हर कोई जानता है कि सुबह-सुबह दौड़ने के कई फायदे हैं. जैसे इससे आप पूरा दिन फिट, स्वस्थ और ऊर्जावान रखता है. जबकि आप अगर यही सवाल जी नागराज से पूछेंगे तो वो आपको इसका एक दूसरा ही फायदा बताएंगे. वो बताएंगे कि दौड़ने से आपके शहर को साफ रखने में मदद मिलती है. दरअसल, पिछले छह साल से बेंगलुरू के रहने वाले जी नागराज न केवल कर्नाटक की राजधानी में बल्कि पूरे भारत में दौड़ रहे हैं. और केवल दौड़ ही नहीं बल्कि दूसरों का छोड़ा हुआ कचरा भी उठा रहे हैं. नंगे पांव दौड़ने वाले जी नागराज भारत में प्लॉगिंग - जॉगिंग के दौरान कचरा उठाने वाले पहले हैं.
प्लॉगिंग क्या है?
दरअसल, प्लॉगिंग का कॉन्सेप्ट 2016 में स्वीडन से शुरू हुआ है. इसे शुरू करने वाले और कोई नहीं बल्कि एरिक अहलस्ट्रॉम हैं. उन्हें नियमित रूप से कार्डियो वर्कआउट के दौरान कूड़े के पास से गुजरते हुए ये विचार आया. प्लॉगिंग स्वीडिश शब्द plocka upp से लिया गया है, जिसका अर्थ है "उठाना". जैसे ही प्लॉगिंग ने दुनिया का ध्यान खींचा, आंध्र प्रदेश के गुंटकल के मूल निवासी जी नागराज का भी इस पर ध्यान गया.
जी नागराज इंडिया टाइम्स से कहते हैं, "मैं अपना एमबीए करने के लिए लगभग 15 साल पहले बेंगलुरु आया था और बाद में यहां काम करना शुरू कर दिया. साल 2012 के आसपास, जब मैं एक साइकिलिंग इवेंट से लौट रहा था, तो मैंने लोगों के एक ग्रुप को देखा, जो कूड़ा बीनने वाले नहीं थे, लेकिन कचरा इकट्ठा कर रहे थे. जिज्ञासावश, मैंने उनसे पूछा कि वे क्या कर रहे हैं. उनमें से एक ने मुझे बताया कि अगर वे जगह को साफ रखेंगे, तो लोग कूड़ा नहीं डालेंगे, और अगर कचरा होगा, तो लोग उसपर और भी कचरा फेंक देंगे. बस तभी से मैंने इसे शुरू करने का सोचा.”
शहर को रखना चाहिए साफ
तब से, जी नागराज ने इसे अपने लाइफ मिशन बना लिया है कि बर्बादी को कम करने और शहरों को साफ रखने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं वह करेंगे. वहीं अगर भारत की बात करें, प्लॉगिंग को शुरू करने के लिए उन्होंने एरिक अह्लस्ट्रॉम से संपर्क किया. जी नागराज कहते हैं, "मेरी पहली प्लॉगिंग 2016 के आखिर में कब्बन पार्क में एक मैराथन के दौरान हुई थी. वहां 500 से ज्यादा रनर थे और दौड़ते समय, मैंने फेंकी जा रही प्लास्टिक की बोतलों को उठाना शुरू किया. कुछ लोगों ने देखा कि मैं क्या कर रहा था और जब ये इवेंट खत्म हुआ तो बहुत सारे लोग मेरे पास आए और मैंने जो किया उसके लिए मेरी सराहना की. मेरे लिए, यह सबसे बड़ी प्रेरणा थी. वहां से मेरे अंदर और आत्मविश्वास आ गया.”
मजाक उड़ाए जाने से लेकर हीरो बनने तक का सफर
आज नागराज 'द इंडियन प्लॉगर्स आर्मी' के रूप में जाने जाते हैं. ये नाम केवल बेंगलुरु तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारत के शहरों में मौजूद है और बढ़ रहा है. जी नागराज कहते हैं, "शुरुआत में, यह काफी मुश्किल था क्योंकि बहुत से लोगों को यह एहसास नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूं. कुछ ने मेरा मजाक भी उड़ाया और कहा कि मैं उनके घर जा जाकर उनका कचरा उठा सकता हूं. शुरुआती दिनों से ही मैं अपनी बेटी को ले जाया करता था, जो उस समय लगभग 4 साल की थी, जब मैं प्लॉगिंग कर रहा था. एक छोटा बैग लेकर वह भी घूमती थी.” हालांकि, जी नागराज के अनुसार, जागरूकता पैदा करने के साथ उन्होंने काफी लोगों को प्लॉगिंग के प्रति आकर्षित किया
फिर कहां जाता है कचरा?
इंडियाटाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एक बार इकट्ठा होने के बाद, कचरा बेंगलुरु के एक रिसाइकलर को सौंप दिया जाता है, जो इसे रीसाइकिल करता है. साथ ही वह यह यह भी सुनिश्चित करता है कि कचरा पर्यावरण में वापस नहीं जाता है या लैंडफिल में समाप्त नहीं होता है. वे बताते हैं, "प्लॉगिंग के लिए, हम आमतौर पर किसी भी शहर का एक प्रसिद्ध स्थान चुनते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन जगहों पर बहुत अधिक कचरा होगा और जब हम प्लॉगिंग कर रहे होंगे तो अधिक लोग हमारे बारे में जानेंगे या हमसे जुड़ेंगे. जागरूकता पैदा करने के लिए, हमारे पास इसे शुरू करने से पहले हम प्रतिज्ञा दिलवाते हैं कि हर कोई प्लास्टिक का उपयोग करने की मात्रा को कम करने का संकल्प ले.”