उत्तर प्रदेश के मेरठ का फुटबॉल इन दिनों काफी चर्चित हो रहा है. यहां का एक गांव फुटबॉल को लेकर खासा चर्चित हो रहा है. जी हां, आपने सही सुना फुटबॉल के लिए. भले ही देश में फुटबॉल का खेल अधिक चर्चित नहीं हो. क्रिकेट प्रेमी इस देश में आखिर फुटबॉल की चर्चा क्यों? तो आप जान लीजिए कि मेरठ का यह गांव फुटबॉल खेल नहीं, बल्कि गेंद बनाने को लेकर खासी चर्चा में आ गया है. हम बात कर रहे हैं मेरठ के सिसौला बुजुर्ग गांव की. इस गांव के करीब 3000 परिवार जीविका के लिए फुटबॉल की सिलाई करते हैं. यहां पर हर साल कुल मिलाकर 11 लाख गेंदें बनती हैं. भले ही पश्चिमी यूपी के इस गांव के पास न तो फुटबॉल का मैदान है. न ही यहां से अब तक कोई महान खिलाड़ी निकला है. लेकिन, पिछले कुछ सालों में सिसौला बुजुर्ग फुटबॉल के खेल में जाना माना नाम बन चुका है.
तीन दशक पहले हुई थी शुरुआत
सिसौला बुजुर्ग में हर साल लाखों फुटबॉल बनते हैं. करीब तीन दशक पहले फुटबॉल बनाने की शुरुआत की गई थी. मेरठ में खेल का सामान बनाने का निर्माण करने वाली इकाई में काम करने वाले एक युवक हरि प्रकाश ने कुछ कच्चा माल घर लाया. साथियों को प्रेरित किया कि गांव में भी फुटबॉल का निर्माण किया जा सकता है. शौकिया तौर पर फुटबॉल बनाने का काम कुछ लोगों ने शुरू किया. उस समय उन्हें पता नहीं था कि उन्होंने एक गरीब बस्ती में विकास की नींव रख दी है. शौकिया तौर पर शुरू किया गया काम में लोगों को मजा आने लगा. ऑर्डर दिए जाने लगे. बाजार मिलने लगा. फिर फुटबॉल बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, बदस्तूर जारी है.
गांव की छात्राएं खुद देती है अपनी स्कूल की फीस
तनु एक निजी कॉलेज से BA पढ़ाई कर रही है स्कूल से आने के बाद तनु फुटबॉल बनाती है और अपने स्कूल की फीस खुद ही जमा करती है ऐसी केवल एक तनु ही नहीं ना जाने कितनी इस गांव की लड़कियां हैं
चौथी कक्षा की छात्र भी बनाती है फुटबॉल
जब नंदनी से बात की तो उसने बताया कि मैं स्कूल से आने के बाद फुटबॉल बनाती हूं और जो पैसे आते हैं वह मां को देती हूं जिससे घर का खर्चा चले और स्कूल की फीस दी जा सके. स्कूल से आने के बाद नंदिनी फुटबॉल बनाती है अगर रोज की बात करें तो तीन से चार फुटबॉल नंदनी बना लेती है और इससे जो पैसे आते हैं वह अपनी मां को राशन में पढ़ाई के लिए दे देती है अपना खर्चा स्वयं उठाती है स्कूल की फीस हो या उसके अपने शौक सभी फुटबॉल बनाकर पूरे करती है
20 साल पहले हुई थी शादी तब से ही बना रही रही हैं फुटबॉल
दयावती बताती है कि यह गांव सिसोला हैं और इस गांव के लोग गांव से बाहर जाकर काम नहीं करते बल्कि घर में ही फुटबॉल बनाकर अपनी जीविका जी रहे हैं इनकी शादी आज से 20 साल पहले हुई थी और तब से ही यह फुटबॉल बनाने का काम कर रही है यही नहीं ना जाने ऐसी कितनी महिलाएं इस काम में लगी है अगर फुटबॉल बनाने की संख्या की बात करें तो 4 से 5 बॉल प्रतिदिन बन जाती है हमारे घर में बच्चे हो या बड़े सभी लोग फुटबॉल बनाते हैं. सुमन बताती है कि वह फुटबॉल बनाने का काम लगभग 17 साल से कर रही है. 1 दिन में 4 बॉल में बना देती हूं बच्चे बोल बनाकर अपना खर्चा अपने आप कर लेते हैं पढ़ाई का हो या उनके शौक का
पहले खुद सीखा और अब दे रहे हैं 5000 परिवार को रोज का
हरि प्रकाश से बात की तो उन्होंने बताया आज से लगभग 40 साल पहले मैंने मेरठ जाकर फुटबॉल बनाना सिखा उस समय फुटबॉल चमड़े की बनती थी उस चमड़े की कतरन से मैंने फुटबॉल बनाने का काम शुरू किया और आज लगभग 5000 से अधिक परिवारों को मे फुटबॉल बनाने का काम देता हूं सभी प्रकार की फुटबॉल हमारे यहां बनती हैं.