल था. समय के साथ, लिट्टी-चोखा का क्लासिक संयोजन बन गया. 

कहते थे युद्ध का भोजन
लिट्टी प्राचीन काल से सैनिकों के साथ ले जाया जाने वाला युद्ध का भोजन था. साल 1857 के विद्रोह के दौरान इसकी अहमियत बढ़ी. तांत्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और उनके जैसे लोगों ने इसे अपना मुख्य खाना बनाया क्योंकि इसे कम से कम चीजों में बनाया जा सकता था और वह भी बिना किसी बर्तन के. जंगलों में तब पानी हुआ करता था और लिट्टी भी जल्दी खराब नहीं होती थी ऐसे में सैनिक इस आहार को लेकर कई दिनों तक छिपे रह सकते थे. इस तरह लिट्टी ने युद्ध क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई. 

लिट्टी चोखा न केवल एक स्वादिष्ट और पेट भरने वाला व्यंजन है, बल्कि बिहार और झारखंड की संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है. यह इन क्षेत्रों के देहाती और मिट्टी के स्वाद के साथ-साथ उनकी समृद्धि को भी दर्शाता है. लिट्टी चोखे का आनंद आज सभी वर्गों के लोग ले रहे हैं और इसे अक्सर त्योहारों, शादियों और राजनीतिक रैलियों में भी परोसा जाता है. लिट्टी चोखा को सर्दियों का व्यंजन भी माना जाता है, क्योंकि यह शरीर को गर्मी और ऊर्जा देता है.

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