एक छोटा से प्रयोग भी कभी कभी मिसाल बन जाता है. ऐसे ही आज एक गांव के लिए ‘आम’ खुशहाली का जरिया बन गया है. जी हां, आम. हम बात कर रहे हैं बिहार मे स्थित बगहा 2 प्रखंड के थारू जनजाति बहुल बनकटवा गांव की, जहां पहाड़ी नदी के कारण किसानों की प्रतिवर्ष सैकड़ों एकड़ की फसल बर्बाद हो जाती थी. लेकिन एक छोटे से प्रयोग से इस समस्या से निजात मिल गई है. लोगों ने वहां आम के पेड़ लगाने शुरू कर दिए हैं.
एक प्रयोग के तौर पर लगाए आम के पेड़
दरअसल, जब गांव वालों को कोई साधन नहीं दिखा तो कुछ किसानों ने एक प्रयोग के तौर पर आम का पेड़ लगाने का निर्णय लिया, जो आज लगभग तीन सौ एकड़ से अधिक के क्षेत्र में फैल चुका है. इतना ही नहीं यह हर साल बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे ही गांव के एक किसान हैं राजकुमार प्रसाद, जो एक अच्छे किसान हैं और इनका अपना खुद का आम का बगीचा भी है. राजकुमार ने बताया कि नदी के कटाव से यह जमीन ऊंची-नीची हो जाती थी. घास व अलग-अलग प्रकार के जंगल झाड़ उपज जाते थे, इससे निजात पाने के लिए हमारे पूर्वजों ने आम के पेड़ लगाने शुरू किए. यही आज हमारे बुढ़ापे का सहारा हैं.
5 साल में ही देने लगता है फल
राजकुमार प्रसाद आगे कहते हैं, “एक बेटे को पढ़ाने के लिए लाखों खर्च करने पड़ते हैं तब कहीं जाकर वह बुढ़ापे का सहारा बनता है, लेकिन एक पेड़ पांच साल में ही फल देने लगता है. यही आज हमारे बुढ़ापे का सहारा है.”
राजकुमार बताते हैं कि बनकटवा गांव कालांतर में वन काट कर ही बसाया गया था. ये गांव कुल 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमें आधे से ज्यादा भाग में बगीचा लग चुका है. यह पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है.
आम का प्लांट लग जाए तो किसानों को होगा फायदा
गांव के ही दूसरे किसान अशोक कुमार थारू ये बताते हैं कि यहां अधिकांश किसान अपने आम के बगीचे को दो साल के लिए व्यापारी को बेच देते हैं, जिसकी देखभाल फिर व्यापारी ही करता है. अशोक कहते हैं, “यहां के किसानों के मन में एक कसक है, किसान चाहते हैं कि अगर यहां एक आम का जूस बनाने का प्लांट लग जाए तो किसानों को आम की कीमत अधिक मिल सकती है.”
किसान राजेश्वर प्रसाद ने बताया कि यहां संभावनाएं बहुत हैं लेकिन इसके लिए अगर सरकार का सहयोग मिल जाए, तो बहुत कुछ अच्छा हो सकता है. इनका कहना है कि इन्हें आम का मार्केट नहीं मिल रहा है. सरकार अगर प्रयास करे, तो यहां किसान और भी खुशहाल हो सकते हैं.
बंदरों से होता है काफी नुकसान
गांव के ही धर्मदेव महतो ने बताया कि आम के फलों को जंगल के बंदरों से काफी नुकसान होता है. विभाग इसकी रोकथाम करे, जिससे इस समस्या का समाधान हो सके. सुरेश महतो और राजेश्वर प्रसाद ने बताया कि आम के फलों में कीड़ा या बीमारी लग जाती है, जिसके लिए एक आम रिसर्च कार्यालय हो और विशेषज्ञ से इसके लिए उचित दवा और उपचार का मार्गदर्शन आसानी से मिल सके. साथ ही भपसा नदी में बांध बन जाने से कटाव से निजात मिल जाएगा, इससे ये फायदा होगा कि नदी के किनारे लगे आम के पेड़ सुरक्षित हो जाएंगे.
गांव के किसान कहते हैं कि ये आम का सीजन है. इस वर्ष पेड़ों पर आम की फसल भी अच्छी दिख रही है. किसान भी खुशहाल हैं. इनकी इस खुशी को और बढ़ाने के लिए है बाजार और विशेषज्ञ की आवश्यकता है.
(गिरीन्द्र पाण्डेय की रिपोर्ट)