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World Sea Turtle Day: मिलिए ओडिशा के "टर्टल मैन" से, जिन्होंने कछुओं को समर्पित कर दिया पूरा जीवन

साहू और उनकी टीम चौबीसों घंटे निगरानी रखने के लिए कुछ स्थानीय लोगों को चुनते हैं और कुछ घोंसलों से अंडे एकत्र करते हैं और उन्हें समुद्र तट पर विशेष रूप से निर्मित हैचरी में ट्रांसफर करते हैं. साहू के अनुसार, जब अंडे लगभग 45-50 दिनों के बाद निकलते हैं, तो उन्हें सावधानी से समुद्र में छोड़ दिया जाता है.

रवींद्रनाथ साहू (Pic: Down To Earth) रवींद्रनाथ साहू (Pic: Down To Earth)
हाइलाइट्स
  • कछुआ का संरक्षण करते हैं रवींद्रनाथ साहू

  • चौबीसों घंटे निगरानी करती है साहू और उनकी टीम

आपने अक्सर लोगों को अपने पालतू जानवरों से प्यार जताते हुए, या उन पर काफी ध्यान देते हुए देखा होगा. लेकिन क्या आपने कभी किसी समुद्री जीव के लिए किसी को अपना जीवन समर्पित करते सुना है. सुनने में जरूर अटपटा लग सकता है, मगर ये सच है. हम बात कर रहे हैं ओडिशा के गंजम जिले के समुद्र से तट के पास बसे गांव के रहने वाले रविंद्र नाथ साहू की, जिनके जीवन का केवल एक ही मिशन है, और वो है कछुओं की सेवा करना. दरअसल रवींद्रनाथ साहू ओलिव रिडले समुद्री कछुओं को बचाने के लिए एक मिशन चलाते हैं जो हर साल उनके गांव रुशिकुल्या समुद्र तट पर अंडे देने के लिए आते हैं.

कछुआ का संरक्षण करते हैं रवींद्रनाथ साहू
दरअसल रवींद्रनाथ साहू 1994 से ऐसा करते आ रहे हैं. वो पहली बार तब ही रुशिकुल्या में आए थे. जब भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने समुद्री कछुआ संरक्षण कार्य शुरू किया था. डाउन टू अर्थ को बताते हुए साहू ने कहा, "WII के प्रसिद्ध कछुआ शोधकर्ता बिवाश पांडव ने मुझे कछुआ संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी थी." हर साल, नवंबर से अप्रैल तक लाखों कछुओं के आने और जन्म के दौरान, साहू, रुशिकुल्या सी टर्टल प्रोटेक्शन कमेटी के सदस्यों के साथ एनडेंजर (endangered) समुद्री कछुओं को बचाने के लिए काम करते हैं.

सनक नहीं मिशन है कछुओं का संरक्षण: साहू
रवींद्रनाथ साहू आरएसटीपीसी के सचिव भी हैं. उनका कहना है कि, "कछुओं का संरक्षण मेरे लिए एक सनक नहीं बल्कि एक मिशन है. हर साल हजारों की संख्या में कछुए समुद्र तट पर आते हैं. लेकिन उनमें से कई मर जाते हैं क्योंकि मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस का इस्तेमाल नहीं करते हैं." सदियों से ये समुद्री तट कछुओं के लिए घोंसला बनाने का मैदान रहा है. जब वे परिपक्व हो जाते हैं, तो वे अपने अंडे देने के लिए हमारे समुद्र तट पर वापस आ जाते हैं. साहू ने कहा कि कछुए इस जगह को ग्रामीणों के साथ शेयर करते हैं, जो पीढ़ियों से अंडे इकट्ठा करते आ रहे हैं. 

चौबीसों घंटे निगरानी करती है साहू और उनकी टीम
साहू और उनकी टीम चौबीसों घंटे निगरानी रखने के लिए कुछ स्थानीय लोगों को चुनते हैं और कुछ घोंसलों से अंडे एकत्र करते हैं और उन्हें समुद्र तट पर विशेष रूप से निर्मित हैचरी में ट्रांसफर करते हैं. साहू के अनुसार, जब अंडे लगभग 45-50 दिनों के बाद निकलते हैं, तो उन्हें सावधानी से समुद्र में छोड़ दिया जाता है. इतना ही नहीं रवींद्रनाथ और उनकी टीम के सदस्य झपट्टा मारते हुए कौवे और सियार को भगा देते हैं क्योंकि वे बच्चे कछुओं को खाने की कोशिश करते हैं. खास बात ये है कि कछुओं की सेवा करने से रवींद्रनाथ कभी थकते नहीं हैं. 

कछुओं के अंडों को हैच करते हैं साहू
एक कछुआ एक बार में औसतन 100 अंडे दे सकता है. साहू हर एक घोंसले का जायजा लेता है, अच्छे अंडों को खराब से अलग करते हैं. साहू और उनकी टीम भी अंडे एकत्र करती है और उन्हें हैचरी में मिट्टी के अंदर दबा देती है ताकि हैचलिंग आसानी से हो सके. यहां पर अंडे लगभग दो महीने तक सुरक्षित रूप से सेते हैं. हर साल, कछुओं के बच्चे उन गड्ढों से निकलने के बाद समुद्र की तेज लहरों तक पहुँचने के लिए रेंगते हैं और कुछ मिनटों के बाद बढ़ती लहरों में गायब हो जाते हैं.

पहले कछुओं का मांस खाते थे लोग
पुराण बांध के एक 70 वर्षीय मछुआरे एस गोबिंद राव ने बताया कि, "आज से 25 साल पहले तक पड़ोसी गांवों में कछुए के अंडे 25 पैसे प्रति अंडे के हिसाब से बेचे जाते थे, और कछुओं का उनके मांस के लिए शिकार किया जाता था. लेकिन अब, ग्रामीण रवींद्रनाथ और उनकी टीम के सदस्यों की मदद से कछुओं का संरक्षण करते हैं." 

वन अधिकारियों की मदद करते हैं साहू
रुशिकुल्या समुद्र तट ओडिशा में गहिरमाथा समुद्र तट के बाद समुद्री कछुओं का दूसरी सबसे बड़ी किश्ती है. इस साल 21-29 मार्च तक रुशिकुल्या में लगभग 3,27,863 ओलिव रिडले समुद्री कछुओं ने अंडे दिए. गंजम के संभागीय वन अधिकारी अमलान नायक ने कहा कि साहू और उनकी टीम के सदस्य दो दशकों से अधिक समय से समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए वन अधिकारियों की मदद कर रहे हैं.