मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में 'कबाड़ से कमाल' प्रोजेक्ट के तहत पुरानी सिटी बसों को स्क्रैप में भेजने की बजाय फिर से इस्तेमाल में लिया जा रहा है. हालांकि, इन्हें इस्तेमाल करने का तरीका बदल गया है. शहर के नगर निगम आयुक्त के रूप में कार्यरत 2016 बैच के आईएएस अधिकारी स्वप्निल वानखड़े की प्रेरणा से कई बसों को महिलाओं के लिए नदी के किनारे चेंजिंग रूम, निराश्रितों के लिए रात्रि आश्रय और झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए पुस्तकालय के रूप में बदला गया है.
आने वाले समय में, स्क्रैप के रूप में बेचे जाने वाली दूसरी बेकार सिटी बसों को मोबाइल पुलिस चौकियों में बदलने और डुमना नेचर रिजर्व में बच्चों के लिए एक 'वंडर' में बदलने की भी योजना है।
पहल को मिल रही है सराहना
इन पहलों की न केवल जबलपुर के निवासियों की, बल्कि बर्नार्ड वैन लीयर फाउंडेशन द्वारा जुलाई में लंदन में आयोजित शहरों की एक विश्वव्यापी प्रतियोगिता में भी इसे प्रशंसा मिली है. यह फाउंडेशन शिशुओं, और छोटे बच्चों की देखभाल के लिए काम करती है. वानखड़े ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत शहर में संचालित की जा रही सिटी बसें, बेकार होने पर बहुत कम कीमत में स्क्रैप के रूप में बेची जा रही थीं.
ऐसे में, उन्होंने निवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी सिटी बसों को नया रूप देने का फैसला किया। जबलपुर नगर निगम (जेएनएन) ने कचरे से कमाल प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी, जिसके बाद उन क्षेत्रों को देखा गया जहां इस प्रोजेक्ट का लागू कर सकते थे.
महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम
एक स्टडी से पता चला है कि नर्मदा तट पर महिलाओं के लिए उचित रूप से संरक्षित चेंजिंग रूम की तत्काल जरूरत थी, जहां त्योहारों के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत नदी तट पर स्थायी निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, इसलिए जेएनएन ने वहां अपना नया विचार लागू करने का फैसला किया.
इसके लिए जबलपुर में सबसे व्यस्त नर्मदा नदी घाट- ग्वारी घाट का चयन किया गया और जल्द ही बस को चेंजिंग रूम में बदलने के लिए काम शुरू हुआ. इसकी शुरुआत एक बस को महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम में तब्दील करने से हुई. शुरुआत में प्रत्येक बस को बदलने की लागत जहां 1 लाख रुपये आती थी, वहीं अब इसे घटाकर 40,000 रुपये कर दिया गया है.
बच्चों के लिए काम
अब आगे की योजना में स्लम क्षेत्रों में बच्चों के लिए रैन बसेरा और पुस्तकालय शामिल थीं. एक-एक करके, उन्होंने बेकार पड़ी बसों को इन सुविधाओं में बदल दिया. बस शेल्टर्स को विशेष रूप से सर्दियों के दौरान निराश्रितों के लिए डिजाइन किया गया है. वे वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए शहर में आने वाले छात्रों और अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिचारकों के लिए बहुत मददगार साबित हो रहे हैं.
जो लेग होटल या कम कीमत वाले लॉज का खर्च वहन नहीं कर सकते, वे नई नाइट शेल्टर बस का लाभ उठा रहे हैं. नर्मदा घाट पर महिलाओं और आईएसबीटी पर आश्रय की तलाश कर रहे गरीब लोगों की जरूरतों को पूरा करने के बाद, अधिकारियों ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.
इसने बेकार पड़ी बसों को पुस्तकालयों में बदला गया. शुरुआत में यहां कॉमिक पुस्तकें थीं, लेकिन अब कक्षा V से VIII तक के छात्रों के लिए किताबें रखने के लिए इसका विस्तार किया गया है. इस तरह की पहली लाइब्रेरी उजर पुरवा झुग्गी बस्ती के बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए रानीताल वेलोड्रोम साइक्लिंग ग्राउंड के पास स्थापित की गई थी. इस तरह की एक और लाइब्रेरी जल्द ही शहर के मांडवा स्लम इलाकों में खुलेगी.
छह बसों को अब तक तीन अलग- अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया है. महिला पुलिस के लिए एक और बेकार सिटी बस को मोबाइल पुलिस बूथ में बदलने का काम चल रहा है, जो युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए संवेदनशील स्थानों पर कड़ी निगरानी रखेगा. डुमना नेचर रिजर्व में एक और बेकार पड़ी सिटी बस को बच्चों के लिए झूलों और मनोरंजन से भरपूर एक 'वंडर-वर्ल्ड' में बदलने पर भी काम हो रहा है.
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