मशरूम को दुनियाभर में आज सुपरफूड माना जाता है. इसकी सैकड़ों वैरायटी आज दुनियाभर में उगाई जा रही हैं. भारत में इसे खुंबी या देहाती इलाकों में सांप की छतरी कहते हैं. आज भी बहुत से भारतीय लोगों को नहीं पता होगा कि उनकी यह सांप की छतरी पोषण के मामले में बहुत सी साग-सब्जियों को मात देती है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कैलोरी में कम और फैट और कोलेस्ट्रॉल फ्री, मशरूम में मामूली मात्रा में फाइबर और एक दर्जन से ज्यादा मिनरल्स और विटामिन होते हैं, जिनमें तांबा, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता और फोलेट जैसे कई बी विटामिन शामिल हैं. अच्छी बात यह है कि आज भारत मशरूम की खेती करके अच्छा कमा रहे हैं. मध्य प्रदेश में रहने वाली निधि कटारे भी इन्हीं प्रगतिशील लोगों में से एक हैं.
कॉलेज हुआ बंद तो शुरू किया काम
ग्वालियर में रहने वाली निधि कटारे आज हर किसी के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं. पिछले कुछ सालों से वह मशरूम फार्मिंग कर रही हैं और अच्छा कमा रही हैं. माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी पूरी करने के बाद, निधि कटारे ने जीवाजी विश्वविद्यालय से संबद्ध ग्वालियर के एक निजी कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया. यह संस्थान नया था और निधि उन लोगों में से थीं जिन्होंने नए सिरे से यहां साइंस लैब स्थापित कराई थीं. 2007 से 2015 तक, उन्होंने पूरे समर्पण से कॉलेज को आगे बढ़ाने में योगदान दिया.
लेकिन कुछ कारणों से साल 2016 में कॉलेज बंद हो गया. बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर काम कर रहीं निधि के सामने ही कॉलेज और लैब्स बंद हो गए. इसके बाद उन्होंने तय किया कि वह खुद ही कुछ शुरू करेंगी. सबसे अच्छी बात यह रही कि उन्होंने साल 2015 से ही मशरूम फार्मिंग की तैयारी शुरू कर दी थी क्योंकि छात्रों को इसके बारे में पढ़ाते हुए उनकी दिलचस्पी इसमें बढ़ने लगी थी.
2015 में उन्होंने घर पर कुछ ऑयस्टर मशरूम के (प्लुरोटस फ्लोरिडा) बैग तैयार करके शुरुआत की. उन्होंने मशरूम की खेती के लिए अपने घर की छत पर 10 फीट X 10 फीट का एक छप्परदार शेड बनाया. मशरूम की खेती के लिए कम जगह, मध्यम रोशनी और वेंटिलेशन और अच्छी स्वच्छता की जरूरत होती है.
शुरू की अपनी खुद की मशरूम स्पॉन लैब
निधि ने मीडिया को बताया कि जब उन्होंने मशरूम के स्पॉन यानी बीज खरीदे तो काफी सारे खराब हो गए. इसके बात उन्होंने अपने पति, संजय कटारे की मदद से खुद मशरूम के स्पॉन तैयार करने का फैसला किया. लैब स्थापित करने के लिए दंपति ने सिंहपुर रोड, ग्वालियर में 1500 वर्ग फुट का घर किराए पर लिया. उन्होंने अपनी मशरूम स्पॉन लैब शुरू करने के लिए सेकेंड-हैंड टूल्स खरीदे.
स्पॉन तैयार करने के लिए, उन्होंने गेहूं का उपयोग किया, हालांकि मक्का या ज्वार का भी उपयोग किया जा सकता है. निधि ने हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित मशरूम अनुसंधान निदेशालय से मशरूम का प्योर कल्चर लिया. स्पॉन तैयार करने के उनके परिणाम अच्छे रहे और उन्होंने अपने स्वयं के स्पॉन तैयार करना शुरू कर दिया. निधि मशरूम की तीन किस्मों - ऑयस्टर (ढिंगरी), बटन और मिल्की (कैलोसाइबे इंडिका) के स्पॉन तैयार करती हैं, जो भारत में कमर्शियलाइज्ड होने वाला पहला स्वदेशी मशरूम है. इन्हें 100 से 120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है.
दूसरों को देती हैं मशरूम की ट्रेनिंग
शुरुआत में, निधि ने किसानों की ट्रेनिंग के लिए कोई शुल्क नहीं लिया. लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि लोग बस टाइमपास के लिए भी सेशन के लिए आते हैं और कभी कुछ विकसित नहीं करते. इसलिए उन्होंने प्रति व्यक्ति 1,000 रुपये का मामूली शुल्क लेना शुरू किया और अब यह राशि 1500 रुपये है.
निधि ने अब तक लगभग 1,000 किसानों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया है। उनमें से कई अब कृषि-उद्यमी हैं, अपना मशरूम खेती व्यवसाय चला रहे हैं. निधि और संजय की कंपनी, नेचुरल बायो इम्पैक्ट एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड पूरे भारत में किसानों को मशरूम स्पॉन की आपूर्ति करती है और प्रशिक्षण और परामर्श सेवाएं भी प्रदान करती है।
उगाती हैं ओयस्टर मशरूम
निधि 1500 वर्ग फुट के क्षेत्र में ऑयस्टर मशरूम बैग लगाती हैं, जिससे हर महीने लगभग 1500 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन होता है. वह बिक्री के लिए मशरूम की तीन किस्मों के स्पॉन तैयार करती हैं, लेकिन सिर्फ ऑयस्टर मशरूम की खेती करती हैं. ऑयस्टर मशरूम भारत में सबसे अधिक उगाया जाने वाला मशरूम है. इसे सुखाकर एयरटाइट पैकेजिंग में एक साल तक स्टोर किया जा सकता है.
इससे उन्हें प्रति माह लगभग एक लाख रुपये की आय होती है. मौसम और मांग के आधार पर स्पॉन की बिकरी 100 रुपये से 120 रुपये किलो में होती है. इससे प्रति माह लगभग 70,000 रुपये से एक लाख रुपये तक की आय हो जाती है. निधि की मदद से आज बहुत से किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं.