आजकल आप कहीं भी चले जाएं, किसी टपरी, कैफे या होटल में, लोग आपको ज्यादातर फोन में लगे हुए दिखते हैं. जब तक उनका ऑर्डर नहीं आ जाता, सबका फोन उनके हाथ में रहता है. लेकिन इस परिस्थिति को कैसे बदला जाए? अब आप सोचेंगे कि कोई भला अब इसमें क्या कर सकता है? लेकिन इस सवाल का जवाब दिया है महाराष्ट्र की एक आजी यानी 74 साल की भीमाबाई जोंधले ने.
एक छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाली भीमाबाई ने देखा कि उनके ग्राहक अक्सर चाय का इंतजार करते समय अपने फोन से चिपके रहते हैं, तो उन्होंने कुछ ऐसा करने का फैसला किया जिससे लोग फोन में घुसकर कुछ अलग और प्रोडक्टिव करें. भीमाबाई को खुद पढ़ना हमेशा से पसंद रहा था लेकिन कभी मौका नहीं मिला. लेकिन उन्होंने अपने ग्राहकों को पढ़ने की आदत फिर से शुरू करने का फैसला किया.
आजी को हमेशा से था पढ़ने का शौक
भीमाबाई ने 2015 में आजीचं पुस्ताकांचा होटल (Grandmother’s Hotel with Books) की शुरुआत की. मुंबई और आगरा के बीच नेशनल हाइवे 3 के किनारे स्थित, उनकी ईटरी लोगों, खाने की सुगंध और ढेर सारी किताबों से भरी हुई है. आजी के नाम से मशहूर 74 वर्षीय भीमाबाई की यह ईटरी लोगों को पढ़ने के लिए मुफ्त में किताबें देती है. इस जगह पर वर्तमान में तीन अलग-अलग भाषाओं-मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में 5,000 से ज्यादा किताबें हैं.
नासिक के खटवाड गांव की रहने वाली भीमाबाई की शादी 6वीं कक्षा ही हो गई थी. हालांकि उन्हें पढ़ने का शौक था, लेकिन शादी के बाद वह इसे जारी नहीं रख सकीं. शराबी पति के साथ जीवन आसान नहीं था. उनके पति ने शराब की लत में 20 एकड़ में 18 एकड़ जमीन को बेच दिया और इसके बाद, उनके पास सिर्फ 2 एकड़ ज़मीन बची थी. लेकिन भीमाबाई ने अपने बेटे और परिवार के लिए दिन-रात मेहनत की. दो एकड़ जमीन से आय ज्यादा अच्छी हो नहीं रही थी तब भीमाबाई ने अपने बेटे के साथ चाय की दुकान शुरू करने का निर्णय लिया. साल 2010 में उन्होंने एक चाय की स्टॉल शुरू की जो बाद में एक Book Hotel बन गई.
50 किताबों से 5000+ किताबों तक
भीमाबाई के बेटे, प्रवीण ने पत्रकारिता की पढ़ाई की है और एक स्थानीय समाचार पत्र में काम किया. बाद में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक छोटा सा पब्लिशिंग हाउस शुरू किया. अब, पब्लिशिंग हाउस चलाने के अलावा, वह होटल चलाने में अपनी मां की मदद करते हैं. बुक होटल की शुरुआत केवल 50 पुस्तकों से हुई थी लेकिन अब 5,000 से ज्यादा हैं. शुरुआत में उन्होंने सिर्फ मराठी किताबें रखी थीं लेकिन पहल की सफलता को देखते हुए उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी किताबें भी रखनी शुरू कर दीं.
शुरुआत में उन्होंने अपनी किताबें खरीदीं लेकिन फिर लोगों ने किताबें दान करना भी शुरू कर दिया. भीमाबाई ने लोगों को ऑर्डर का इंतजार करते समय किताब लेने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उनकी पहल के प्रभाव के बारे में बात करें तो लगभग 100 लोग प्रतिदिन उनके होटल पर आते हैं और उनमें से ज्यादातर ऑर्डर का इंतजार करते हुए किताबें पढ़ते हैं. भीमाबाई भी हर दिन खाली समय में कुछ पन्ने पढ़ने की कोशिश करती हैं.