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बिहार के इस गांव में मनाया जाता है मछली उत्सव, पहले मछलियां इकट्ठा करते हैं और फिर घर-घर बांटते हैं मुफ्त में

भारत में हर राज्य, जिले में बहुत से उत्सव मनाए जाते हैं. इनमें कई अजीबोगरीब उत्सव भी शामिल हैं. आज ऐसे ही एक अनोखे उत्सव के बारे में हम आपको बता रहे हैं.

बिहार का 'मछली उत्सव' वाला अनोखा गांव बिहार का 'मछली उत्सव' वाला अनोखा गांव
हाइलाइट्स
  • सर्वा गांव में मनाते हैं मछली उत्सव

  • घर-घर भेजी जाती हैं मुफ्त में मछलियां

बिहार में होने वाले कई सारे उत्सव-महोत्सव के बारे में आपने सुना होगा. आज हम आपको बताने जा रहे हैं, बिहार के एक गांव में होने वाले अनोखे उत्सव के बारे में कि आप भी कहेंगे क्या बात है. जी हां, ये उत्सव है- मछली उत्सव. जहां विभिन्न प्रजाति की मछलियों को गांव के हर घर तक पहुंचाया जाता है. वह भी मुफ्त में. 

एक तरह से पूरे गांव के लोग कई दिनों तक मुफ्त में मिलने वाली मछली का भोज करते हैं. सभी घरों में बराबर-बराबर मछली पहुंचती है. यह उत्सव मनाया जाता है, शेखपुरा जिले में बरबीघा प्रखंड के अंतर्गत आने वाले सर्वा गांव में. यहां की परंपरा अपने आप में अनोखी है. ग्रामीण इस परंपरा का वर्षों से पालन करते आ रहे हैं.

गांव में पोखर से निकालते हैं मछली

वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक गांव के सारे लोग, बच्चे-बुजुर्ग और पुरुष-महिलाएं  मिलकर आपसी सहयोग से गांव के बड़े पोखर (आहर) को सुखाते हैं. पोखर से पानी निकालने के बाद उसमें से मछली निकालते हैं. इन मछलियों को बराबर-बराबर भाग में गांव के सभी परिवारों के बीच बांटा जाता है. 

यदि कोई परिवार बाहर गया हो तो उसके दरवाजे पर मछलियां रख दी जाती हैं. मात्रा के हिसाब से सभी घरों में बिल्कुल मुफ्त में मछली भेजी जाती है. इस सबमें तीन से चार दिन का समय लगता है. सर्वा गांव में ये तीन से चार दिन उत्सव का माहौल रहता है. जिसे लोग मछली उत्सव कहते हैं. 

मिला रेहू, जासर, पिकेट, मांगुर, जैसी मछलियों का स्वाद

सभी ग्रामीण इस उत्सव में शामिल होते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक इस बार पोखर में पानी ज्यादा होने से अगल-बगल के तालाब की मछलियां भी इसमें आ गई थीं. जिसके कारण उन्हें अमेरिकन रेहू, जासर, पिकेट, मांगुर, सिंघी और गयरा, टेंगरा, पोठिया और डोरी का स्वाद मिला है. 

इस मछली उत्सव को लोग उत्साह से मनाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ये परंपरा पूर्वजों के समय से चलती आ रही है. ग्रामीण बताते हैं कि करीब 350 बीघा में फैला यह पोखर गांव के खेतों की सिंचाई का मुख्य स्रोत है. इस पोखर के कारण यहां खेतों को पानी की कमी कभी महसूस नहीं होती.