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Madhya Pradesh Amla Village: अजब-गजब! 150 मकानों वाले इस गांव में हैं 2 सांसद, 2 विधायक, 4 तहसीलदार और दो SDM 

एक ही गांव में रहने के बाद भी दो भाई अलग अलग तहसील में रहते हैं. उनके विधायक और सांसद भी अलग हैं, वहीं राशन कार्ड और वोटर आईडी भी अलग-अलग है. इस गांव में चार तहसीलों की सीमा लगती है.

Indian Village (Representative Image) Indian Village (Representative Image)
हाइलाइट्स
  • मध्यप्रदेश का अजब-गजब गांव

  • सिर्फ 1600 की आबादी वाले गांव में 150 मकान 

कहते हैं कि हर सिक्‍के के दो पहलू होते हैं, ठीक ऐसा ही कुछ आमला गांव के साथ भी है. मध्‍यप्रदेश का ये गांव अपनी विशेषता की वजह से सुर्खियां बटोर रहा है. 150 मकानों और 1600 लोगों की आबादी के इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इतने छोटे से गांव की बागडोर को संभालने के लिए 2 सांसद, 2 विधायक, 4 तहसीलदार, 2 सीईओ, 4 थाने और 2 ग्राम पंचायतें हैं.

राशन कार्ड और वोटर आई डी भी है अलग-अलग

दरअसल, आमला गांव का कुछ हिस्‍सा आगर तहसील में आता है, कुछ हिस्‍सा सुसनेर तहसील में, कुछ नलखेड़ा में तो कुछ बड़ौद तहसील में. गांव की गलियां भी अलग अलग तहसील का प्रतिनिधित्व करती हैं. एक ही गांव में रहने के बाद भी दो भाई अलग अलग तहसील में रहते हैं. उनके विधायक और सांसद भी अलग हैं, वहीं राशन कार्ड और वोटर आईडी भी अलग-अलग है. इस गांव में चार तहसीलों की सीमा लगती है. ग्राम में दो विधानसभा क्षेत्र लगते हैं, तो ग्राम दो संसदीय क्षेत्र देवास-शाजापुर और राजगढ़ के दोनों के अंतर्गत आता है. 

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गांव दो पंचायत में बंटा है

यहां के वासी दो विधायक और दो सांसदों के लिए मतदान करते हैं. ग्राम में चार तहसील क्षेत्रों की सीमा है तो दो आगर और सुसनेर अनुविभागीय अधिकारी के क्षेत्र भी लगते हैं. ग्राम में चार थाना क्षेत्रों की सीमा मिलती है. यह गांव दो पंचायत में बंटा है, गांव का एक हिस्सा ग्राम पंचायत आमला में है, तो दूसरा हिस्सा आमला चौराहा 4 किमी दूर ग्राम पंचायत सेमलखेडी में जुड़ा है. यानि ग्राम के विकास का जिम्‍मा दो सरपंचो पर है. विशेषता एक और यह है कि दोनों सरपंच अलग-अलग पार्टियों से जुड़े हैं.

हालांकि, गांव में सब कुछ इतना आसान नहीं है. आज आमला के नागरिक और किसान शासकीय कार्यालयों में चक्कर लगाते नजर आते हैं. सबसे बड़ी परेशानी उनके लिए तब होती है, जब उनको अपने घर, अपने खेत के लिए अलग अलग तहसीलों में जाना पडता है, वहीं किसी भी शासकीय योजना के लाभ के लिए अलग-अलग सांसद और अलग-अलग विधायकों से बात करनी पड़ती है. 

कई परेशानियों का भी होता है सामना 

इस बार लोकसभा चुनाव में इस छोटे से ग्राम के मतदाता एक फिर से दो सांसदों के लिए मतदान करेंगे. आमला गांव के चार भागों में विभाजित होने के कारण विकास के नाम पर अधिकारियों से लेकर नेताओं द्वारा एक दूसरे का क्षेत्र बताकर नागरिकों की पीड़ा को टाल दिया जाता है. ग्रामीणवासियों के मुताबिक, इतने जनप्रतिनिधि के बाद भी गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं है. ग्रामीणों की छोटे से छोटे काम के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं. कई बार एक तहसील से दूसरे तहसील के चक्कर उन्हें लगाना पड़ते हैं. जवाबदार अपनी जवाबदारी दूसरों पर डाल देते हैं. इसी गांव में रहने वाले सेमलखेडी पंचायत के ग्रामीणों की मानें तो उनके घर के सामने उनके पड़ोसियों के सारे काम आसानी से हो रहे हैं, लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं है. 

साल 2013 में शिवराज सरकार ने आगर मालवा को जिला बनाया था. उस समय भी अधिकारियों द्वारा जो जिले का परिसीमन किया गया वहां भी इस प्रमुख समस्या को ध्यान में नहीं रखा गया था. दो विधायक, दो सांसद, चार तहसीलदार, चार थानेदार, दो सरंपच, दो जनपद सीईओ, चार पटवारी को पाकर ग्रामीण शुरू में बहुत खुश थे, लेकिन इनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. आज ग्रामीण इन सबके बीच उलझकर रह गए है. 

(प्रमोद की रिपोर्ट)