आज भी हमारे देश में ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें पुरुष प्रधान माना जाता है और बहुत ही कम महिलाओं को इन क्षेत्रों में प्राथमिकता मिलती है. फायर फाइटिंग भी कुछ समय पहले तक ऐसा ही क्षेत्र माना जाता था. लेकिन अब देश की कुछ साहसी बेटियों ने इस लाइन में अपनी जगह बनाकर साबित कर दिया है कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं. पुणे से 26 साल की मेघना महेंद्र सकपाल भी अब इन बेटियों में से एक बन गई हैं. मेघना ने शहर की पहली महिला फायर फाइटर के तौर पर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया.
आसान नहीं थी राह
हाल ही में, पुणे नगर निगम के भर्ती अभियान में 167 उम्मीदवारों ने फायर-फाइटर बनने के लिए प्रतिस्पर्धा की. उनमें से, मेघना अकेली महिला प्रतियोगी थी जिन्होंने अपनी जगह बनाई. और यह कहानी सिर्फ परीक्षा पास करके फायर फाइटर बनने की नहीं है बल्कि उनके विश्वास और संघर्ष की कहानी है.
मुंबई में अपने पहले प्रयास के दौरान वह ग्राउंड टेस्ट में लड़खड़ा गई थीं. लेकिन असफलता ने उनकी भावना को कम नहीं किया; बल्कि उनके मन में जीत की आग जला दी. बचपन के सपनों की कोमल उम्र से, मेघना का सपना फायर फाइटर बनना था. उनके दादा, सदाशिव बी सकपाल एक फायर-फाइटर के रूप में रिटायर्ड हुए और पिता महिंद्रा एस सकपाल भी फायर फाइटर हैं. अपने दादा और पिता से प्रेरित होकर, उन्होंने इस राह पर आगे बढ़ने की ठानी और कभी भी हार नहीं मानी.
हमेशा से पहनना चाहती थीं वर्दी पहनना
मेघना ने मीडिया को बताया कि उन्हें बचपन से फायरफाइटर्स की वर्दी पसंद थी. तब उन्हें नहीं पता थी कि यह पुरुष-प्रधान क्षेत्र है या इसमें बहुत कठिनाई होगी. उनका एकमात्र सपना एक फायर फाइटर बनना और वह वर्दी पहनना था जो उनके दादा और पिता काम करने के लिए पहनते थे. आज वह अपनी इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं.
मेघना ने कॉमर्स की डिग्री पूरी करने के बाद महाराष्ट्र फायर सर्विस कोर्स (MFSC) में दाखिला लिया. लेकिन महामारी के कारण उनकी ट्रेनिंग कैंसिल हो गई. लंबे अंतराल के बावजूद, वह दृढ़ रहीं और डटी रहीं. उन्होंने नवंबर 2022 में प्रशिक्षण फिर से शुरू किया. शारीरिक फिटनेस के टेस्ट ने उनकी राह में बाधा डाली लेकिन मेघना ने निराशा के सामने झुकने से इनकार कर दिया. वह कहती हैं कि एमएफएससी कार्यक्रम में शामिल होने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि फायर-फाइटर बनना आसान नहीं होगा.
मुश्किल थी ट्रेनिंग
मेघना की ट्रेनिंग बहुत मुश्किल थी. प्रशिक्षण के पहले दिन, उन्हें 5 किमी दौड़ने के लिए कहा गया. वह इसे समय पर करने में असफल रहीं. स्कूल और कॉलेज के दौरान, वह कभी भी किसी भी प्रकार का व्यायाम नहीं करती थीं. स्पोर्ट्स बैकग्राउंड न होने के कारण शारीरिक फिटनेस उके लिए एक बड़ा मुद्दा बन गई. प्रशिक्षण के पहले सप्ताह के दौरान, उन्हें लगा कि वह इसे पूरा नहीं कर पाएंगी. लेकिन उनके सपने ने उन्हें हार नहीं मानने दी.