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बेजुबानों का सहारा है आसरा- The Helping Hands, 200 से ज्यादा बेसहारा जानवरों का किया रेस्क्यू

लखनऊ में कुछ युवा मिलकर आसरा- The Helping Hands नाम से एक सोशल मीडिया पेज चला रहे हैं और इसके जरिए बेसहारा जानवरों को रेस्क्यू कर उन्हें सहारा दे रहे हैं.

आसरा- द हेल्पिंग हैंड्स की टीम आसरा- द हेल्पिंग हैंड्स की टीम
हाइलाइट्स
  • 60 से ज्यादा कुत्तों को खिलाते हैं खाना

  • इस काम में खर्च करते हैं अपनी सैलरी का एक हिस्सा

सोशल मीडिया के जमाने में आज ज्यादातर युवाओं का समय इंस्टाग्राम, फेसबुक या व्हाट्सएप पर ही बीतता है. लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सिर्फ मनोरंजन का साधन हैं तो वहीं कुछ लोग इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपना हथियार बनाकर समाज के हित में कार्य करते हैं. इन्हीं में से एक है सोशल मीडिया पेज आसरा- "द हेल्पिंग हैंड्स". 

आसरा न सिर्फ बेजुबानों बल्कि समाज के गरीब और पिछड़े तबके के लिए भी कार्य कर रहा है. इस पेज को चला रही हैं बेसहारा जानवरों के लिए कार्य करने वाली चारु खरे. उनका कहना है कि समाज में इन बेजुबानों का बेहद अपमान किया जाता है. लोग विदेशी नस्ल के आगे देसी नस्ल को कुछ नहीं समझते जिसका असर इनके जीवन पर पड़ता है. 

सोशल मीडिया पेज के जरिए उठाई आवाज
चारू का कहना है कि लोग गैर-कानूनी तरीके ब्रीडिंग का काम करते हैं. वहीं, हम दूसरी ओर देखें तो सोशल मीडिया पर रोजाना एनिमल क्रुएल्टी के कई मामले सामने आते हैं. उनका पेज ऐसे सभी मामलों के खिलाफ आवाज उठाता है. आसरा की मेंबर पूर्णा ने बताया आसरा का फ़िलहाल कोई एनजीओ या शेल्टर नहीं है. 

लेकिन फिर भी यह पेज बेसहारा जानवरों की नसबंदी, देसी नस्ल के कुत्तों के एडॉप्शन, उनके रेस्क्यू व ट्रीटमेंट का बंदोबस्त करता है. साथ ही, जानवरों के प्रति हो रहे किसी भी हिंसक रवैये का विरोध करता है. 

अपनी सैलरी का एक हिस्सा बेजुबानों के लिए 
चारू बताती हैं कि वह अपने ज्यादातर केस जीव बसेरा संस्था में एडमिट कराती हैं. साथ ही, इस कार्य में उनके साथ पूर्णा खरे का सहयोग है. रेस्क्यू के कार्य में रजत, राहुल, और अंशुल उन्हें सहयोग देते हैं. रजत ने बताया आसरा ने अब तक 200 से अधिक बेजुबानों के जीवन को बचाया है. साथ ही, कुल 50 से अधिक देसी नस्ल के श्वानों को घर दिलाया है. 

इसके अलावा, 50 से अधिक कुत्तों की नसबंदी कराई है. ये युवा रोजाना 60 से ज़्यादा बेजुबानों को खाना खिलाते हैं. एनिमल एक्टिविस्ट के तौर पर आसरा और इनके मेंबर्स को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. यह सब कहते है कि बेजुबानों के लिए लड़ना हर एक नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए. यह हमारे समाज का हिस्सा हैं. इनका ठीक वैसे ही सम्मान करें जैसे आप खुद का करते हैं. इस काम के लिए ये सभी युवा अपनी सैलरी का एक हिस्सा डोनेट करते हैं. 

लोगों को करना है जागरूक
आसरा ''द हेल्पिंग हैंड्स" की टीम का कहना है कि लॉकडाउन के समय कई लोगों ने डॉग्स अडॉप्ट किए और खत्म होते होते तक छोड़ दिए, उन्होंने ऐसे कुत्ते और बिल्लियों को दोबारा घर दिलाने में मदद की. जानवरों के प्रति हो रहे किसी हिंसक रवैये व घटना की जानकारी पाते ही, टीम तुरंत पहुंचती है. ये लोग जगह-जगह जाकर लोगों को बेजुबानों के प्रति जागरूक करने का कार्य भी कर रहे हैं. 

कई बार उन्हें कानपुर, लखीमपुर खीरी, अयोध्या से भी रेस्क्यू या एनिमल क्रुएल्टी की जानकारी मिलती है, तो यह उन तक भी मदद पहुंचाते है. इनका मकसद है कि लोगों विदेशी नस्ल की जगह ज़्यादा से ज़्यादा देसी नस्ल के जानवरों को अपनाएं, इससे गैर कानूनी ब्रीडिंग और सड़क पर आवारा पशुओं की संख्या पर नियंत्रण किया जा सकेगा. 

आवारा पशुओं की संख्या में इजाफे की सबसे बड़ी वजह है नसबंदी न होना. नगर निगम के साथ मिलकर वे इस पर भी काम कर रहे हैं.