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न कोई मजहब की दीवार न कोई भेदभाव: कौमी एकता की मिसाल बने दो मुस्लिम युवक, सुंदरकांड का करते हैं पाठ

हिन्दू मुस्लिम एकता व ईश्वर एक है की धारण रखने वाले ये दोनों मुस्लिम युवक साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है और तमाचा हैं उन लोगों पर जो धर्म के नाम पर इंसानियत को बांटकर आपसी भाईचारे के लिए नासूर बनते हैं.

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यूपी में महोबा जिले के दो मुस्लिम युवक कौमी एकता की मिसाल बन कर उभरे हैं. दोनो पूरे जिले में सुंदरकांड का पाठ पढ़ते देखे जाते हैं. दोनों पिछले कई सालों से हिंदू लोगों के साथ सुंदरकांड का पाठ कर रहे हैं. मुहम्मद जहीर और सुलेमान नाम के इन दोनों मुस्लिम युवकों के लिए हिंदू, मुस्लिम के बीच न कोई मजहब की दीवार है न ही कोई भेदभाव. दोनों मुस्लिम व्यक्ति कार्यक्रम में हिन्दू समाज के साथ वर्षों से सुंदरकांड का पाठ करते हैं.

पिता भी करते थे रामलीला में अभिनय
हिन्दू मुस्लिम एकता व ईश्वर एक है की धारण रखने वाले ये दोनों मुस्लिम युवक साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है और तमाचा हैं उन लोगों पर जो धर्म के नाम पर इंसानियत को बांटकर आपसी भाईचारे के लिए नासूर बनते हैं. सुंदरकांड का पाठ करने वाले सुलेमान के पिता बसीर चच्चा रामलीला में बाणासुर का अभिनय करते थे. उन्होंने मरने से पहले अपने बच्चों से कहा था कि मेरी मौत के बाद "चलीसमा" भी करना और "तेरवी" भी. 

कौमी एकता की मिसाल हैं दोनों
कुलपहाड़ तहसील के "सुगिरा" गांव सहित जिले में कहीं भी सुंदरकांड होता है तो इन्हें बुलाया जाता हैं. ये ईश्वर को एक मानते हैं. आज केनफरत के माहौल में भी यह दोनों मुस्लिम युवक कौमी एकता की मिसाल बने हुए हैं. और हिंदू, मुस्लिम भाईचारे को मजबूत कर रहे हैं. ढोल मजीरा के बीच भक्ति में डूबे माहौल में इस दो मुस्लिम युवकों का सुंदरकांड का पाठ करना सभी को खूब पसंद आता है.

मुहम्मद जहीर बताते हैं कि वो सालों से सुंदरकांड का पाठ कर रहे हैं. हम हिन्दू मुस्लिम एक हैं और एक ही रहेंगे. जिनको राजनीति की रोटियां सेंकनी है वो हिन्दू मुस्लिम में भेद डाल रहे हैं, हमारी भावनाओं से खेल रहे हैं. हम हिन्दू मुस्लिम एक समान हैं और ईश्वर एक है.

16 साल से कर रहे सुंदरकांड का पाठ
वहीं सुलेमान ने बताया कि वो भी 16 सालों से सुंदरकांड का पाठ कर रहे हैं. हमारे गांव में हिन्दू मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं है सभी मिलकर रहते हैं और एक दूसरे के त्यौहार में भी शामिल होते हैं. उनकी मानें तो बुरे वक्त में हिन्दू भाई उनकी मदद भी करते हैं. सुलेमान ने बताया कि पिता भी रामलीला में अलग-अलग किरदार निभाया करते थे और उनसे ही उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द की सीख मिली है.


-नाहिद अंसारी की रिपोर्ट